US Attack on Iran: ईरान में शांति या शुरू होगा महाविनाश?

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अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया

21 जून, 2025 को मिडिल ईस्ट की ज़मीन एक बार फिर दहल गई है। इस बार इसकी चिंगारी इतनी तेज़ है कि पूरी दुनिया की नज़रें इस क्षेत्र पर टिक गई हैं। माना जा रहा है दुनिया तीसरे वर्ल्ड वॉर की कगार पर है।  अमेरिका ने अचानक ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान—पर ज़ोरदार हमले किए हैं। ये हमले बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स और टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइलों के ज़रिए अंजाम दिए गए। लेकिन असली गेम-चेंजर था 30,000 पाउंड का GBU-57 मासिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर, यानी बंकर बस्टर बम। खासकर फोर्डो, जो एक पहाड़ के 300 फीट नीचे बना हुआ था, उसे नष्ट करने के लिए अमेरिका ने अपने सबसे घातक हथियार, 30,000 पाउंड के जीबीयू-57 मासिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर यानी बंकर बस्टर बमों का इस्तेमाल किया। ये बम इतने ताकतवर हैं कि इन्हें केवल बी-2 बॉम्बर्स ही ले जा सकते हैं, और इज़रायल के पास ऐसी तकनीक नहीं थी।  यही वजह है कि ईजराइल ऑपरेशन राइजिंग लाइन के बाद बार-बार अमेरिका से मांग कर रहा था – ईरान की न्यूक्लियर साइट – फोर्डो सेमति सभी को ख़तम करो।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इन हमलों को “शानदार सैन्य सफलता” करार दिया। अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर उन्होंने लिखा, “हमने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर बहुत ही ज़बरदस्त हमले किए हैं। फोर्डो पर बमों का पूरा पेलोड डाला गया। हमारे सभी विमान सुरक्षित वापस लौट आए।” ट्रम्प ने दावा किया कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अब “पूरी तरह और हमेशा के लिए तबाह” हो चुका है। लेकिन सवाल यह है—क्या यह वाकई इतनी बड़ी जीत है? क्या ये हमले मिडिल ईस्ट में शांति लाएंगे, या फिर ये एक ऐसे युद्ध की शुरुआत हैं, जो पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले सकता है? और इस पूरे खेल में मुस्लिम देशों की क्या भूमिका होगी? आइए, इस कहानी को गहराई से समझते हैं।

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यह हमला इज़राइली ऑपरेशन राइजिंग लायन की अगुआई में किया गया है। 13 जून से इज़रायल ने “ऑपरेशन राइज़िंग लायन” शुरू किया था, जिसका मकसद ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को नष्ट करना था। इज़रायल ने फोर्डो यूरेनियम संवर्धन संयंत्र, अराक हेवी वॉटर रिएक्टर, और कई सैन्य बेस पर बमबारी की। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा, “ईरान का परमाणु हथियार इज़रायल के अस्तित्व के लिए खतरा है।” इजराइल का कहना था कि उसने सिर्फ सैन्य और परमाणु ठिकानों को टारगेट किया, लेकिन ईरानी सरकार ने दावा किया कि इन हमलों में 200 से ज्यादा नागरिक मारे गए। ईरान ने इन हमलों को “संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून का खुला उल्लंघन” बताया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को पत्र लिखकर इज़रायल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियन ने कहा, “हमारा परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, और इसे धमकियों या युद्ध से नहीं रोका जा सकता।” जवाब में ईरान ने इज़रायल पर सैकड़ों मिसाइलें और ड्रोन हमले किए। खासकर तेल अवीव और हाइफा के आसपास के इलाकों पर मिसाइलों और ड्रोन हमलों की बौछार कर दी। इन हमलों में ईरान ने अपनी सबसे उन्नत हाइपरसोनिक मिसाइलें, जैसे कि फतह-110 और खैबर-शेकन, का इस्तेमाल किया। ईरानी सेना का दावा है कि इन हमलों में इज़रायल के कई सैन्य ठिकाने तबाह हो गए। हालाँकि इसमें 24 इज़रायली नागरिकों की भी मौत हुई। इन जवाबी हमलों ने दोनों देशों के बीच हवाई युद्ध को और भड़का दिया, जो अब खतरनाक मोड़ पर पहुँच गया है।

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मुस्लिम देशों की भूमिका: एकता या बिखराव?

इस युद्ध में मुस्लिम देशों की भूमिका बहुत अहम है, लेकिन उनकी प्रतिक्रियाएं अभी तक बिखरी हुई हैं। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे सुन्नी बहुल देशों ने इज़रायल और अमेरिका के हमलों पर खुलकर कोई टिप्पणी नहीं की है। ये देश ईरान के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं और पहले से ही इज़रायल के साथ अपने रिश्तों को सामान्य करने की कोशिश कर रहे हैं। 2020 के अब्राहम एकॉर्ड्स के बाद से सऊदी और इज़रायल के रिश्ते बेहतर हुए हैं, लेकिन वो खुलकर समर्थन नहीं दे रहे। सऊदी सरकार ने चेतावनी दी है कि अगर युद्ध खाड़ी क्षेत्र तक फैला, तो वो अपनी तेल आपूर्ति और सुरक्षा के लिए हर कदम उठाएगी।

दूसरी ओर, ईरान समर्थित समूहों—like लेबनान का हिज़बुल्लाह और इराक के शिया मिलिशिया—ने इज़रायल और अमेरिका की कड़ी निंदा की। हिज़बुल्लाह ने इज़रायल पर रॉकेट हमले शुरू कर दिए हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या मुस्लिम देश एकजुट होकर इस युद्ध को रोकेंगे, या उनकी आपसी फूट इसे और भड़काएगी?

रूस और चीन की प्रतिक्रिया

इस संघर्ष में रूस और चीन की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक फोन कॉल में इज़रायल की कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की। उन्होंने इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया और सभी पक्षों से डी-एस्केलेशन की मांग की।

चीन ने विशेष रूप से इज़रायल को इस संघर्ष के लिए जिम्मेदार ठहराया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इस संकट को हल करने की अपील की। रूस और चीन दोनों के मध्य पूर्व में रणनीतिक हित हैं, और उनकी यह प्रतिक्रिया इज़रायल और अमेरिका के लिए कूटनीतिक चुनौतियाँ बढ़ा सकती है। यह भी संभव है कि यह संघर्ष एक बड़े भू-राजनीतिक टकराव की ओर ले जाए।

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लेकिन असली चिंता यह नहीं कि उन्होंने क्या कहा—बल्कि यह है कि अगर रूस और चीन इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से उतर आएं तो? रूस की उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ और चीन की विशाल सैन्य क्षमता इस युद्ध को तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा सकती हैं। हालांकि रूस की सैन्य मौजूदगी अब मीडिल ईस्ट में पहले जैसी नहीं रही—यूक्रेन युद्ध ने उसे थका दिया है, लेकिन उसका रणनीतिक दायरा अभी भी वैश्विक है। ईरान के साथ उसकी गहरी रक्षा साझेदारी और हथियार तकनीक का आदानप्रदान, अगर एक्टिव मोड में आ गया, तो हालात बेहद मुश्किल हो सकते हैं। वहीं, चीन, जो पहले ही मध्य पूर्व में अपनी आर्थिक पकड़ मजबूत कर चुका है, अगर वह ईरान को हथियार, ड्रोन या साइबर सहयोग देने लगे, तो अमेरिकाइज़राइल की जोड़ी के लिए यह युद्ध दोमोर्चा नहीं, तीनमोर्चा संघर्ष बन जाएगा। और अगर हालात इतने बेकाबू हो गए कि पुतिन या शी जिनपिंग को लगा कि उनका वैश्विक प्रभाव दांव पर लग गया है, तो वे पीछे नहीं हटेंगे—वे सीधे फ्रंटलाइन पर आएंगे। फिर यह युद्ध सिर्फ क्षेत्रीय नहीं रहेगा—यह तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत बन सकता है। अमेरिका, इज़राइल बनाम ईरान, रूस, चीन—ये ध्रुवीकरण ऐसा भंवर पैदा करेगा जिसमें पूरी दुनिया का संतुलन डगमगा सकता है। और तब सवाल सिर्फ यह नहीं होगा कि कौन जीतेगा, बल्कि यह होगा कि दुनिया कितनी बची रह जाएगी।

वैश्विक असर: तेल संकट और भारत की चुनौती

इस युद्ध का असर सिर्फ सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है। मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ने के बाद तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। युद्ध शुरू होने के बाद  ब्रेंट क्रूड की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल के पार चली गई। अगर ये युद्ध खाड़ी क्षेत्र तक फैला, तो होरमुज़ जलसंधि, जहां से दुनिया का 20% तेल गुजरता है, बंद हो सकती है। इसका मतलब? वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान।

भारत के लिए यह संकट और गंभीर है। हम अपने 80% तेल का आयात करते हैं। पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें पहले ही बढ़ चुकी हैं, और महंगाई आसमान छू रही है। इसके अलावा, मिडिल ईस्ट में फंसे भारतीय प्रवासियों को निकालना एक बड़ी चुनौती है। सरकार ने ऑपरेशन सिंधू शुरू किया, जिसके तहत ईरान से अम्रेनिया के जरिये भारतीयों को निकाला जा रहा है।

शांति की उम्मीद: क्या कोई रास्ता बचा है?

इस युद्ध को रोकने के लिए कूटनीति की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने तुरंत युद्धविराम की अपील की है। उन्होंने कहा कि इस बात का खतरा बढ़ रहा है कि यह संघर्ष तेजी से नियंत्रण से बाहर हो सकता है – जिसके नागरिकों, क्षेत्र और दुनिया के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इस खतरनाक समय में, अराजकता के चक्र से बचना महत्वपूर्ण है। इसका कोई सैन्य समाधान नहीं है। आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता कूटनीति है। एकमात्र उम्मीद शांति है। “तुर्की और कतर जैसे देशों ने मध्यस्थता की पेशकश की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।। ईरान ने कहा कि वो युद्धविराम के लिए तैयार है, बशर्ते इज़रायल और अमेरिका पहले हमले रोकें। लेकिन इज़रायल और अमेरिका का कहना है कि वो तब तक रुकेंगे नहीं, जब तक ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता। इस युद्ध के बीच एक सवाल जो हर किसी के मन में है, वो ये है कि क्या मिडिल ईस्ट में शांति मुमकिन है? या फिर ये क्षेत्र विनाश की ओर बढ़ रहा है? क्या यह युद्ध तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जाएगा?

आगे की राह

इस युद्ध में मुस्लिम देशों की भूमिका  बहुत अहम होगी। अगर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश ईरान के खिलाफ इज़रायल और अमेरिका का साथ देते हैं, तो ये युद्ध और भयानक हो सकता है। लेकिन अगर वो तटस्थ रहते हैं और कूटनीति के ज़रिए हल निकालने की कोशिश करते हैं, तो शायद शांति की उम्मीद बनी रहे। 

इस कहानी का अगला हिस्सा क्या होगा, ये वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना ज़रूर है कि मिडिल ईस्ट की इस आग का असर सिर्फ़ वहां तक सीमित नहीं रहेगा। ये आग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले सकती है। तेल संकट, महंगाई, और युद्ध का खतरा—हर कोई इससे प्रभावित है।


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