Operation Rising Lion: इज़रायल-ईरान संघर्ष का नया मोड़ या तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत?

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इजराइल का ईरान पर ऑपरेशन राइजिंग लायन

इज़रायल ने ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ (Operation Rising Lion) के तहत ईरान पर एक व्यापक हवाई हमला (Airstrike) किया है, जिसने पश्चिम एशिया में अस्थिरता को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया है। इस हमले ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया है, और यह संघर्ष अब केवल इज़रायल और ईरान तक सीमित नहीं रहा। अमेरिका, यूरोप और एशिया के कई देश रणनीतिक गठबंधनों या ऊर्जा सुरक्षा के कारण इसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं।

लक्षित हमला और इसके परिणाम

यह हवाई हमला ईरान की राजधानी तेहरान (Tehran), इस्फहान (Isfahan) और नतांज (Natanz) जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर केंद्रित था, जहाँ ईरान के वैज्ञानिक परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों पर काम कर रहे थे। यह कोई सामान्य जवाबी कार्रवाई नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित सैन्य अभियान था, जिसका उद्देश्य ईरान की परमाणु सुविधाओं, मिसाइल ठिकानों और वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व को नष्ट करना था।

हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स (Iranian Revolutionary Guards) के प्रमुख जनरल हुसैन सलामी (General Hossein Salami) और सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ (chief of staff of armed forces) जनरल मोहम्मद बाघेरी (General Mohammad Bagheri) मारे गए। इसके अतिरिक्त, फरेयदून अब्बासी (Fereydoun Abbasi) और मोहम्मद मेहदी तहरांची (Mohammad Mehdi Tehranchi) जैसे छह वरिष्ठ परमाणु वैज्ञानिकों की भी मृत्यु हुई। इज़रायली रक्षा बलों के अनुसार, ईरान की आपातकालीन कमान के कमांडर भी इस हमले में हताहत हुए।

इज़रायल की त्वरित प्रतिक्रिया

हमले के तुरंत बाद इज़रायल ने अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया। तेल अवीव और यरुशलम में स्कूलों को बंद कर आपातकालीन सेवाओं को हाई अलर्ट पर रखा गया। ‘आयरन डोम’ और ‘एरो’ मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ (Arrow missile defense systems) पूर्ण युद्ध मोड में सक्रिय की गईं। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) ने इस ऑपरेशन को ईरान के परमाणु बम कार्यक्रम को स्थायी रूप से समाप्त करने की अपनी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता का हिस्सा बताया। उन्होंने इसे इज़रायल के अस्तित्व को चुनौती देने वालों के लिए एक कड़ी चेतावनी करार दिया।

इज़रायल की मंशा और रणनीति

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे एक “पूर्व-खतरे को समाप्त करने की कार्रवाई” बताया है। उनका कहना है कि ईरान के पास कुछ ही महीनों में परमाणु बम विकसित करने की क्षमता है और यदि अब कार्रवाई नहीं की जाती, तो बाद में यह केवल विनाश का कारण बनेगा। इज़रायली सेना ने स्पष्ट किया कि यह हमला एक सीमित जवाबी हमला नहीं है, बल्कि एक pre-emptive strike है, ताकि भविष्य में ईरान परमाणु हथियार न बना सके।

ईरान की जवाबी कार्रवाई

ईरान ने त्वरित जवाबी कार्रवाई करते हुए कुछ ही घंटों में इज़रायल पर 100 से अधिक ड्रोन और मिसाइल दागे। तेहरान से लेकर क़ुम तक कई मिसाइल लॉन्च स्थल सक्रिय किए गए। ईरान का दावा है कि उसने इज़रायल के नेगेव एयरबेस, डिमोना परमाणु साइट और तेल अवीव के आसपास के क्षेत्रों को निशाना बनाया। इज़रायल ने कहा कि उसकी वायु रक्षा प्रणाली ने अधिकांश मिसाइलों को नष्ट कर दिया, लेकिन कुछ मिसाइलें अपने लक्ष्य तक पहुँच गईं, जिससे सैन्य प्रतिष्ठानों को नुकसान हुआ।

ईरान ने सैन्य प्रतिक्रिया के साथ-साथ कूटनीतिक प्रयास भी तेज कर दिए। तेहरान स्थित विदेश मंत्रालय ने इस हमले को अन्यायपूर्ण और आपराधिक ठहराया, इसे ईरान की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन बताया। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) का हवाला देते हुए ईरान ने इसे ‘आक्रामकता की कार्रवाई’ करार दिया और अनुच्छेद 51 के तहत वैध आत्मरक्षा का अधिकार होने का दावा किया।

ईरान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की और क्षेत्रीय इस्लामी देशों, गुट निरपेक्ष आंदोलन और शांति-प्रिय राष्ट्रों से इस आक्रामकता की निंदा करने का आह्वान किया। ईरान ने यह भी दावा किया कि इज़रायल ने यह हमला अमेरिका की सहमति और समन्वय के बिना नहीं किया होगा, जिसके आधार पर उसने अमेरिका को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।

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भू-राजनीतिक प्रभाव

सैन्य और भू-राजनीतिक विश्लेषक इस घटनाक्रम को ‘इज़रायल का अंतिम युद्ध’ कह रहे हैं। ईरान के प्रॉक्सी नेटवर्क, जैसे ग़ाज़ा में हमास, लेबनान में हिज़बुल्लाह, यमन में हूथी और सीरिया में बशर अल-असद, कमजोर पड़ चुके हैं। यह अब इज़रायल और ईरान के बीच सीधा टकराव है।

खाड़ी देशों जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और क़तर ने अभी तक कोई सैन्य रुख नहीं अपनाया, लेकिन हाई अलर्ट घोषित किया है। इराक और लेबनान जैसे देशों, जहाँ ईरान समर्थित मिलिशिया सक्रिय हैं, ने इज़रायल के खिलाफ एकजुटता दिखाई। हिज़बुल्लाह ने चेतावनी दी कि यदि संघर्ष बढ़ा तो वह युद्ध में उतरेगा।

अमेरिका और वैश्विक शक्तियों की भूमिका

अमेरिका ने इस ऑपरेशन में प्रत्यक्ष संलिप्तता से इनकार किया है, लेकिन उसकी सेनाएँ पश्चिम एशिया में हाई अलर्ट पर हैं। वाशिंगटन में आपातकालीन बैठकें चल रही हैं, और यूएसएस आइजनहावर विमानवाहक पोत समूह होरमुज़ जलडमरूमध्य के पास तैनात है, जो क्षेत्रीय स्थिरता और अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए उसकी सक्रियता को दर्शाता है। रूस और चीन, जो ईरान के रणनीतिक साझेदार हैं, ने इज़रायल की आलोचना की है और इसे “अस्थिरता को बढ़ाने वाला कृत्य” कहा है। यूरोपीय संघ ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। सऊदी अरब, यूएई और क़तर जैसे खाड़ी देश इस समय स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और अपनी सीमाओं पर हाई अलर्ट घोषित कर चुके हैं।

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ईरान का परमाणु कार्यक्रम: चिंता का कारण

ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को नागरिक उपयोग तक सीमित बताता रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और कई देश इससे सहमत नहीं हैं। हाल ही में IAEA ने 20 वर्षों में पहली बार ईरान को परमाणु अप्रसार संधियों के उल्लंघन का दोषी ठहराया। IAEA के अनुसार, ईरान के पास 60% शुद्धता वाला यूरेनियम है, जो 9 परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त है।

7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद से इज़रायल और ईरान के बीच तनाव और बढ़ा। नेतन्याहू ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को “नरसंहारकारी विचारधारा” से जोड़ा, जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों के माध्यम से क्षेत्रीय वर्चस्व स्थापित करना है। उन्होंने चेतावनी दी कि ईरान जल्द ही परमाणु बम बना सकता है और इसे अपने प्रॉक्सी समूहों को सौंप सकता है, जिसे उन्होंने ‘न्यूक्लियर टेररिज़्म’ कहा।

अर्थव्यवस्था और तेल बाज़ार पर प्रभाव

इस संघर्ष का प्रभाव युद्धक्षेत्र तक सीमित नहीं है। वैश्विक तेल बाजारों में उथल-पुथल मच गई है, और तेल की कीमतें 13% तक बढ़ गईं। अमेरिका का वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड $77.21 प्रति बैरल तक पहुँच गया। भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह आर्थिक संकट का कारण बन सकता है।

इसके अतिरिक्त:

  • वैश्विक शेयर बाज़ार अस्थिर हो गए हैं।
  • सोने और चांदी की कीमतों में भी तेजी आई है।
  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाज़ारों में डॉलर की माँग बढ़ गई है।

क्या यह टकराव और बढ़ेगा?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह संघर्ष पूर्ण युद्ध में तब्दील होगा? यह केवल पश्चिम एशिया के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक शांति के लिए गंभीर मुद्दा है। इसका परिणाम ईरान के अगले कदम, इज़रायल की सहनशीलता और अमेरिका, चीन व रूस जैसे देशों के रुख पर निर्भर करेगा।

ईरान के लिए पीछे हटना आंतरिक राजनीति और क्षेत्रीय छवि के लिए नुकसानदेह होगा। यदि उसने तेल अवीव जैसे उच्च-स्तरीय लक्ष्यों पर हमला किया, तो यह संघर्ष क्षेत्रीय युद्ध में बदल सकता है। इज़रायल ने “शून्य सहिष्णुता” नीति अपनाई है, और यदि ईरान या उसके प्रॉक्सी ने समन्वित हमले किए, तो पूर्ण सैन्य आक्रमण संभव है।

अमेरिका तटस्थ रहने की बात कह रहा है, लेकिन उसकी सैन्य तैनाती तटस्थता पर सवाल उठाती है। यदि ईरान ने अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाया, तो नाटो स्तर की प्रतिक्रिया हो सकती है। रूस, जो यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है, ईरान के साथ रणनीतिक साझेदारी का लाभ उठा सकता है, जबकि चीन क्षेत्रीय स्थिरता चाहेगा, लेकिन संभवतः ईरान का कूटनीतिक समर्थन करेगा।

संभावना है कि:

  • हिज़बुल्लाह लेबनान से हमला शुरू कर सकता है।
  • सीरिया में मौजूद ईरानी मिलिशिया सक्रिय हो सकती है।
  • यमन के हूथी इज़रायली जहाज़ों या बंदरगाहों को निशाना बना सकते हैं।

प्रत्यक्ष युद्ध से पहले ग़ाज़ा, लेबनान, सीरिया, इराक और यमन जैसे क्षेत्र संघर्ष के नए मोर्चे बन सकते हैं। हिज़बुल्लाह के उत्तरी सीमा से हमले करने पर यह दो-मोर्चों का युद्ध बन सकता है। यदि इन मोर्चों पर युद्ध फैलता है, तो पश्चिम एशिया में एक पूर्ण पैमाने का युद्ध आरंभ हो सकता है — जिसका असर एशिया, यूरोप और अमेरिका तक पड़ेगा।

निष्कर्ष

ऑपरेशन ‘राइजिंग लॉयन’ केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि पश्चिम एशिया के भू-राजनीतिक समीकरणों को पुनर्परिभाषित करने वाली घटना है। यह संघर्ष इज़रायल और ईरान तक सीमित नहीं रहेगा। परमाणु हथियार, तेल की आपूर्ति, वैश्विक सुरक्षा और कूटनीतिक गठबंधन — सभी अब इस संकट से प्रभावित होंगे। आगामी सप्ताह तय करेगा कि यह युद्ध सीमित सैन्य टकराव बनकर रहेगा या तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ने वाला कदम साबित होगा।


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