हाल ही में सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एक रिपोर्ट जारी कि है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) के खिलाफ अत्याचार के सभी मामलों में से लगभग 97.7 प्रतिशत मामले केवल 13 राज्यों में दर्ज किए गए हैं। वहीं उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ऐसे दर्ज मामलों की संख्या सर्वाधिक रही। इसके साथ ही अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अत्याचार के अधिकांश मामले भी 13 राज्यों में केंद्रित थे। इन 13 राज्यों में वर्ष 2022 में ऐसे सभी मामलों का 98.91 प्रतिशत केस दर्ज हुआ था।
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क्या हैं अनुसूचित जाति और जनजाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (The Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act), 1989 के तहत जारी रिपोर्ट के आपराधिक आँकडें?
- अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए कानून के तहत 2022 में कुल 52,866 मामले दर्ज हुए।
- इस संबंध में देश के 13 राज्यों में दर्ज मामले कुल मामलों का लगभग 51,656 मामले दर्ज हुए। यानी केवल 13 राज्यों में ही कुल मामलों का 97.7% दर्ज हुआ।
- इन 51,656 मामलों में से, उत्तर प्रदेश में 12,287 (23.78%), राजस्थान में 8,651 (16.75 %) और मध्य प्रदेश में 7,732 (14.97 %) मामले दर्ज हुए। इन तीन राज्यों के बाद बिहार में 6,799 (13.16%), ओडिशा में 3,576 (6.93%) और महाराष्ट्र में 2,706 (5.24 %) मामले दर्ज हुए।
- इसका अर्थ यह है कि उपर्युक्त 6 राज्यों के पास एससी एसटी अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एससी जाति के खिलाफ कुल दर्ज मामले का 81% हिस्सा है।
- इसी तरह, एसटी के खिलाफ अत्याचार के अधिकांश मामले भी 13 राज्यों में केंद्रित थे।
- वर्ष 2022 में एसटी जाती के खिलाफ दर्ज अपराधों की कुल संख्या 9,735 थी।
- एसटी जाती के खिलाफ दर्ज अपराध के मामलों में से मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 2,979 (30.61%) मामले दर्ज हुए। इसके बाद राजस्थान में 2,498 (25.66%) ओडिशा में 773 (7.94 %), महाराष्ट्र में 691 (7.10%) और आंध्र प्रदेश में 499 (5.13%) मामले दर्ज हुए।
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अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत जाँच और आरोप-पत्र दाखिल करने की क्या है स्थिति?
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989 के तहत जारी हालिया रिपोर्ट ने अधिनियम के तहत जांच और आरोप-पत्र दाखिल करने की स्थिति के बारे में भी जानकारी दी। इन आँकडों के अनुसार
- अनुसूचित जाति से संबंधित कुल मामलों में, 60.38% मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए, जबकि 14.78 प्रतिशत झूठे दावों या सबूतों की कमी जैसे कारणों से अंतिम रिपोर्ट के साथ समाप्त हुए।
- 2022 के अंत तक, 17,166 मामलों में जाँच लंबित थी।
- अनुसूचित जनजाति से संबंधित मामलों में, 63.32 प्रतिशत मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए, जबकि 14.71% मामले अंतिम रिपोर्ट के साथ समाप्त हुए। जबकि अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचार से जुड़े 2,702 मामले जाँच के अधीन थे।
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अनुसूचित जाति और जनजाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जारी रिपोर्ट की अन्य मुख्य बातें-
- रिपोर्ट ने माना कि एस-एस अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामलों के लिए सजा दर घट रही है। 2022 में, सजा दर 2020 के 39.2 % से घटकर 32.4% हो गई है।
- रिपोर्ट ने कानून के तहत मामलों को संभालने के लिए स्थापित विशेष अदालतों की अपर्याप्त संख्या की ओर भी इशारा किया। इसके अनुसार 14 राज्यों के 498 जिलों में से केवल 194 ने इन मामलों में सुनवाई में तेजी लाने के लिए विशेष अदालतें स्थापित की हैं।
- इस रिपोर्ट में विशेष रूप से अत्याचारों से ग्रस्त विशिष्ट जिलों की भी पहचान की गई है, जिनमें से केवल 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ऐसे जिलों की घोषणा की है। बाकी ने कहा कि अत्याचार के ऐसे मामलों से ग्रस्त कोई जिला नहीं है। अत्याचार के ऐसे मामलों से ग्रस्त कोई जिला नहीं करार देने वाले राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश भी था।
- रिपोर्ट में जाति आधारित हिंसा की घटनाओं को रोकने और कमजोर समुदायों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अत्याचारों से ग्रस्त विशिष्ट जिलों में लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर दिया है।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और पुडुचेरी में एससी/एसटी सुरक्षा प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं।
- एससी और एसटी के खिलाफ अपराधों की शिकायतों के पंजीकरण के लिए केवल पांच राज्यों – बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश ने विशेष पुलिस स्टेशन स्थापित किए हैं।
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क्या है अनुसूचित जाति और जनजाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989?
अनुसूचित जाति और जनजाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 एससी और एसटी के सदस्यों पर अन्य व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के अपराधों को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान है। यह अन्य व्यक्तियों द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध किए गए अत्याचारों के अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करता है। बता दें कि यह अधिनियम अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच या अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के बीच किए गए अपराधों पर लागू नहीं होता है। अधिनियम में 37 अपराध शामिल हैं जिनमें आपराधिक अपराध करने और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के आत्म-सम्मान और प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाले व्यवहार शामिल हैं। इनमें आर्थिक, लोकतांत्रिक और सामाजिक अधिकारों से वंचित करना, कानूनी व्यवस्था का शोषण और दुरुपयोग आदि शामिल है।
इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए नियम बनाने के लिए अधिकृत है। जबकि अधिनियम को संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है, जिन्हें अधिनियम के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के तहत उचित केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
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