हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 5 नई भाषाओं को शास्त्रीय भाषा (Classical Language) का दर्जा दिया है। ये 5 भाषाएं मराठी, बंगाली, असमिया, पाली और प्राकृत हैं। इनका संबंध मुख्य रूप से महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) राज्य से है। इस मंजूरी के साथ ही अब देश में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या 11 हो गई है। शास्त्रीय भाषाएँ भारत की विरासत के संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो एक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा को बताती है।
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क्या है शास्त्रीय भाषा (Classical Language) ?
अक्टूबर 2004 में, केंद्र ने ‘शास्त्रीय भाषाओं’ के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का फैसला किया, जिसमें तमिल वह पहली भाषा थी, जिसे शास्त्रीय भाषा (Classical Language) घोषित किया गया। इसके लिए कई मानदंड बनाए गए। जैसे कि भाषा मौलिक होनी चाहिए तो वहीं इसके शुरुआती ग्रंथों का हजारों वर्ष पुराना होना आवश्यक था। यानी ऐतिहासिक रूप से इसकी उच्च प्राचीनता और साहित्यिक मौलिकता जरूरी थी। इसके साथ ही यह भी मानदंड था कि भाषा की साहित्यिक परंपरा मूल होनी चाहिए और किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार ली हुई नहीं होनी चाहिए।
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नवंबर 2004 में, साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषा (Classical Language) का दर्जा दिए जाने के लिए प्रस्तावित भाषाओं की पात्रता की जांच करने के लिए एक भाषाई विशेषज्ञ समिति (LEC) का गठन किया गया था। इस भाषाई विशेषज्ञ समिति (LEC) ने उपर्युक्त मानदंडों के साथ शास्त्रीय भाषाएँ और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या इसके बाद के रूपों के साथ असंगत हो सकते हैं के आधार पर वर्ष 2005 में संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया। वर्ष 2008 में तेलुगु और कन्नड़ और 2013 और 2014 में मलयालम और ओडिया को शास्त्रीय भाषा की सूची में शामिल किया गया। हालांकि जुलाई 2024 में भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति की ने शास्त्रीय दर्जा देने के मानदंडों को संशोधित कर दिया है। इस संशोधन के बाद ही पांच भाषाओं मराठी, बंगाली, असमिया, पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषा के रूप में नामित किया गया। नए संशोधन के बाद शास्त्रीय भाषा” के लिए निम्नलिखित मानदंड अपनाए गए हैं –
- 1500-2000 वर्षों की अवधि में इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की उच्च प्राचीनता
- प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक समूह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा विरासत माना जाता है
- ज्ञान ग्रंथ, विशेष रूप से कविता के अलावा गद्य ग्रंथ, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य
- शास्त्रीय भाषाएँ और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या इसके बाद के रूपों के साथ असंगत हो सकते हैं
बता दें कि भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति में केंद्रीय गृह, संस्कृति मंत्रालयों के प्रतिनिधि और किसी भी समय चार या पांच भाषा विशेषज्ञ शामिल होते हैं। इसकी अध्यक्षता साहित्य अकादमी के अध्यक्ष करते हैं।
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किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा (Classical Language) का दर्जा देने के लाभ क्या हैं?
किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा (Classical Language) का दर्जा देने के लाभ निम्नलिखित हैं-
- एक बार जब किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित कर दिया जाता है, तो शिक्षा मंत्रालय उसे बढ़ावा देने के लिए कुछ लाभ प्रदान करता है, जिसमें उक्त भाषाओं के विद्वानों के लिए दो प्रमुख वार्षिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं।
- शास्त्रीय भाषाओं में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया जाता है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध किया जाता है कि वह कम से कम केंद्रीय विश्वविद्यालयों में, घोषित शास्त्रीय भाषाओं के लिए एक निश्चित संख्या में पेशेवर कुर्सियाँ बनाएँ।
- विश्वविद्यालयों और संस्थानों में विशेष पाठ्यक्रम शुरू होते हैं और प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय अध्ययन को बढ़ावा मिलता है।
- औद्योगिक और कारखाने को भाषा अनुसंधान, औद्योगिक संरक्षण और भाषा अध्ययन में रोजगार की संभावनाबढ़ती है।
- इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेज़ीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार पैदा होंगे।”
- शिक्षा मंत्रालय शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाता है। संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। इसी तरह प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा प्रदान करने और तमिल में पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई। साथ ही शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को बढ़ाने के लिए कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र भी स्थापित किए गए।
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