शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब ने एक शेर बखूबी कहा है कि
“दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है।”
इस शेर के मायने कुछ इस तरह हैं कि अभी मुझे बेशक नाकामी मिल रही है, लेकिन मेरा दिल ना उम्मीद नहीं है। वो नाकाम होने के बाद भी उम्मीद से भरा हुआ है। दुख की रात असहनीय रूप से लंबी जरूर है, लेकिन आखिरकार यह एक रात ही है, जिसके बाद सुबह होना तय है। ये शेर हमें बताता है कि कैसे हमें बार-बार मिल रहीं असफलताओं के बावजूद भी निराश होकर नहीं बैठना चाहिए। हमें एक उम्मीद के सहारे लगातार कोशिश करते रहना चाहिए। इससे हमें एक न एक दिन सफलता जरूर मिलेगी।
इतिहास गवाह है कि उम्मीदों पर पलने वाले लोगों ने ही सबसे बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं। चाहे फिर वो भारतीय स्वतंत्रता सेनानी हों जिन्होंने निहत्थे भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी दिलवाई, या फिर थॉमस एडिसन हों, जिन्होंने सैकड़ों असफल प्रयासों के बाद भी बल्ब का आविष्कार किया। इन महान व्यक्तियों ने कभी हार न मानने का संकल्प लिया था और अपनी उम्मीदों को कभी मरने नहीं दिया। यही वजह कि ये अपने मकसद में कामयाब हुए।
दरअसल, उम्मीद का मतलब होता है एक ऐसी आशा की किरण, जो हमें अंधेरे में भी रास्ता दिखाती है। यह वह शक्ति है जो हमें कठिन समय में भी जीने का हौसला देती है। यही वो शक्ति भी है जो घोर निराशा के चक्रव्यूह से बाहर निकलने का मार्ग दिखाती है। यह एक ऐसा जज्बा है, जिसके बल पर इंसान कठिनाइयों का सामना कर सकता है और तमाम असफलताओं के बावजूद फिर से खड़ा हो सकता है।
इस तरह उम्मीद वह शक्ति है जो किसी इंसान को लगातार एक्टिव रखती है, चाहे फिर परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों न हों। यह वह दीपक की लौ है जो अंधकार के सागर में भी प्रकाश की एक रेखा की तरह हमें दिखाई देती है। उम्मीद एक ऐसा आधार है जिस पर हमारा विश्वास टिका रहता है और यह हमें जीवन की निराशाजनक स्थितियों से लड़ने की ताकत प्रदान करती है।
हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी उम्मीद का बड़ा महत्त्व है। जब हम किसी बीमारी, पारिवारिक समस्या या किसी Job में Failure का सामना करते हैं, तब हमारी उम्मीद ही हमें बताती है कि कल बेहतर होगा। इस आशा के सहारे हम दोबारा उठ खड़े होते हैं और अपने सपनों की ओर बढ़ते हैं। उम्मीद की यह शक्ति केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। समाज में जब हम निराशा के बोझ तले दबे होते हैं, तो उम्मीद हमें एक दूसरे का साथ देने की प्रेरणा देती है। इसी तरह, जब एक राष्ट्र किसी बड़ी आपदा या संकट से गुजरता है, तो यह उम्मीद ही होती है जो उसे एकजुट करती है और आगे बढ़ने की दिशा दिखाती है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब दुनियाभर में कोरोना महामारी का प्रकोप छाया हुआ था, जब चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। उस सन्नाटे में अगर कोई शोर सुनाई दे रहा था, तो वो Ambulance के sirens की आवाज थी, जो मरीजों को Hospital लाने ले जाने का काम कर रही थी। इस महामारी से पुरी दुनिया मानो कैद कर दी गई हो। दुनिया भर के देशों में लॉकडाउन लगा हुआ था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लोग अपने घरों में कैद हो चुके थे। लेकिन, इन विकट परिस्थितियों में लोगों को एक उम्मीद जरूर थी कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा। लोग आपस में एक दूसरे को दिलासा दे रहे थे कि सब ठीक हो जाएगा, घबराओ मत। इस उम्मीद के सहारे ही ज्यादातर लोग आने वाले कल को खुशहाली भरा देख रहे थे और हुआ भी वही। करीब दो साल के लंबे वक्त के बाद दुनिया ने कोरोना के ऊपर जीत हासिल की और लोग फिर से आजादी से चैन की सांस ले सके। इस तरह उस विकराल दौर में उम्मीद ने ही लोगों को यह विश्वास दिलाया कि संकट की इस घड़ी को पार करना संभव है। इससे हम में से हर कोई उम्मीद के इस चमत्कार को महसूस कर सकता है। जब भी हम किसी व्यक्तिगत संकट या चुनौती का सामना करते हैं, तो हमारी उम्मीद ही हमें उससे लड़ने की ताकत देती है। चाहे वह एक छात्र हो, जो अपने परीक्षा के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा हो या एक रोगी जो बीमारी से जूझ रहा हो, उम्मीद की यह किरण उन्हें निराशा से उबरने में मदद करती है।
हमारे इतिहास के पन्नों में अनेकों ऐसी कहानियाँ भरी पड़ी हैं, जहाँ उम्मीद ने न केवल व्यक्तियों बल्कि पूरे समाजों को उनके सबसे कठिन समय में सहारा दिया है। चाहे वो महात्मा गांधी की नेतृत्व वाली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की बात हो, या नेल्सन मंडेला द्वारा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के खिलाफ की गई लड़ाई की, हर कहानी में उम्मीद की एक अमिट छाप मौजूद है।
बेशक उम्मीद की ज्वाला हमें घनघोर अंधेरे में राह दिखाने का काम करती है। मगर, कई बार ऐसा भी होता है कि लगातार उम्मीदों के टूटते रहने पर हम में से कई लोग भी टूटने लगते हैं। ऐसे में हम भी ना-उम्मीद होते नजर आते हैं। फिर सवाल आता है कि क्या हमें उम्मीद से किनारा कर लेना चाहिए या फिर ऐसी स्थिति में उम्मीद कैसे बनाए रखें। तो दोस्तों इसका जबाव देना आसान नहीं है। इतना जरूर कहा जा सकता है कि हमें ना उम्मीद होकर बैठना नहीं चाहिए। क्योंकि बैठे रहने से कुछ हासिल नहीं हो सकता। हमें अपना काम करते हुए अपनी उम्मीद को बनाए रखना चाहिए। और उम्मीद बनाए रखने के लिए आत्म-साक्षात्कार और आत्म-संवाद महत्त्वपूर्ण हैं। इसके तहत हम अपने आप से प्रश्न करें, अपने विचारों और भावनाओं को समझें और positive रहने की कोशिश करें। कोई भी समस्या चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसका समाधान संभव है। उम्मीद और दृढ़ संकल्प से कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। मुश्किल समय में अपनी उम्मीदों को ताजा करने के लिए हमें छोटी-छोटी सफलताओं और खुशियों का जश्न मनाना चाहिए। क्योंकि उम्मीद न केवल हमें जीवित रखती है, बल्कि यह हमें उन ऊँचाइयों तक भी पहुँचाती है, जहाँ हमारे सपने साकार होते हैं।
इसलिए, हमें अपनी उम्मीदों को कभी मरने नहीं देना चाहिए, क्योंकि ‘एक उम्मीद ही तो है जो कभी खत्म नहीं होती’।
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