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SCO एवं SAARC
दोस्तों, एक गाँव की कल्पना कीजिये, जहाँ दो ऐसे लोग रहते हैं, जिनके बीच हमेशा तनाव (Tension) बना रहता है। इसके चलते दोनों के बीच दुश्मनी गहरे स्तर पर पहुँच चुकी है, जिसका हल ढूँढना दूर की कौड़ी हो गई है। हालाँकि, इस दौरान एक ऐसा समय भी आता है; जब ये दोनों, गाँव के दूसरे लोगों के साथ मिलकर एक समूह (Group) बनाते हैं। इसका उद्देश्य सदस्यों (Members) के बीच आपसी सहयोग से शांति और प्रगति प्राप्त करना होता है। लेकिन, जब भी इस विषय पर कोई चर्चा होती है, तो इनकी दुश्मनी बैठक (Meeting) में बात-बात पर जगजाहिर हो जाती है। हर बार ऐसा होने के बाद Group की Meetings का कोई Result नहीं निकलता है और इस तरह यह Group almost fail हो जाता है।
उधर, दूसरे गाँव के लोग अपनी साझा समस्याओं को सुलझाने के लिये एक अलग ग्रुप बनाते हैं। ये ग्रुप ठीक से काम करने लगता है। इसकी जब भी किसी मुद्दे पर बैठक होती है, तो वो लगभग अपने अंजाम पर पहुँचती है। इसे देखते हुए अब इसमें दोनों अघोषित दुश्मन जुड़ने का आग्रह करते हैं और उन्हें अंततः (Eventually) इसमें Entry मिल जाती है। इसके बाद जहाँ ये खुद के द्वारा बनाये ग्रुप में लड़ते थे, वहीं अब ये इस ग्रुप में उस प्रकार से नहीं लड़ते हैं। इनके कारण अब इस दूसरे ग्रुप की बैठक बर्बाद नहीं होती हैं।
अब हम हकीकत पर आते हैं। दरअसल, ये दोनों व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि भारत और पाकिस्तान हैं। दोनों देशों ने South Asia के अन्य 5 देशों के साथ मिलकर दक्षेस (South Asian Association for Regional Cooperation: SAARC ) को बनाया था। लेकिन, यह संगठन अब तक कुछ खास हासिल नहीं कर सका है, सिवाय समय खर्च (Time Consuming) करने के। दूसरी ओर, रूस और चीन जैसे देशों वाला शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Co-operation Organisation: SCO) है, जिसके भारत और पाकिस्तान दोनों ही सदस्य देश हैं। इस मंच (Platform) पर दोनों देश अपनी सहूलियत के हिसाब से अपनी-अपनी बात रखते हैं। इसी कारण एक प्रश्न निकलकर सामने आता है कि जहाँ एक ओर दोनों देशों को SAARC के Failure के लिये उत्तरदायी माना जाता है, वहीं दूसरी ओर ये दोनों SCO में अपने हितों को कैसे आगे बढ़ा रहे हैं? आखिर वे कौन सी बातें थीं, जिनके कारण SAARC लगभग Fail हो गया? और क्या वाकई SCO ने SAARC को अप्रासंगिक बना दिया है? इन सब प्रश्न के उत्तर से पहले थोड़ा SAARC के बारे में जान लीजिये।
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दक्षेस क्या है (What is SAARC)?
SAARC अर्थात् South Asian Association for Regional Cooperation, दक्षिण एशिया के 8 देशों का एक संगठन है। ये देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और मालदीव हैं। इसे हिंदी में दक्षेस अर्थात् दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन कहा जाता है। इसका गठन 8 दिसंबर 1985 को हुआ था और इसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग से शांति और प्रगति प्राप्त करना है। इस प्रकार यह दक्षिण एशिया के देशों का आर्थिक एवं राजनीतिक (Economic and Political) संगठन है।
असल में, 1970 के दशक में बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने दक्षिण एशियाई देशों के एक व्यापार गुट को बनाने का प्रस्ताव किया था। लेकिन, South Asia में आपसी सहयोग के लिए संगठन बनाने की बात सबसे पहले मई 1980 में उठी थी। फिर अप्रैल 1981 में विचार-विमर्श के बाद पहली बार श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में इन देशों के विदेश सचिवों की बैठक हुई। इसके बाद अगस्त 1983 में दिल्ली में पहली बार सदस्य देशों के विदेश मत्रियों की बैठक हुई। इसी क्रम में दिसंबर 1985 में हुये शिखर सम्मेलन में एक चार्टर को स्वीकार किया गया, जिसके तहत SAARC की स्थापना की गई। इसका सचिवालय नेपाल के काठमांडू में स्थित है। गौरतलब है कि भारत के प्रयास से इस क्षेत्रीय समूह में 13 नवम्बर 2005 को अफगानिस्तान को शामिल किया गया था, जो आगे चलकर 3 अप्रैल 2007 को इसका आठवाँ सदस्य देश बना था।
शंघाई सहयोग संगठन क्या है (What is the Shanghai Cooperation Organisation)?
शंघाई सहयोग संगठन एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई (चीन) में कजाकिस्तान गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, किर्गिज गणराज्य, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य और उज्बेकिस्तान गणराज्य द्वारा की गई थी। इसका पूर्ववर्ती शंघाई फाइव का तंत्र था। 2002 में, सेंट पीटर्सबर्ग में राष्ट्राध्यक्षों की परिषद की बैठक में शंघाई सहयोग संगठन के चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए, जो 19 सितंबर, 2003 को लागू हुआ। यह एक क़ानून है जो संगठन के लक्ष्यों, सिद्धांतों, संरचना और गतिविधियों के प्रमुख क्षेत्रों को निर्धारित करता है। इसकी आधिकारिक भाषाएँ रूसी और चीनी हैं।
वर्तमान में इसके 9 सदस्य देश- भारत गणराज्य, इस्लामी गणराज्य ईरान, कजाकिस्तान गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, किर्गिज़ गणराज्य, इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य, उज्बेकिस्तान गणराज्य हैं। जबकि, 3 पर्यवेक्षक देश – इस्लामी गणराज्य अफगानिस्तान, बेलारूस गणराज्य, मंगोलिया हैं। वहीं इसके 14 संवाद भागीदार देश हैं। इनमें अज़रबैजान गणराज्य, आर्मेनिया गणराज्य, बहरीन साम्राज्य, मिस्र अरब गणराज्य, कंबोडिया साम्राज्य, कतर राज्य, कुवैत राज्य, मालदीव गणराज्य, म्यांमार संघ गणराज्य, नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब साम्राज्य, तुर्की गणराज्य और श्रीलंका लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य शामिल हैं।
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शंघाई सहयोग संगठन के लक्ष्य (Objectives of the Shanghai Cooperation Organisation)
- सदस्य राज्यों के बीच आपसी विश्वास, मित्रता और अच्छे पड़ोसी को मजबूत करना;
- राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संस्कृति, शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण आदि जैसे क्षेत्रों में सदस्य राज्यों के बीच प्रभावी सहयोग को प्रोत्साहित करना;
- क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को संयुक्त रूप से सुनिश्चित करना और बनाए रखना; और
- एक नई लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और तर्कसंगत अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देना।
राष्ट्राध्यक्षों की परिषद (Council of Heads of States)
SCO का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय राष्ट्राध्यक्षों की परिषद (Council of Heads of States: CHS) है। यह वर्ष में एक बार बैठक करता है और संगठन के सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेता है। सरकार के प्रमुखों (प्रधानमंत्रियों) की परिषद (CHG) संगठन के भीतर बहुपक्षीय सहयोग और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की रणनीति पर चर्चा करने, आर्थिक और अन्य क्षेत्रों में मौलिक और सामयिक मुद्दों को निर्धारित करने और SCO के बजट को मंजूरी देने के लिए वर्ष में एक बार बैठक करती है।
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आखिर सार्क क्यों असफल हुआ (Why did SAARC fail)?
कहने को तो SAARC देशों की संस्कृति (Culture) और रीति रिवाज लगभग एक जैसे हैं। इन देशों के आम लोगों के बीच आपस में बहुत मतभेद भी नहीं हैं। यहाँ तरक्की की तमाम संभावनाएँ मौजूद हैं। चाहे कच्चा माल (Raw Material) हो या कुशल श्रमिक (Skilled labour), यहाँ सब कुछ उपलब्ध है। SAARC की स्थापना के उद्देश्यों में इस क्षेत्र को गुरबत से निकालकर विकास के रास्ते पर लाना था। साथ ही क्षेत्र में एकीकरण, बेहतर Connectivity और आपसी व्यापार बढ़ाना भी इसके उद्देश्य हैं। लेकिन अभी तक इसमें कोई खास सफलता हासिल नहीं हो सकी है। इसे लेकर अब एक आम राय बन गई है कि इसके हाथ सफलताओं से ज्यादा असफलताएँ लगी हैं। इन असफलताओं में अगर किसी को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है, तो वे भारत और पाकिस्तान हैं। इन दोनों देशों के मुद्दों ने SAARC की बैठकों को लगभग हर बार प्रभावित किया है। इनमें आतंकवाद (Terrorism) एवं क्षेत्रीय दावों (Regional Claims) को लेकर विवाद जगजाहिर है।
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असल में, भारत-पाकिस्तान के संबंधों में तल्ख़ी SAARC गठन के पहले से रही है। यह तल्ख़ी संगठन की स्थापना के दौरान भी झलकी थी। जानकारों के अनुसार भारत को भय था कि दक्षेस की मजबूती से उसकी क्षेत्रीय अहमियत घट जाएगी, तो वहीं पाकिस्तान को इस बात का खौफ था कि इस संगठन पर भारत का वर्चस्व रहेगा, जिसे वो अपने हितों के खिलाफ मानता है। हालाँकि, कोविड-19 महामारी के दौरान वर्ष 2020 में ऐसा मौका आया था, जब लगा कि अब शायद SAARC की गाड़ी दोबारा पटरी पर चल पड़ेगी। इस समय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक अप्रत्याशित कूटनीतिक कदम उठाते हुए सार्क के राष्ट्राध्यक्षों की एक वर्चुअल बैठक बुलाई थी। 15 मार्च 2020 को हुई इस बैठक में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को छोड़कर सभी सदस्य देशों के राज्य या सरकार प्रमुख शामिल हुए थे। इमरान खान ने जानबूझकर इसमें अपने प्रतिनिधि के तौर पर स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉक्टर जफर मिर्जा को बैठा दिया था। इन्होंने कश्मीर की So called नाकेबंदी का सवाल उठा दिया। बैठक में इन्होंने कहा कि भारत अपने हिस्से वाले कश्मीर में नाकेबंदी हटाए, ताकि वहाँ लोगों को स्वास्थ्य संबंधी मदद पहुँचाई जा सके। इनकी इस तरह की हरकत से एक अच्छे खासे प्रयासों पर पानी फिरना तय ही था। ऐसा ही कुछ मामला सार्क Satellite की Launch के दौरान भी हुआ था। पाकिस्तान की माँग थी कि इस Satellite का नियंत्रण (Control) केवल इसरो के पास न रहे, बल्कि इसका नियत्रंण SAARC देशों को दिया जाए। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने कहा था कि भारत इस Satellite के जरिये पड़ोसी देशों की संवेदनशील जानकारियाँ जुटा सकता है। हालाँकि, भारत ने इस आरोप को खारिज कर दिया था। आखिरकार, पाकिस्तान ने इस प्रोजेक्ट से खुद को अलग कर लिया था। इस प्रकार पाकिस्तान सार्क ढाँचे के तहत किसी भी तरह के क्षेत्रीय एकीकरण का विरोध करता है। यही कारण है कि अब यह संगठन ICU में है। आलम ये है कि भारत इसे मरने नहीं देना चाहता और पाकिस्तान इसे जीने नहीं देना चाहता।
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क्या एससीओ ने सार्क को अप्रासंगिक बना दिया है (Has SCO made SAARC irrelevant)?
असल में, यह प्रश्न इसलिये आया कि नियम के अनुसार SAARC की मेजबानी पाकिस्तान को करनी थी। इसलिये SAARC का 19वाँ सम्मेलन पाकिस्तान के इस्लामाबाद में होना था। लेकिन, इसी दौरान भारत के पठानकोट स्थित एयरबेस में आतंकी हमले को अंजाम दिया गया था। इसके चलते भारत ने इस सम्मेलन में हिस्सा लेने से मना कर दिया था। ऐसी ही घोषणा बांग्लादेश ने भी की थी। भारत का कहना था कि क्षेत्रीय सहयोग और चरमपंथ एक साथ नहीं चल सकते।
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हालाँकि, जानकारों ने भारत के इस कदम को पाकिस्तान को पूरी SAARC प्रक्रिया पर वीटो देने के समान माना था। क्योंकि, यह विशेष रूप से एक पेचीदा स्थिति है। भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं उनके कैबिनेट मंत्री अपने पाकिस्तानी समकक्षों के साथ Shanghai Co-operation Organisation की बैठकों में अपनी भारीदारी जारी रखी थी। इसमें नवंबर, 2020 में Heads of Government की SCO बैठक भी शामिल है। इस बैठक में भारत ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को भी आमंत्रित किया था। साथ ही भारत SCO के इस सम्मेलन में चीन के होते भी शामिल हुआ था, जबकि लद्दाख में चीन की घुसपैठ और गलबान घाटी में संघर्ष एक बड़ी चिंता का विषय बन गया था। गौरतलब है कि साल 2017 में SCO की पूर्ण सदस्यता प्राप्त करने के बाद यह पहली बार था, जब भारत की अध्यक्षता में SCO की शिखर सम्मेलन स्तरीय (Summit-level) बैठक आयोजित की गई थी। बीते वर्ष अर्थात् 2023 में भी भारत के पास SCO की Presidency थी। इसमें भारत ने पाकिस्तान के प्रतिनिधि को भी भारत आने के लिये आमंत्रित किया था। इसके बाद पाकिस्तान की ओर SCO के शिखर सम्मेलन भार लेने के लिये पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी भारत आए थे। यहाँ एक और बात गौर करने वाली है जहाँ अफगानिस्तान इसमें पर्यवेक्षक (Observer) के रूप में शामिल है, तो नेपाल और श्रीलंका इसके संवाद सहयोगी (Dialogue Partner) हैं। जबकि बांग्लादेश आगामी संवाद साझेदार (Upcoming Dialogue Partner) है। ये सभी देश SAARC के सदस्य देश हैं। अभी हाल ही में 16 अक्टूबर, 2024 को शंघाई सहयोग संगठन के शासनाध्यक्षों की 23वीं परिषद की बैठक में भाग लेने के भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान गये थे।
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निष्कर्ष (Conclusion)
ऐसे में लगता है कि SAARC की असफलता ने South Asia में जो Vacuum Create किया था, उसे SCO भर रहा है। हालाँकि, निराशा के बावजूद SAARC के अस्तित्व का औचित्य खत्म नहीं हो जाता है। अगर इसमें से इतिहास और राजनीतिक शिकायतों को अलग-अलग मान लिया जाए तो Geography एक Reality है। जहाँ चीन और पाकिस्तान, भारत की सुरक्षा के लिये खतरा हैं, वहाँ चीन के दबदबे वाले संगठन में पड़ोसी देशों का शामिल होना भारत के लिहाज से ठीक नहीं कहा जा सकता। यह भविष्य में अन्य विवादित मोर्चों पर पाकिस्तान या नेपाल के साथ मिलकर भारत को रोकने का एक साधन हो सकता है। इसलिये, भारत को SAARC को फिर से पुनर्जीवित करने पर विचार करना चाहिए। हालाँकि SAARC की सफलता का दारोमदार भारत और पाकिस्तान के अच्छे रिश्तों पर ही निर्भर है।
इस मुद्दे पर आपकी राय क्या है? कृपया कमेंट बॉक्स में लिखें।
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