Preamble of Indian Constitution: जानिए इसकी अहमियत और इसके हर पहलू को विस्तार से

preamble of indian constitution

प्रस्तावना (Preamble)-

भारतीय संविधान निर्माताओं (Indian Constitution Makers) के द्वारा अमेरिकी संविधान से प्रस्तावना (Preamble) ली गई है। यद्यपि भारतीय संविधान में उल्लिखित प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से अत्यधिक व्यापक है।

प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शों, उद्देश्यों, सरकार के स्वरूप, संविधान के स्रोत से संबंधित प्रावधान और संविधान के लागू होने की तिथि आदि का संक्षेप में उल्लेख है।

प्रसिद्ध न्यायविद व संविधान विशेषज्ञ एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान के ‘परिचय पत्र’ की संज्ञा दी है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आविर्भाव पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में रखे गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ से हुआ है। यही कारण है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘उद्देशिका’ कहकर भी संबोधित किया जाता है।

प्रस्तावना के तत्व (Elements of Preamble)-

संविधान के अधिकार के स्रोतसंविधान का स्वरूप/प्रकृतिसंविधान के उद्देश्यसंविधान लागू होने की तिथि
हम भारत के लोग अर्थात् जनता1. संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न
2. समाजवादी
3. पंथनिरपेक्ष
4. लोकतंत्रात्मक
5. गणराज्य
1. न्याय (सामाजिक, hi, राजनैतिक)
2. स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना)
3. प्रतिष्ठा और अवसर की समता
4. व्यक्ति की गरिमा
5. राष्ट्र की एकता और अखण्डता
6. बंधुता
26 नवम्बर, 1949
प्रस्तावना के तत्व

संविधान निर्माण शक्ति का स्रोत (Source of constitution making power)-

संविधान की प्रस्तावना रूसो के आदर्श से प्रभावित है। जिसके अनुसार भारतीयों के द्वारा संविधान का निर्माण किया गया। यहाँ ‘लोग’ का अभिप्राय 18 वर्ष से अधिक के सभी भारतीय नागरिक हैं। इसीलिए संविधान ‘हम लोगों’ के माध्यम से जनता की सर्वोच्चता को व्यक्त करता है।

‘हम लोग’ शब्द शासक एवं शासित के बीच किसी प्रकार का अंतर स्थापित नहीं करता। परन्तु जनता की इच्छा को व्यावहारिक रूप से पूर्ण करने के लिए प्रस्तावना में शासन प्रणाली का भी उल्लेख किया गया है।

प्रस्तावना में उल्लिखित शासन प्रणाली (The system of government mentioned in the preamble)-

भारतीयों के द्वारा भारतीयों के लिये एक नवीन शासन प्रणाली (Governance System) का निर्माण किया गया-

  • लोकतांत्रिक (Democratic)
  • गणतांत्रिक (Republican)
  • संप्रभु (Sovereign)
  • पंथनिरपेक्ष (Secular)
  • समाजवादी (Socialist)

नोट भारतीय समाजवाद ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ है न कि ‘साम्यवादी समाजवाद’। लोकतांत्रिक समाजवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था में आस्था रखता है, जहाँ सार्वजनिक व निजी क्षेत्र साथ-साथ मौजूद रहते हैं।

भारतीयों के द्वारा इस शासन प्रणाली के निर्माण के द्वारा भारत में सामाजिक न्याय (Social Justice) को अर्जित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया और नागरिकों को निम्नलिखित विचार या सिद्धांत प्रदान किए गए हैं-

  1. न्याय (Justice): सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय
  2. स्वतंत्रता (Liberty): विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास एवं उपासना की स्वतंत्रता
  3. समता (Equality): प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता
  4. बंधुत्व (Fraternity): सभी नागरिकों के बीच बंधुत्व का भावना को जागृत करना एवं सर्वमान्य भाईचारे का विकास करना
  5. व्यक्ति की गरिमा (Dignity of individual): व्यक्ति की गरिमा का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास एक विशेष मूल्य होता है, जो उसकी मानवता से जुड़ा होता है। यह मूल्य, किसी व्यक्ति की जाति, वर्ग, लिंग, धर्म, योग्यता या किसी अन्य कारक से जुड़ा नहीं होता। के.एम. मुंशी के अनुसार, “व्यक्ति की गरिमा/गौरव का अर्थ यह है कि संविधान न केवल वास्तविक रूप से भलाई तथा लोकतांत्रिक तंत्र की मौजूदगी सुरक्षित करता है बल्कि यह भी मानता है कि हर व्यक्ति का व्यक्तित्व पवित्र है”।

प्रस्तावना में उल्लिखित लोकतांत्रिक-गणतांत्रिक शासन की प्रणाली संविधान में संसदीय संघात्मक शासन के रूप में वर्णित है। संविधान के भाग-3 में उल्लिखित मूल अधिकार (Fundamental Rights) प्रस्तावना में अंतर्निहित स्वतंत्रता के अधिकार को विस्तार और सामाजिक-आर्थिक न्याय को प्राप्त करने के लिये नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है।

नोट के.एम. मुंशी ने प्रस्तावना को ‘संविधान की जन्मकुंडली’ (The birth chart of the constitution) कहा है। वहीं ठाकुर दास भार्गव ने इसे ‘संविधान की आत्मा’ (Soul of the Constitution) कहा है, क्योंकि प्रस्तावना में संविधान का सारांश निहित है अथवा मूल तत्व विद्यमान है।

संविधान की व्याख्या (Interpretation of the Constitution) के लिये प्रस्तावना का उपयोग-

केशवानंद भारती वाद (Kesavananda Bharati case), 1973 में उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न भाग है, इसलिये संविधान की व्याख्या के लिये प्रस्तावना का उपयोग किया जाएगा। न्यायपालिका के द्वारा प्रतिपादित आधारभूत ढाँचे के अधिकतर अवयव प्रस्तावना में अंतर्निहित हैं। इस प्रकार लोकतांत्रिक, गणतांत्रिक, पंथनिरपेक्ष, एकता एवं अखण्डता, ये सभी आधारभूत ढाँचे के भाग हैं। इसलिये उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने संघीय शासन में मूल अधिकार एवं नीति निदेशक तत्वों के संबंध की व्याख्या के लिये प्रस्तावना का उपयोग किया। यही कारण है कि प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहना तार्किक है।

वर्ष 2018 में सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple) में प्रवेश के संबंध में निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि संविधान की नैतिकता (The morality of the constitution) सामाजिक नैतिकता से अधिक महत्त्वपूर्ण है और संविधान की नैतिकता का उल्लेख प्रस्तावना में किया गया है। अतः भारतीय संविधान मात्र एक वैधानिक दस्तावेज नहीं है अपितु सामाजिक क्रांति एवं परिवर्तन का एक प्रभावी उपकरण है।

नोट

  1. प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है और न ही उसकी शक्तियों पर प्रतिबंध लगाने वाला।
  2. यह गैर-न्यायिक है अर्थात् इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

प्रस्तावना में संशोधन (Amendments to the Preamble) की संभावना-

क्या प्रस्तावना में संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन किया जा सकता है। यह प्रश्न पहली बार ऐतिहासिक केस बेरुबारी संघ, 1960 में उठा। यह विचार सामने आया कि इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता क्योंकि यह संविधान का भाग नहीं है।

हालाँकि, उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारतीय मामले में कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है और प्रस्तावना को संशोधित किया जा सकता है, बशर्ते मूल विशेषताओं में संशोधन अर्थात् संविधान के आधारभूत ढाँचे से संबंधित विषयों में संशोधन संभव नहीं है।

अब तक प्रस्तावना को केवल एक बार 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत संशोधित किया गया है। इस संशोधन के तहत प्रस्तावना में तीन नए शब्दों को जोड़ा गया- समाजवादी, पंथनिरपेक्ष एवं अखंडता। इस संशोधन को वैध ठहराया गया था।

नोट भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति (1789-1799) से लिया गया है। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के तत्वों को 1917 की रूस की क्रांति से लिया गया है।


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