भारत का Global news channel: आवश्यकता, चुनौतियाँ और संभावनाएँ

India's global news channel

परिचय

वर्तमान डिजिटल युग में मीडिया किसी भी राष्ट्र की सॉफ्ट पावर का एक अत्यंत प्रभावशाली उपकरण बन चुका है। यह न केवल जनमानस की सोच और दृष्टिकोण को आकार देता है, बल्कि वैश्विक मंच पर किसी देश की छवि को परिभाषित करने, प्रभावशाली धारणाएँ (Narratives) स्थापित करने तथा सांस्कृतिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार में भी केंद्रीय भूमिका निभाता है।

वास्तविकता यह है कि आज की वैश्वीकृत दुनिया में संप्रभुता की लड़ाई अब पारंपरिक युद्धक्षेत्रों तक सीमित नहीं रही। यह संघर्ष अब डिजिटल परिदृश्य में भी उतनी ही तीव्रता से लड़ा जा रहा है, जहाँ नैरेटिव्स पर नियंत्रण किसी राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को संवार भी सकता है और गिरा भी सकता है। समकालीन परिप्रेक्ष्य में नैरेटिव केवल तथ्य या मिथ्या अर्थात् सच और झूठ का प्रश्न नहीं रह गया है; बल्कि यह भी महत्वपूर्ण हो गया है कि कोई विषय किस शैली, संदर्भ और दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। जब किसी वैश्विक मुद्दे—चाहे वह आतंकवाद, मानवाधिकारों का उल्लंघन हो या जलवायु परिवर्तन—पर अंतरराष्ट्रीय विमर्श होता है, तब मीडिया एक निर्णायक कारक के रूप में उभरता है। जिस देश के पास नैरेटिव पर नियंत्रण होता है, वही जनमत को दिशा देने में सक्षम होता है। वैश्विक राजनीति में ‘धारणा’ स्वयं में एक कूटनीतिक शक्ति बन चुकी है। यदि किसी देश के प्रति नकारात्मक वैश्विक धारणा बन जाती है, तो वस्तुस्थिति कुछ भी हो, उसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि और विदेश नीति पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

वैश्विक समाचार नेटवर्क (Global news network) जैसे BBC (British Broadcasting Corporation), CNN (Cable News Network), Al-Jazeera, और RT (Russia Today) अपने-अपने देशों के राष्ट्रीय हितों की प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हैं। वे न केवल अपनी सरकारों की नीतियों को विश्व समुदाय तक पहुँचाते हैं, बल्कि सांस्कृतिक व राजनीतिक दृष्टिकोण को भी वैश्विक विमर्श में सम्मिलित करते हैं। इसके विपरीत, भारत—जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र और एक उभरती वैश्विक महाशक्ति है—के पास अब तक ऐसा कोई सशक्त और प्रभावशाली वैश्विक समाचार माध्यम नहीं है, जो वैश्विक स्तर पर भारतीय दृष्टिकोण को मजबूती से प्रस्तुत कर सके।

यह लेख भारत के एक प्रभावशाली वैश्विक समाचार चैनल (Global news channel) की अनुपस्थिति के कारणों, उसके बहुआयामी प्रभावों, और इस रणनीतिक शून्य को भरने की आवश्यकता पर गहन चर्चा करता है। इसमें इस विषय से संबंधित प्रमुख प्रश्नों का विश्लेषण किया गया है: भारत को एक अंतरराष्ट्रीय समाचार नेटवर्क की आवश्यकता क्यों है? वर्तमान मीडिया परिदृश्य में कौन-सी चुनौतियाँ विद्यमान हैं? और भारत कैसे एक विश्वसनीय व प्रभावशाली वैश्विक न्यूज़ ब्रांड की स्थापना कर सकता है? इसके अतिरिक्त, यह लेख अन्य देशों के सफल उदाहरणों से प्रेरणा लेते हुए, भारत के लिए एक व्यवहार्य और रणनीतिक रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जिससे भारत की सॉफ्ट पावर को सशक्त किया जा सके और वैश्विक विमर्श में भारतीय दृष्टिकोण को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।

सूचना युद्ध और नैरेटिव का नियंत्रण

वर्तमान वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में, पारंपरिक सैन्य संघर्षों की तुलना में सूचना युद्ध कहीं अधिक घातक और निर्णायक सिद्ध हो रहा है। आज राष्ट्रों को शस्त्रों से नहीं, बल्कि शब्दों, छवियों और विमर्श के माध्यम से लड़ा जा रहा युद्ध झेलना पड़ता है। यह युद्ध डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों पर लड़ा जाता है—समाचारों की हेडलाइनों में, अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में, और वैश्विक मीडिया नैरेटिव्स में—जहाँ धारणा वास्तविकता से कहीं अधिक प्रभावशाली हो जाती है।

भारत जैसी तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के लिए यह विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है। जब भारत को मानवाधिकार उल्लंघन, धार्मिक असहिष्णुता या प्रेस की स्वतंत्रता के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कठघरे में खड़ा किया जाता है, तो उसके पास अपनी स्थिति स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने हेतु कोई संगठित, विश्वसनीय और प्रभावशाली वैश्विक मीडिया मंच नहीं होता। भारत की विदेश नीति, उसकी लोकतांत्रिक संस्थाएँ, सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा तब तक अधूरी है, जब तक उनके पक्ष में एक प्रभावशाली संचार तंत्र खड़ा न हो।

नैरेटिव केवल सच्चाई या असत्य पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह इस पर भी निर्भर करता है कि कौन उसे प्रस्तुत कर रहा है, किस उद्देश्य से कर रहा है, और किन दर्शकों के समक्ष कर रहा है। उदाहरणस्वरूप, जब द न्यू यॉर्क टाइम्स भारत के ऐतिहासिक मंगलयान मिशन को व्यंग्य का विषय बनाता है, तो वह केवल भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर नहीं, बल्कि उसकी तकनीकी क्षमता, नवाचार क्षमता और वैश्विक वैज्ञानिक प्रतिष्ठा पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। यह एक विचारधारात्मक आक्षेप होता है, जो भारत की उन्नति को एक विशेष फ्रेम में प्रस्तुत करता है—और यही सूचना युद्ध का मूल स्वरूप है।

यदि भारत के पास एक सशक्त, बहुभाषीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित समाचार मंच होता, तो यही मंगलयान मिशन विश्व को भारतीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण की पराकाष्ठा के रूप में प्रस्तुत किया जाता। यह भारत के तकनीकी आत्मविश्वास और नवाचार शक्ति का प्रतीक बन सकता था, बजाय एक सांस्कृतिक पूर्वाग्रह के उपहास का। इसलिए, सूचना युद्ध के इस युग में मीडिया केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि रणनीतिक शक्ति बन चुका है। राष्ट्रों को केवल अपनी सीमाओं की रक्षा नहीं करनी, बल्कि अपने नैरेटिव की भी रक्षा करनी है—और उसके लिए एक विश्वसनीय मीडिया मंच की स्थापना अब विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है।

वैश्विक मीडिया नेटवर्क: सॉफ्ट पावर की नींव

BBC (British Broadcasting Corporation), CNN (Cable News Network), Al Jazeera और Russia Today (RT) जैसे समाचार संस्थान केवल खबरें प्रसारित करने वाले संगठन नहीं हैं, बल्कि ये सॉफ्ट पावर के माध्यम से अपने राष्ट्र की नीतियों को वैधता प्रदान करने, विरोधियों को गलत ठहराने और जनमत निर्माण की प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका निभाने वाले औजार बन चुके हैं। ये संस्थान अपने-अपने देशों के दृष्टिकोण को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करते हैं। बीबीसी को भले ही तटस्थता का प्रतीक माना जाता हो, किंतु यह ब्रिटिश हितों के संरक्षण और उनकी सॉफ्ट पावर के विस्तार का साधन भी है। उदाहरण के लिए, बीबीसी ने ब्रेग्ज़िट, ब्रिटिश राजशाही, या ब्रिटिश सेना की कार्रवाइयों पर जिस तरह से रिपोर्टिंग की है, वह सामान्य पत्रकारिता से कहीं अधिक ब्रिटेन के राष्ट्रीय हितों की सेवा करती दिखती है।

इसी प्रकार, अल-जज़ीरा, जो कतर सरकार द्वारा वित्तपोषित है, जो मध्य-पूर्व की आवाज़ को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करता है। यह इस क्षेत्र के दृष्टिकोण को पश्चिमी मीडिया के वर्चस्व के मुकाबले सामने लाने का प्रयास करता है। यह पश्चिमी शक्तियों की विदेश नीति की आलोचना करने में मुखर रहा है, खासकर अमेरिका द्वारा इराक और अफगानिस्तान में की गई कार्रवाइयों को लेकर। वहीं, सीएनएन और वॉयस ऑफ अमेरिका जैसे अमेरिकी चैनल लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकार जैसे विषयों को अपने राष्ट्रीय हितों के अनुकूल ढंग से परिभाषित करते हैं। RT और CGTN भी इसी रणनीति का अनुसरण करते हैं।

Russia Today (RT), रूस की विदेश नीति, उसकी भूराजनीतिक प्राथमिकताओं, नाटो-विरोधी विमर्श और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को वैचारिक समर्थन देने का कार्य करता है। RT की शैली आलोचनात्मक होती है, जिसका उद्देश्य पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती देना है। वहीं, CGTN चीन की ‘वन चाइना पॉलिसी’, ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)’ और ‘चीनी विशेषताओं वाला समाजवाद’ जैसे मॉडल्स को वैश्विक स्वीकृति दिलाने हेतु कार्यरत है। इसकी रिपोर्टिंग चीन की शांतिपूर्ण, विकासोन्मुखी और स्थिर शासन प्रणाली की छवि को रेखांकित करती है।

इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि वैश्विक मीडिया नेटवर्क सूचना के साधन मात्र नहीं हैं, बल्कि वे अपने राष्ट्रों की विदेश नीति, वैचारिक दिशा और वैश्विक भूमिका को वैधता प्रदान करने वाले रणनीतिक उपकरण हैं। ये मीडिया संस्थान वैश्विक विमर्श में अपने देशों की भूमिका को सकारात्मक, निर्णायक और अनिवार्य बनाते हैं। इनके माध्यम से न केवल सूचनाओं का चयन और वितरण किया जाता है, बल्कि इस प्रक्रिया में राष्ट्र की सॉफ्ट पावर को व्यवस्थित रूप से परिभाषित, विस्तारित और सुदृढ़ किया जाता है। इसलिए, इन मीडिया संस्थानों को आधुनिक ‘इन्फॉर्मेशन डिप्लोमेसी’ का स्तंभ माना जाना चाहिए, जो आज की विश्व राजनीति में उतने ही प्रभावशाली हैं जितना कि पारंपरिक राजनयिक तंत्र। वैश्विक राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में, जहां नैरेटिव नियंत्रण किसी भी राष्ट्र की सॉफ्ट पावर को परिभाषित करता है, वहाँ इन मीडिया संस्थानों की भूमिका उतनी ही निर्णायक हो गई है जितनी कि राजनयिक दूतावासों और विदेश मंत्रालयों की।

भारत का दृश्य और पश्चिमी मीडिया की पूर्वाग्रहपूर्ण प्रस्तुति

भारत की वैश्विक छवि को आकार देने में एक समाचार चैनल की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया, विशेष रूप से पश्चिमी मीडिया, अक्सर भारत को एक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है। दुर्भाग्यवश, भारत के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मीडिया—विशेष रूप से पश्चिमी संस्थान जैसे BBC, CNN, The New York Times और The Washington Post—अक्सर सीमित और पूर्वग्रहपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हैं। इससे भारत की छवि वैश्विक मंच पर विकृत और अपूर्ण रूप में प्रस्तुत होती है। ये भारत की जटिल सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक वास्तविकताओं को सरलीकृत करके एक नकारात्मक छवि प्रस्तुत करते हैं। उदाहरण के लिए, 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों को अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने व्यापक रूप से “अल्पसंख्यक विरोधी” करार दिया, जबकि भारत सरकार की सुरक्षा चिंताएँ, पूर्ववर्ती कानूनी परिप्रेक्ष्य और शरणार्थी समस्या के ऐतिहासिक पहलुओं को या तो पूरी तरह से अनदेखा किया गया या सतही तौर पर प्रस्तुत किया गया। इसी प्रकार, 2020-21 के किसान आंदोलन की कवरेज भी अराजकता और उत्पीड़न के नैरेटिव पर केंद्रित रही, जबकि सरकार के संवाद प्रयासों, संसद में हुई बहसों और कृषि सुधारों की जटिलताओं पर संतुलित दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया।

कश्मीर से संबंधित रिपोर्टिंग, एक और प्रमुख उदाहरण है जहां पश्चिमी मीडिया का दृष्टिकोण एकतरफा प्रतीत होता है। कश्मीर में घटनाओं की कवरेज अक्सर मानवाधिकार उल्लंघनों पर केंद्रित रही है, बिना क्षेत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भ को स्वीकार किए। बीबीसी द्वारा 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट, जिसमें पत्रकारों की गिरफ्तारी को प्रेस स्वतंत्रता पर हमला बताया गया, जबकि आतंकवाद विरोधी कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमा पार आतंकवाद, और जम्मू-कश्मीर की संवेदनशीलता जैसे महत्त्वपूर्ण आयामों को लगभग पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया गया। कश्मीर एक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। लेकिन बीबीसी ने सिर्फ़ एक पक्ष दिखाया, जो भारत के प्रयासों को कमजोर करता है। इसी प्रकार, बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री “इंडिया: द मोदी क्वेश्चन” ने 2002 के गुजरात दंगों पर एक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इस डॉक्यूमेंट्री को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया क्योंकि इसे दुष्प्रचार के तौर पर देखा गया। गुजरात दंगे एक संवेदनशील ऐतिहासिक घटना है और इस पर बात होनी चाहिए, लेकिन बीबीसी का दृष्टिकोण एकतरफा था। इसने न केवल मोदी सरकार को निशाना बनाया, बल्कि भारत की न्यायिक प्रणाली और सुलह प्रयासों को भी नजरअंदाज कर दिया। यह दर्शाता है कि पश्चिमी मीडिया भारत के परिप्रेक्ष्य को समझे बिना अपने उद्देश्यों के लिए संवेदनशील मुद्दों को कैसे तोड़-मरोड़ कर पेश करता है।

एक और उदाहरण – 2020 में, BBC के प्रतिष्ठित कार्यक्रम “न्यूज़ एट टेन” ने 1943 के बंगाल अकाल पर एक रिपोर्ट प्रसारित की, जिसमें ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की भूमिका को प्रमुखता से उजागर किया गया। रिपोर्ट में अकाल के लिए चर्चिल की आलोचना की गई, लेकिन व्यापक ब्रिटिश औपनिवेशिक ढाँचे की भूमिका पर गंभीर विश्लेषण से परहेज किया गया। इससे यह प्रतीत हुआ कि BBC ने इस भीषण मानवीय त्रासदी को एक व्यक्ति-केन्द्रित विफलता के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि वास्तविकता कहीं अधिक जटिल और संस्थागत थी। इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के अनुसार, बंगाल अकाल में लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई, जो प्राकृतिक कारणों से नहीं, बल्कि औपनिवेशिक नीतियों की विफलता से उपजा एक मानव-निर्मित संकट था। युद्धकालीन ‘झुलसी हुई धरती’ की रणनीति, अनवरत चावल निर्यात, और राहत कार्यों में उपेक्षा जैसी ब्रिटिश नीतियाँ इस त्रासदी के मुख्य कारण थीं। चर्चिल की प्राथमिकताएँ, जिनमें भारतीयों को ‘कमजोर नस्ल’ मानते हुए उन्हें भोजन की आपूर्ति से वंचित करना शामिल था, केवल इस संस्थागत क्रूरता का एक चेहरा थीं—उसका मूल नहीं। BBC की रिपोर्ट ने न तो औपनिवेशिक शासन की संरचनात्मक नीतियों की व्यापक समीक्षा की, न ही भारत में उस समय व्याप्त व्यवस्थागत उपेक्षा को समुचित संदर्भ में रखा। यह केवल पत्रकारिता की एकतरफा प्रवृत्ति को नहीं दर्शाता, बल्कि इस बात की भी पुष्टि करता है कि पश्चिमी मीडिया आज भी कई बार ऐतिहासिक तथ्यों को चयनित लेंस से प्रस्तुत करता है—जिससे भारत के बारे में एक पक्षपातपूर्ण नैरेटिव निर्मित होता है।

यह उदाहरण केवल अतीत की घटनाओं की स्मृति नहीं है, बल्कि यह वर्तमान में वैश्विक मीडिया के माध्यम से ‘कथाओं के स्वामित्व’ (ownership of narrative) के प्रश्न को भी उजागर करता है। जब पश्चिमी मीडिया भारत जैसे देशों के ऐतिहासिक अनुभवों को अपने-अपने पूर्वग्रहों के साथ चित्रित करता है, तो यह वैश्विक जनमत को प्रभावित करने का एक असमान खेल बन जाता है।

अल-जज़ीरा ने भी 2015 में भारत के नक्शे को गलत ढंग से प्रस्तुत किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK), अक्साई चिन, लक्षद्वीप और अंडमान द्वीप समूह को भारत का हिस्सा नहीं दिखाया गया। इस घटना केवल एक त्रुटि नहीं थी, बल्कि यह भारत की क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देने वाला गंभीर कृत्य था। परिणामस्वरूप, भारत सरकार ने अल-जज़ीरा पर 5 दिन का प्रतिबंध लगाया। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भारत के प्रति एक सुनियोजित पूर्व Ascertainable Image Media (AIM) जैसे मंच भारत के खिलाफ प्रचार का हिस्सा हो सकते हैं।

भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ भी इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार से अछूती नहीं रहीं। पश्चिमी मीडिया द्वारा भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया बार-बार सामने आया है, लेकिन 2014 में ‘द न्यू यॉर्क टाइम्स’ द्वारा प्रकाशित एक कार्टून ने इस प्रवृत्ति को शर्मनाक तरीके से उजागर कर दिया। भारत के पहले अंतरग्रहीय मिशन, मंगलयान (Mangalyaan) की अभूतपूर्व सफलता—जिसने अत्यंत कम लागत में पहली ही कोशिश में मंगल की कक्षा में प्रवेश कर दुनिया को चौंका दिया—को सराहने के बजाय, न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक व्यंग्यात्मक कार्टून प्रकाशित किया। इस कार्टून में एक भारतीय व्यक्ति को पारंपरिक वेशभूषा में और साथ में एक गाय के साथ “Elite Space Club” के दरवाज़े पर दस्तक देते हुए दिखाया गया था।

यह दृश्य केवल भारत की वैज्ञानिक प्रगति का उपहास नहीं था, बल्कि एक गहरे नस्लवादी और औपनिवेशिक मानसिकता की अभिव्यक्ति भी था—जिसमें भारत जैसे विकासशील राष्ट्रों की उपलब्धियों को संदेह और तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है। इस कार्टून पर जब व्यापक विरोध हुआ, तब NYT को माफ़ी माँगनी पड़ी, लेकिन उस क्षण ने यह स्पष्ट कर दिया कि पश्चिमी मीडिया के एक बड़े वर्ग के लिए भारत की वैज्ञानिक उन्नति हास्य का विषय है, गौरव का नहीं।

इसी प्रवृत्ति की पुनरावृत्ति 2023 में चंद्रयान-3 की सफलता के समय भी देखी गई। जब भारत दक्षिणी ध्रुव के निकट चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने वाला दुनिया का पहला देश बना—जो तकनीकी रूप से अत्यंत जटिल और ऐतिहासिक उपलब्धि थी—तब भी पश्चिमी मीडिया ने इसे या तो बहुत सीमित कवरेज दी या अन्य वैश्विक घटनाओं के नीचे दबा दिया। इसके उलट, यदि यही उपलब्धि अमेरिका, रूस या यूरोपीय संघ की किसी एजेंसी ने हासिल की होती, तो यह हफ्तों तक वैश्विक मीडिया की सुर्खियाँ बनती।

हालिया उदाहरण, 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक दर्दनाक घटना घटी, जब आतंकवादियों ने निर्दोष पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। यह हमला हाल के वर्षों में नागरिकों को निशाना बनाकर किया गया सबसे घातक आतंकी हमला है। लेकिन, इस बर्बरता की रिपोर्टिंग को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया, विशेष रूप से New York Times, विवादों में घिर गया है। अपने शीर्षक में अखबार ने हमलावरों को ‘उग्रवादी’ (Militants) बताया, न कि ‘आतंकवादी’ (Terrorists) — जबकि यह स्पष्ट रूप से आतंकी हमला था। यह केवल भाषा की त्रुटि नहीं, बल्कि एक वैश्विक नैरेटिव निर्माण की रणनीति है—जहाँ आतंकी हमलों को अलग-अलग मानकों से परिभाषित किया जाता है। अमेरिका की विदेश मामलों की समिति ने भी इस रिपोर्टिंग की आलोचना करते हुए इसे “आतंकवाद की भयावहता को सामान्यीकरण की खतरनाक प्रवृत्ति” वाला कदम बताया। भारतीय दृष्टिकोण से यह न सिर्फ तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि नैतिक रूप से भी आपत्तिजनक है। प्रश्न यह है कि जब पूरी दुनिया आतंकवाद के विरुद्ध एकजुटता की बात करती है, तो क्या वैश्विक मीडिया को भी समान मानकों का पालन नहीं करना चाहिए? क्या शब्द चयन — जैसे ‘मिलिटेंट’ बनाम ‘टेररिस्ट’ — केवल भाषा का मामला है या वैश्विक नैरेटिव गढ़ने का एक माध्यम?

इन सभी घटनाओं से यह बात स्पष्ट होती है कि पश्चिमी मीडिया भारत के विकास, दृष्टिकोण और पीड़ाओं को या तो कम करके आंकता है या प्रतिकूल ढंग से प्रस्तुत करता है। यह केवल रिपोर्टिंग की बात नहीं है, बल्कि एक गंभीर वैचारिक असंतुलन है, जो औपनिवेशिक सोच की शेष बची धारणाओं को दर्शाता है। यही कारण है कि भारत को अपनी आवाज़, अपने मंच, और अपनी वैश्विक मीडिया रणनीति की ज़रूरत है—जो ना केवल तथ्य प्रस्तुत करे, बल्कि सम्मान और आत्मविश्वास के साथ भारत का पक्ष भी रखे।

इसी प्रकार, COVID-19 महामारी के दौरान भारत की वैक्सीन निर्माण और वितरण क्षमता की उपेक्षा कर, केवल मृत्यु दर और ऑक्सीजन संकट को उभारने वाली रिपोर्टिंग ने एक असहाय और असंगठित भारत की छवि को सुदृढ़ किया।

इस प्रकार की एकतरफा रिपोर्टिंग एक संगठित वैश्विक धारणा का निर्माण करती है, जिसमें भारत को एक असहिष्णु, रूढ़िवादी, या प्रतिक्रियावादी राष्ट्र के रूप में देखा जाता है—जो न केवल भ्रामक है, बल्कि भूराजनीतिक रूप से भी भारत की भूमिका को कमज़ोर करने वाली है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत की जटिल सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संरचना को वैश्विक स्तर पर समझाने और उसके प्रति संतुलित नैरेटिव प्रस्तुत करने के लिए एक सशक्त और विश्वसनीय भारतीय अंतरराष्ट्रीय मीडिया नेटवर्क की आवश्यकता है।

भारतीय मीडिया की वर्तमान स्थिति

भारत में मीडिया का परिदृश्य अत्यंत विविध और गतिशील है। देश में सैकड़ों टेलीविजन चैनल, हजारों समाचार पत्र, और अनगिनत डिजिटल प्लेटफॉर्म्स हैं जो भारत की विशाल, बहुभाषी और सामाजिक रूप से विविध जनसंख्या की सूचना संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यह विविधता लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बनाती है।

हालाँकि, जब बात अंतर्राष्ट्रीय पहुँच, प्रभाव और विश्वसनीयता की होती है, तो भारतीय मीडिया वैश्विक मंच पर अपेक्षित स्तर की उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाया है। बीबीसी, सीएनएन, अल-जज़ीरा जैसे अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क जिनकी रिपोर्टिंग न केवल घरेलू दर्शकों तक बल्कि वैश्विक नीति-निर्माताओं तक पहुँचती है, उनके मुकाबले भारतीय चैनल अभी भी सीमित प्रभाव वाले माने जाते हैं।

सार्वजनिक प्रसारण: दूरदर्शन की सीमित उड़ान

दूरदर्शन, भारत का सरकारी स्वामित्व वाला सार्वजनिक प्रसारणकर्ता है। यह 1959 से संचालित हो रहा है, अब भी देश के सबसे पुराने और व्यापक नेटवर्क में से एक है। इसने ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों तक जानकारी पहुँचाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। हालाँकि, अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसकी उपस्थिति लगभग नगण्य है।

दूरदर्शन इंटरनेशनल (Doordarshan International), जिसे 1995 में शुरू किया गया था, भारतीय संस्कृति और समाचार को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है। लेकिन, यह सीमित दर्शक वर्ग, अपर्याप्त फंडिंग, और कमजोर प्रस्तुति के चलते अपेक्षित प्रभाव नहीं छोड़ पाया। इसकी प्रस्तुति, बजट और वैश्विक पहुँच बीबीसी, सीएनएन या अल-जज़ीरा के स्तर की नहीं है। ये अपने ऐप्स, यूट्यूब चैनलों, सोशल मीडिया अभियानों और अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के माध्यम से वैश्विक दर्शकों तक निरंतर पहुँच बनाए रखते हैं। दूरदर्शन की सामग्री अक्सर सरकार-केंद्रित होने और निजी चैनलों की तुलना में कम आकर्षक होने के लिए आलोचना का सामना करती है। इसके अलावा, दूरदर्शन की तकनीकी और संपादकीय गुणवत्ता वैश्विक मानकों से मेल नहीं खाती, जिसके कारण यह अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों को आकर्षित करने में असमर्थ रहा है। न तो इसकी स्टोरीटेलिंग आधुनिक वैश्विक मानकों पर खरी उतरती है, और न ही इसका प्रोडक्शन मूल्य (Production value) प्रतिस्पर्धी है। यह स्थिति भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ को वैश्विक स्तर पर प्रसारित करने के प्रयासों को सीमित करती है।

निजी मीडिया की पहल: WION और Firstpost आदि का वैश्विक हस्तक्षेप

हाल के वर्षों में पश्चिमी मीडिया के एकतरफा विमर्श के समांतर, भारत के कुछ निजी समाचार प्लेटफॉर्म्स ने वैश्विक मीडिया परिदृश्य में हस्तक्षेप की गंभीर कोशिशें शुरू की हैं। विशेष रूप से WION (World is One News) और Firstpost ने अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के लिए भारतीय परिप्रेक्ष्य को सामने लाने का प्रयास किया है—एक ऐसा प्रयास जो लंबे समय से अपेक्षित था।

WION (World is One News) WION, जिसे 2016 में ज़ी मीडिया कॉरपोरेशन द्वारा शुरू किया गया था। इसकी 190 से अधिक देशों में उपस्थिति है, और यह वैश्विक घटनाओं के निष्पक्ष और गहन कवरेज का वादा करता है, विशेष रूप से दक्षिण एशिया पर ध्यान केंद्रित करते हुए। इसने भारत के परिप्रेक्ष्य को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त की है, विशेष रूप से भू-राजनीतिक मुद्दों और भारत की विदेश नीति पर अपनी कवरेज के माध्यम से। WION ने वैश्विक दर्शकों के लिए अंग्रेजी में उच्च-गुणवत्ता वाली सामग्री प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन, WION ने विदेशी सरकारों से अपने कवरेज के कारण निगरानी का सामना किया है। उदाहरण के लिए, 2020 में, गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य टकराव की कवरेज के बाद इसका यूट्यूब चैनल चीन में अवरुद्ध कर दिया गया था। इसी तरह, 2022 में, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के भाषण का प्रसारण करने के कारण इसे यूट्यूब पर अस्थायी रूप से प्रतिबंधित किया गया था। इसके अलावा, इसके पूर्व पाकिस्तान ब्यूरो प्रमुख को इस्लामाबाद में एक असफल अपहरण प्रयास के बाद निर्वासन में जाना पड़ा। WION पर COVID-19 से संबंधित गलत सूचना फैलाने का भी आरोप लगाया गया है। फिर भी, WION ने अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर भारतीय दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए एक अद्वितीय स्थान बनाया है। इसका यूट्यूब चैनल, जिसमें 7 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर हैं, और सोशल मीडिया पर मजबूत उपस्थिति इसे डिजिटल दर्शकों तक पहुँचने में मदद करती है। WION के प्रमुख शो, जैसे “ग्रेविटास” और “ग्लोबल लीडरशिप सीरीज़,” विश्व नेताओं और विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कार प्रस्तुत करते हैं, जो इसे वैश्विक दर्शकों के लिए आकर्षक बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, WION ने यूनाइटेड किंगडम में फ्रीव्यू जैसे प्लेटफॉर्म्स पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई है, जिससे इसकी पहुंच में लगभग 15 मिलियन दर्शकों का इजाफा हुआ है।

इसी तरह, Firstpost, एक डिजिटल समाचार मंच, ने अपने विश्लेषणात्मक लेखों और वीडियो सामग्री के माध्यम से वैश्विक दर्शकों को आकर्षित करने का प्रयास किया है। Firstpost, नेटवर्क18 का एक ऑनलाइन समाचार पोर्टल, अपने तीक्ष्ण विश्लेषण और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचारों के कवरेज के लिए जाना जाता है। यह भारत के दृष्टिकोण को वैश्विक मुद्दों, जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और मानवाधिकार, पर प्रस्तुत करता है। Firstpost की डिजिटल उपस्थिति इसे युवा और तकनीक-प्रेमी दर्शकों तक पहुंचने में सक्षम बनाती है। यद्यपि यह मुख्य रूप से एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, लेकिन इसके पास भारत और विदेशों में अंग्रेजी बोलने वाले दर्शकों के बीच महत्वपूर्ण पहुँच है। इसका प्रमुख शो “वैन्टेज,” जिसे पालकी शर्मा द्वारा होस्ट किया जाता है, वैश्विक मुद्दों पर एक अद्वितीय भारतीय दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे यह भारत के अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर रुख समझने के लिए एक मूल्यवान संसाधन बन जाता है। Firstpost ने 2013 में एक व्यंग्यात्मक वेबसाइट Fakingnews.com को अधिग्रहित किया, जिसने इसकी डिजिटल उपस्थिति को और मजबूत किया। Firstpost की डिजिटल पहुँच प्रभावशाली है, जिसमें 7 मिलियन मासिक यूनिक विज़िटर्स, और इसकी प्रीमियम सेवा MC Pro के 8.5 लाख से अधिक सशुल्क सदस्य, इसे वैश्विक डिजिटल मीडिया में प्रतिस्पर्धा योग्य बनाते हैं। यह आँकड़ा इसे विश्व स्तर पर शीर्ष 10 सदस्यता साइटों में से एक बनाता है। हालाँकि, Firstpost को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से संपादकीय स्वतंत्रता के संबंध में। 2014 में, नेटवर्क18 के प्राइमटाइम एंकरों के नुकसान की खबरें थीं, जो कथित तौर पर राजनीतिक नेताओं की आलोचना पर प्रतिबंध के कारण थीं। इसके बावजूद, Firstpost ने वैश्विक समाचार क्षेत्र में अपनी महत्वाकांक्षाओं को प्रदर्शित किया है, जैसा कि नेटवर्क18 के मालिक मुकेश अंबानी ने उल्लेख किया है कि यह एक वैश्विक समाचार पावरहाउस बन रहा है।

हालाँकि, इन चैनलों की ईमानदार प्रयासों के बावजूद, यह भी स्वीकार करना होगा कि WION और Firstpost अभी तक BBC, CNN या Al Jazeera जैसी संस्थाओं के समकक्ष प्रभाव नहीं बना पाए हैं। उनकी वित्तीय सीमाएँ, तकनीकी संसाधनों की कमी, और वैश्विक विज्ञापन नेटवर्कों तक सीमित पहुँच उनकी विस्तार क्षमता को सीमित करती है। इसके अतिरिक्त, पश्चिमी मीडिया जगत में वर्षों से निर्मित विश्वास, संसाधन-संपन्न संवाददाता नेटवर्क, और ब्रांड पहचान—अभी भारतीय मीडिया के लिए दूर की कौड़ी हैं। फिर भी, यह इन मीडिया संस्थानों का पहला संगठित प्रयास है जिसमें भारत ने सूचना साम्राज्यवाद (information imperialism) को चुनौती देने की पहल की है। यदि यह प्रयास सतत, स्वतंत्र और गुणवत्ता-निर्भर रहा, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल वैश्विक शक्ति के रूप में उभरेगा, बल्कि वैश्विक विमर्श को भी प्रभावित करेगा।

अन्य देशों से सीखना: भारत के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण

वैश्विक समाचार चैनलों की स्थापना और उनके प्रभाव को देखते हुए, भारत को अन्य देशों के अनुभवों से प्रेरणा लेकर अपनी रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है। BBC, Al-Jazeera, CGTN, RT, France 24, Deutsche Welle (DW), और NHK World-Japan जैसे नेटवर्क विभिन्न मॉडलों और रणनीतियों का उपयोग करके वैश्विक मंच पर अपने देशों का दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। इन उदाहरणों से भारत कई महत्वपूर्ण सबक सीख सकता है, जो एक विश्वसनीय और प्रभावशाली वैश्विक समाचार चैनल की स्थापना में सहायक होंगे।

इन संस्थानों के अनुभव भारत के लिए कई रणनीतिक सबक प्रदान करते हैं:

  • सरकारी समर्थन: लगभग सभी प्रभावशाली वैश्विक चैनलों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार का वित्तीय सहयोग प्राप्त होता है।
  • बहुभाषी प्रसारण: कई भाषाओं में संवाद स्थापित कर ये नेटवर्क वैश्विक दर्शकों से जुड़ते हैं।
  • पेशेवर पत्रकारिता: उच्च पत्रकारिता मानक और गहन रिपोर्टिंग से उन्होंने भरोसेमंद पहचान बनाई है।
  • मजबूत डिजिटल उपस्थिति: सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सक्रियता से ये चैनल युवाओं और वैश्विक ऑडियंस तक प्रभावी रूप से पहुँचते हैं।

भारत, जो अब वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, को भी इन उदाहरणों से प्रेरणा लेकर अपना स्वतंत्र और वैश्विक समाचार चैनल स्थापित करना चाहिए—जो न केवल भारतीय दृष्टिकोण को सशक्त रूप से प्रस्तुत करे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय विमर्श में संतुलन भी स्थापित करे।

भारत को अपना इंटरनेशनल न्यूज़ चैनल (Global news channel) क्यों चाहिए?

भारत के लिए एक इंटरनेशनल न्यूज़ चैनल केवल एक मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि राष्ट्रीय छवि निर्माण, भ्रामक नैरेटिव का काउंटर और सॉफ्ट पावर के विस्तार का एक प्रभावी माध्यम बन सकता है।

  1. अपना नैरेटिव पेश करने के लिए:
    आज भी विदेशों में भारत को अक्सर रूढ़ छवियों—जैसे बॉलीवुड, गरीबी या साँप-सपेरों—के माध्यम से देखा जाता है। एक ग्लोबल चैनल भारत की आर्थिक प्रगति, वैज्ञानिक उपलब्धियों, संस्कृति, और वैश्विक कूटनीतिक दृष्टिकोण को सही संदर्भ में दुनिया के सामने रख सकेगा।
  2. दूसरों के पूर्वाग्रहों का जवाब देने के लिए:
    जैसे 2014 में न्यू यॉर्क टाइम्स ने भारत के मंगल मिशन पर नस्लभेदी कार्टून छापा था, या चंद्रयान-3 की उपलब्धि को अपेक्षित कवरेज नहीं मिली—ऐसे में भारत को अपना ऐसा मंच चाहिए जो गर्व के साथ अपनी उपलब्धियाँ पेश कर सके।
  3. प्रोपेगैंडा और भ्रामक सूचनाओं का मुकाबला करने के लिए:
    वेस्टर्न मीडिया अकसर भारत के खिलाफ एकतरफा रिपोर्टिंग करता है—माइनॉरिटी मुद्दों से लेकर लोकतंत्र की स्थिति तक। एक स्वतंत्र भारतीय चैनल इन मुद्दों पर तथ्य-आधारित रिपोर्टिंग के ज़रिए वैश्विक दर्शकों को संतुलित दृष्टिकोण दे सकता है।
  4. भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ाने के लिए:
    जैसे हॉलीवुड और अमेरिकी मीडिया ने दशकों तक अमेरिका की छवि गढ़ी है, वैसे ही भारत का चैनल योग, आयुर्वेद, दर्शन, और भारतीय जीवनशैली को प्रमोट कर सकता है। इससे न केवल भारत की ग्लोबल इमेज सुधरेगी, बल्कि पर्यटन, व्यापार और कूटनीति को भी बल मिलेगा।
  5. जियोपॉलिटिकल हितों को मजबूत करने के लिए:
    भारत आज G20, BRICS और QUAD जैसे मंचों पर सक्रिय है, लेकिन वैश्विक विमर्श अब भी वेस्टर्न मीडिया द्वारा तय होता है। एक राष्ट्रीय चैनल भारत की विदेश नीति, वैश्विक परियोजनाओं और जिम्मेदार नेतृत्व को उजागर करने में सहायक होगा।

भारतीय मीडिया की चुनौतियाँ: एक वैश्विक समाचार चैनल की राह में आने वाली बाधाएँ

भारत जैसे उभरते वैश्विक शक्ति केंद्र के लिए अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनल की स्थापना केवल एक आकांक्षा नहीं, बल्कि रणनीतिक आवश्यकता बन चुकी है। परंतु इस दिशा में कदम बढ़ाने से पहले हमें उन वास्तविक चुनौतियों को समझना होगा जो इस मार्ग को कठिन बनाती हैं:

1. वित्तीय सीमाएँ: संसाधनों की कमी

एक वैश्विक समाचार चैनल की स्थापना और संचालन अत्यंत महंगा उपक्रम होता है। इसके लिए न केवल विभिन्न देशों में ब्यूरो खोलना आवश्यक है, बल्कि उच्च प्रशिक्षित पत्रकारों, तकनीकी स्टाफ और उन्नत प्रोडक्शन इंफ्रास्ट्रक्चर की भी आवश्यकता होती है। भारतीय मीडिया कंपनियाँ अक्सर बजट की कमी का सामना करती हैं, जो उन्हें अच्छी तरह से वित्तपोषित अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्कों के साथ प्रतिस्पर्धा करने से रोकती है। उदाहरण के लिए, बीबीसी का वार्षिक बजट अरबों पाउंड में है, जबकि WION जैसे चैनल बहुत कम संसाधनों के साथ काम करते हैं, जिससे उनकी कवरेज और प्रसारण क्षमता सीमित रहती है।

2. दीर्घकालिक रणनीति की अनुपस्थिति

भारत में, चाहे सरकार हो या निजी मीडिया कंपनियाँ, अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति को लेकर कोई स्पष्ट और दीर्घकालिक रणनीति विकसित नहीं की गई है। इसके उलट, चीन (CGTN) और रूस (RT) जैसे देश अपने वैश्विक मीडिया चैनलों में राज्य द्वारा समर्थित निवेश के ज़रिए वैश्विक विमर्श में हस्तक्षेप करते हैं। भारतीय मीडिया की प्राथमिकता अक्सर घरेलू राजनीति और टीआरपी-उन्मुख कार्यक्रमों तक सीमित रहती है, जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की आवाज़ कमजोर पड़ जाती है।

3. नियामक और नौकरशाही अड़चनें

विदेशों में समाचार चैनलों को चलाने के लिए प्रसारण लाइसेंस की जटिल प्रक्रिया होती है। भारत की कंपनियाँ इन प्रक्रियाओं से जूझती हैं, जिससे समय और संसाधनों की भारी खपत होती है। इसके अलावा, भारत में मीडिया क्षेत्र में विदेशी स्वामित्व पर नियम कड़े हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों और निवेश को बढ़ावा देना मुश्किल हो जाता है। ये बाधाएँ भारतीय चैनलों के लिए वैश्विक विस्तार को और कठिन बनाती हैं।

4. स्थापित वैश्विक ब्रांड्स से प्रतिस्पर्धा

वैश्विक समाचार परिदृश्य में बीबीसी, सीएनएन, अल-जज़ीरा, फ्रांस 24 जैसे ब्रांड दशकों से उपस्थित हैं। इनके पास न केवल प्रशिक्षित मानव संसाधन और वैश्विक नेटवर्क हैं, बल्कि इन्हें दर्शकों का विश्वास और ब्रांड लॉयल्टी भी प्राप्त है। भारत से किसी नए चैनल के लिए इस तरह की प्रतिष्ठा और पहुँच बनाना एक धीमी, लेकिन संसाधन-प्रधान प्रक्रिया होगी। उदाहरण के लिए, सीएनएन की वैश्विक पहुँच और ब्रांड पहचान इसे नए चैनलों के लिए एक अजेय प्रतिद्वंद्वी बनाती है।

5. भाषाई और सांस्कृतिक चुनौतियाँ

यद्यपि अंग्रेजी भारत में व्यापक रूप से बोली जाती है और वैश्विक समाचार की भाषा है, फिर भी सांस्कृतिक और भाषाई बाधाएँ भारतीय समाचार चैनलों की वैश्विक अपील को सीमित कर सकती हैं। विविध अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के लिए सामग्री तैयार करना वैश्विक संस्कृतियों और प्राथमिकताओं की गहरी समझ की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, अल-जज़ीरा ने मध्य पूर्वी दर्शकों के लिए विशेष रूप से अनुकूलित सामग्री बनाकर अपनी जगह बनाई है, जबकि भारत को अभी तक ऐसी रणनीति विकसित करनी है।

संभावनाएँ और समाधान

हालाँकि, ये केवल बाधाएँ नहीं हैं, बल्कि इन्हें दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति, रणनीतिक निवेश और मीडिया सशक्तिकरण के ज़रिए अवसरों में बदला जा सकता है। भारत यदि एक प्रभावी वैश्विक समाचार चैनल स्थापित करना चाहता है, तो उसे इन चुनौतियों से पार पाने के लिए एक बहुआयामी समाधान संरचना अपनानी होगी:

1. वित्तीय मज़बूती: पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल

एक सशक्त वैश्विक समाचार नेटवर्क की नींव आर्थिक स्थायित्व पर आधारित होती है। इसके लिए भारत को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल को अपनाना चाहिए, जिसमें सरकार और निजी क्षेत्र (जैसे रिलायंस, टाटा, अडानी समूह आदि) संयुक्त रूप से निवेश करें। इस मॉडल का लाभ यह है कि जहां सरकार रणनीतिक दिशा और नियामकीय सहूलियत दे सकती है, वहीं निजी क्षेत्र तकनीकी दक्षता, कॉर्पोरेट गवर्नेंस और स्केलेबिलिटी (आकार या पैमाने में परिवर्तन की क्षमता) लाता है। एक संयुक्त पूंजी से बना चैनल न केवल आत्मनिर्भर होगा, बल्कि दीर्घकालिक दृष्टि से टिकाऊ भी रहेगा।

2. संपादकीय स्वतंत्रता: भरोसे का निर्माण

किसी भी वैश्विक मीडिया ब्रांड की सफलता की नींव क्रेडिबिलिटी पर टिकी होती है। यदि चैनल को पूर्णतः सरकारी नियंत्रण में चलाया जाएगा, तो उस पर “प्रोपेगैंडा चैनल” का ठप्पा लगना स्वाभाविक है। इससे अंतरराष्ट्रीय दर्शकों में संदेह उत्पन्न हो सकता है। इसका समाधान है—एक स्वायत्त, पारदर्शी और जवाबदेह संपादकीय बोर्ड की स्थापना। यह बोर्ड सरकारी या कॉर्पोरेट हस्तक्षेप से स्वतंत्र हो और उसके अंतर्गत फैक्ट-बेस्ड रिपोर्टिंग, बैलेंस्ड विवेचन, और निष्पक्ष विमर्श को प्रोत्साहित किया जाए। बीबीसी ट्रस्ट जैसे मॉडल भारत के लिए अनुकरणीय हो सकते हैं।

3. वैश्विक पहुँच: डिजिटल माध्यमों का उपयोग

बीबीसी और सीएनएन जैसे चैनलों की वैश्विक उपस्थिति वर्षों की नेटवर्किंग और संसाधन निवेश का परिणाम है। भारत के लिए, इस स्तर तक पहुंचने के लिए पारंपरिक माध्यमों पर निर्भर रहना व्यावहारिक नहीं है। भारत को चाहिए कि वह डिजिटल प्लेटफॉर्म्स—जैसे यूट्यूब, ट्विटर/X, इंस्टाग्राम, और ओटीटी सर्विसेज़—का आक्रामक उपयोग करे। ये माध्यम सीमित संसाधनों के बावजूद तेज़, प्रभावशाली और व्यापक प्रसारण संभव बनाते हैं। साथ ही, रीजनल लैंग्वेजेस में कंटेंट निर्माण कर भारत वैश्विक दक्षिण (Global South) के विशाल दर्शकवर्ग से गहरा जुड़ाव बना सकता है।

4. मानव संसाधन का विकास: टैलेंट को निखारना

भारत में पहले से ही अनेक कुशल पत्रकार, एंकर, और डिजिटल क्रिएटर्स हैं, जो घरेलू मीडिया में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। आवश्यकता है कि इन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों की ट्रेनिंग, रिसोर्सेस और एक्सपोज़र मिले। इसके लिए ग्लोबल मीडिया संस्थानों (जैसे Reuters Institute, Columbia Journalism School आदि) के साथ पार्टनरशिप की जा सकती है। साथ ही, भारत को चाहिए कि वह एक ‘न्यूज़ टैलेंट मिशन’ शुरू करे, जिसके अंतर्गत पत्रकारों को विश्वस्तरीय रिपोर्टिंग, इंटरव्यूइंग, और मल्टीप्लेटफॉर्म कंटेंट निर्माण में दक्ष बनाया जाए।

5. प्रतिस्पर्धा में बढ़त: भारत की विशिष्ट पहचान

बीबीसी, सीएनएन और अल-जज़ीरा जैसी संस्थाओं से प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को अपनी विशिष्ट आवाज़ और स्टोरीटेलिंग को केंद्र में रखना होगा। भारत की सांस्कृतिक विविधता, सभ्यता की गहराई, लोकतांत्रिक मूल्यों और आधुनिक उपलब्धियों को समावेशी दृष्टि से प्रस्तुत करना एक ऐसा अवसर है जिसे पश्चिमी मीडिया अक्सर नज़रअंदाज़ करता है। भारतीय चैनल को चाहिए कि वह समावेशी नैरेटिव्स, सभी भूभागों की कहानियाँ, और नवाचारों से जुड़े विषयों को उजागर करे। यह दृष्टिकोण न केवल वैश्विक दर्शकों को आकर्षित करेगा, बल्कि भारत की विचारधारा को भी सम्मान के साथ वैश्विक विमर्श में स्थान दिलाएगा।

निष्कर्ष: भारत को चाहिए अपनी स्वयं की मीडिया शक्ति

समस्त विवेचन से स्पष्ट है कि आज का युग सॉफ्ट पावर और नैरेटिव निर्माण का है। यदि भारत को वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति को निर्णायक बनाना है, तो एक सशक्त, स्वतंत्र और डिजिटल-सक्षम वैश्विक समाचार चैनल की स्थापना अनिवार्य है। यह केवल एक मीडिया परियोजना नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आवश्यकता है। एक ऐसा मंच जो भारत की उपलब्धियों, विविधताओं, और वैचारिक समृद्धता को आत्मविश्वास और निष्पक्षता के साथ प्रस्तुत करे। परंतु यह स्वप्न तभी साकार हो सकता है, जब सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज तीनों एकजुट होकर इस दिशा में ठोस प्रयास करें। नीति, पूंजी और नीयत, यदि इन तीनों में तालमेल हो, तो भारत वैश्विक मीडिया परिदृश्य में अपनी अलग पहचान बना सकता है।


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