Ranveer Allahbadia controversy: नैतिकता की सीमा क्या हो?

ranveer allahbadia controversy

Ranveer Allahbadia controversy

कॉमेडी का मकसद क्या होता है? हमें हंसाना, तनाव को कम करना, सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य करना? या फिर किसी भी हद तक जाकर सिर्फ ध्यान खींचने का ज़रिया बन गई है? क्या गालियों और अश्लील मज़ाक के बिना हंसाना नामुमकिन हो गया है? या फिर लाइमलाइट में आने के लिए कुछ भी कह देना फैशन हो गया है? क्या आज की कॉमेडी में संवेदनशीलता, गरिमा और ज़िम्मेदारी की कोई जगह नहीं बची? यह सवाल तब और गंभीर हो जाता है जब मंच पर बैठा एक कॉमेडियन माता-पिता के निजी रिश्तों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करता है, और शो में बैठे दर्शक ठहाके लगाते हैं। यूट्यूबर समय रैना (Samay Raina) के शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ में ऐसा ही हुआ। इस शो में यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया ने ऐसी टिप्पणी की, जिसे कई लोगों ने भद्दा, अश्लील और बेहद आपत्तिजनक बताया। यह टिप्पणी माता-पिता के निजी संबंधों को लेकर थी, जो किसी भी दृष्टि से मज़ाक का विषय नहीं हो सकता।

इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि मुंबई पुलिस ने शिकायत दर्ज करके जाँच शुरू कर दी है। बढ़ते विवाद के बाद रणवीर इलाहाबादिया (Ranveer Allahbadia) ने सोशल मीडिया पर माफी मांगी और कहा-“मेरा कमेंट सही नहीं था और फनी भी नहीं था। मैं बस सभी से माफी मांगना चाहता हूँ। यह कूल नहीं था।”

अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ माफी मांगने से मामला खत्म हो जाना चाहिए? क्या माफी इस बात की गारंटी है कि ऐसा दोबारा नहीं होगा? क्या कॉमेडी के नाम पर इस तरह के अश्लील और अपमानजनक मज़ाक को सहन किया जाना चाहिए? क्या हमें इस पर कोई सीमा तय करनी चाहिए? और सबसे बड़ा सवाल – क्या हमें इस पर रोक लगानी चाहिए?

इस पूरे मामले पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा-“फ्रीडम ऑफ स्पीच सभी को है, लेकिन हमारी आज़ादी वहीं समाप्त हो जाती है जहाँ हम किसी और की आज़ादी का अतिक्रमण करते हैं। अगर कोई समाज के तय नियमों को पार करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी”। इससे साफ है कि अब सरकार भी इस मामले को हल्के में नहीं ले रही। अब यह मामला सिर्फ एक विवाद नहीं, बल्कि नैतिकता और कानून का मुद्दा बन चुका है।

वरिष्ठ पत्रकार और गीतकार नीलेश मिश्रा ने इस मुद्दे पर बेहद सख्त प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा –“इस कंटेंट को एडल्ट भी नहीं बताया गया, ऐसे में बच्चे भी इसे देख सकते हैं। इन लोगों में ज़िम्मेदारी की कोई भावना नहीं है। शो के मेज़बान और दर्शक इसे देखकर हंस रहे थे, यानी इसे सामान्य मान लिया गया”। इसका मतलब क्या यह है कि हमारे समाज ने इस तरह के कंटेंट को सामान्य मान लिया है? क्या यह हमें मनोरंजन लगने लगा है?

अब यह मामला सिर्फ सोशल मीडिया पर बहस तक सीमित नहीं रहेगा। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना पार्टी की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने साफ कहा है कि वह इस शो को आईटी और कम्युनिकेशन से जुड़ी संसद की स्थाई समिति के सामने ले जाएँगी। उन्होंने कहा –“हमें कॉमेडी के नाम पर अश्लील और अपशब्दों वाली बातें रोकनी होंगी, क्योंकि ये युवाओं के दिमाग को प्रभावित करती हैं।”

आजकल के कॉमेडी शोज़ पर नजर डालें तो– गालियाँ आम हैं, सेक्सुअल जोक्स हंसी का ज़रिया बन चुके हैं, और निजी जीवन पर भद्दे तंज कसे जा रहे हैं। क्या यही है नई पीढ़ी का एंटरटेनमेंट? कुछ लोग कहेंगे – “भाई, ये सिर्फ मज़ाक है! अगर पसंद नहीं आता तो मत देखो!” लेकिन सोचिए – क्या ऐसी चीजें हमारे समाज और खासकर युवा पीढ़ी की सोच पर असर नहीं डाल रही हैं?

कॉमेडी में चार्ली चैपलिन, जॉनी लीवर, और राजू श्रीवास्तव जैसे उदाहरण भी हैं, जिन्होंने बिना किसी अपशब्द और अभद्र भाषा के लोगों को हंसाया। तो फिर आज की कॉमेडी अश्लीलता और अपशब्दों पर निर्भर क्यों हो गई? क्या ये साफ सुथरी कॉमेडी करने सक्षम नहीं हैं? क्या इनके पास शब्दों की कमी है। प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख़्तर ने भी स्टैंड-अप कॉमेडी में गाली-गलौज के बढ़ते ट्रेंड पर चिंता जताते हुए कहा था कि –“गाली भाषा में मिर्च की तरह होती है। अगर आपके जोक में दम नहीं है, तो आप मिर्च यानी गाली का इस्तेमाल करोगे।” “अगर आपकी बातचीत नीरस है, तो उसमें ऊर्जा देने के लिए अपशब्दों का प्रयोग करना ही पड़ेगा।” यानी क्या गालियाँ ही कॉमेडी की पहचान बन चुकी हैं?

दरअसल, “युवाओं का दिमाग़ बहुत संवेदनशील होता है। जब वे अपने पसंदीदा कॉमेडियन्स को इस तरह की बातें करते हुए देखते हैं, तो वे इसे ‘कूल’ समझते हैं। धीरे-धीरे ये चीजें उनकी बातचीत और सोच का हिस्सा बन जाती हैं। इससे उनकी भाषा और सामाजिक व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यहाँ तक कि रिश्तों में भी इस बदलाव का असर दिखने लगता है।

यहाँ आपको स्पष्ट कर दें कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हर स्वतंत्रता के साथ ज़िम्मेदारी भी आती है। जब लाखों लोग आपको सुन रहे हों, तो ज़रूरी है कि आप यह सोचें कि आपकी बातों का उन पर क्या असर पड़ेगा।

तो सवाल उठता है – क्या कॉमेडी को एक हद में रखा जाना चाहिए? क्या सरकार को इस तरह के कंटेंट पर कोई गाइडलाइन बनानी चाहिए? या फिर इसका फैसला दर्शकों पर छोड़ देना चाहिए कि वे क्या देखें और क्या न देखें? इस मामले पर आपकी राय क्या है? क्या इस तरह की कॉमेडी पर बैन लगना चाहिए, या इसे सिर्फ व्यक्तिगत पसंद-नापसंद तक सीमित रखना चाहिए? हमें कमेंट में बताइए।


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