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भारतीय नागरिकता (Indian Citizenship)
किसी अन्य आधुनिक राज्य की तरह भारत में दो तरह के लोग हैं नागरिक और विदेशी। नागरिक भारतीय राज्य के पूर्ण सदस्य होते हैं और उनकी इस पर पूर्ण निष्ठा होती है। इन्हें राज्य की ओर से सभी राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं। दूसरी ओर, विदेशी किसी अन्य राज्य के नागरिक होते हैं, इसलिए उन्हें सभी नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। इनकी दो श्रेणियाँ होती है- विदेशी मित्र (सकारात्मक संबंध) एवं विदेशी शत्रु (नकारात्मक संबंध)।
भारतीय संविधान के भाग दो में अनुच्छेद 5 से 11 तक में नागरिकता के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है। इस संबंध में इसमें स्थाई और विस्तृत उपबंध नहीं हैं, ये सिर्फ उन लोगों की पहचान करता है जो संविधान लागू होने के समय (अर्थात् 26 जनवरी 1950) भारत के नागरिक बने। यह संसद को इस बात का अधिकार देता है कि वह नागरिकता से संबंधित प्रावधानों या मामलों की व्यवस्था करने के लिए कानून बनाए। इसी संदर्भ में संसद ने नागरिकता अधिनियम 1955 को लागू किया जिसका 1957, 1960, 1985, 1986, 1992, 2003, 2005 और 2019 में संशोधन किया गया।
भारतीय संविधान में वर्णित नागरिकता के प्रावधान (Provisions of citizenship mentioned in the Indian Constitution)-
भारतीय संविधान में केवल उन्हीं व्यक्तियों की नागरिकता का प्रावधान है जो 26 जनवरी 1950 को भारत के नागरिक माने गए।
संविधान निर्माण के उपरांत संविधान के अनुसार चार श्रेणियों के लोग भारत के नागरिक बने-
अनुच्छेद 5– एक व्यक्ति जो भारत का मूल निवासी हैं और तीन में से कोई एक शर्त पूरी करता हो-
- यदि उसका जन्म भारत में हुआ हो,
- या उसके माता-पिता में से किसी एक जन्म भारत में हुआ हो,
- या संविधान लागू होने के पाँच वर्ष पूर्व से वह भारत में रह रहा हो।
अनुच्छेद 6- एक व्यक्ति, जो पाकिस्तान से भारत आया हो और यदि उसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों और निम्न दो में से कोई एक शर्त पूरी करता हो
- यदि वह 19 जुलाई 1948 से पूर्व स्थानांतरित हुआ हो, अपने प्रवसन की तिथि से उसने सामान्यतः भारत में निवास किया हो।
- यदि उसने 19 जुलाई 1948 को या उसके बाद भारत में प्रवसन किया हो त वह भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो सकता है। लेकिन, ऐसे व्यक्ति का पंजीकृत होने के लिये 6 माह तक भारत में निवास आवश्यक है।
अनुच्छेद 7- एक व्यक्ति, जो 1 मार्च 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान स्थानांतरित हो गया हो, लेकिन बाद में फिर भारत में पुनर्वास के लिये लौट आए, तो वह भारत का नागरिक बन सकता है। उसे पंजीकरण प्रार्थना-पत्र के बाद 6 माह तक रहना होगा।
अनुच्छेद 8- एक व्यक्ति जिसके माता पिता या दादा दादी अब विभाजित भारत में पैदा हुए हो लेकिन वह भारत के बाहर रह रहा हूँ फिर भी वह भारत का नागरिक बन सकता है यदि उसने भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण कूटनीतिक तरीके या पार्षदी प्रतिनिधि के रूप में आवेदन किया हो यह व्यवस्था भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों के लिए बनाई गई है ताकि वे भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकें।
भारतीय नागरिकता के संदर्भ में अन्य संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं (Other constitutional provisions related to Indian citizenship)
अनुच्छेद 9- वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं होगा या भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा जो स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर लेगा।
अनुच्छेद 10- प्रत्येक व्यक्ति, जो इस भाग्य के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी के अधीन भारत का नागरिक है या समझा जाता है, ऐसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई जाए, भारत का नागरिक बना रहेगा।
अनुच्छेद 11- संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में विधि बना सकती है।
भारतीय नागरिकता का अर्जन/भारतीय नागरिकता के संबंध में संसदीय विधि (Acquisition of Indian citizenship/Parliamentary legislation about Indian citizenship)-
26 जनवरी 1950 के बाद नागरिकता के प्रावधान संसदीय विधि द्वारा निर्धारित किये जाएँगे। इसी के तहत संसद ने वर्ष 1955 में नागरिकता अधिनियम का निर्माण किया। यह अधिनियम भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की पाँच शर्तें बताता है- जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण, प्राकृतिक एवं क्षेत्र समाविष्ट करने के आधार पर। इस प्रकार नागरिकता अधिनियम, 1955 यह रेगुलेट करता है कि कौन भारतीय नागरिकता हासिल कर सकता है और किस आधार पर।
1. जन्म से भारतीय नागरिकता (Indian citizenship by birth)
26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जन्म के द्वारा भारत का नागरिक है।
1 जुलाई 1987 को या इसके बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक है, यदि उसके जन्म के समय उसका कोई एक अभिभावक (माता-पिता) भारत का नागरिक था।
2. पंजीकरण के द्वारा भारतीय नागरिकता (Indian Citizenship by Registration)
केंद्र सरकार, आवेदन किये जाने पर किसी व्यक्ति (एक गैर-कानूनी अप्रवासी न हो) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है, यदि वह निम्न में से किसी एक श्रेणी के अंतर्गत आता है-
- भारतीय मूल का व्यक्ति, जो नागरिकता का आवेदन देने से पूर्व 7 वर्ष भारत में रह चुका हो।
- भारतीय मूल का व्यक्ति, जो अविभाजित भारत के बाहर या किसी अन्य देश में अन्यत्र या साधारण निवासी हो।
- वह व्यक्ति, जिसने भारतीय नागरिक से विवाह किया हो और वह पंजीकरण के लिये प्रार्थना-पत्र देने से पूर्व 7 वर्ष से भारत में रह रहा हो।
- भारतीय नागरिक के नाबालिग या अवयस्क बच्चे।
- पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जिसके माता पिता 7 वर्ष तक भारत में रहने के कारण भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत है।
- पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति, जिसके माता/पिता स्वतंत्र भारत के नागरिक हों और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले 1 वर्ष (12 महीने) से वह भारत में रह रहा हो।
- पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति, जो समुद्र पार किसी देश के या भारत के एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत हो और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले वह 1 वर्ष (12 महीने) से भारत में रह रहा हो।
उपरोक्त सभी श्रेणियों के लोगों को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत होने के बाद भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होगी।
3. प्राकृतिक रूप से/देशीयकरण द्वारा भारतीय नागरिकता (Indian Citizenship by Naturalisation)
केंद्र सरकार किसी भी विदेशी वयस्क व्यक्ति को आवेदन प्राप्त होने पर प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्रदान कर सकती है, यदि वह व्यक्ति निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता हो-
- वह किसी ऐसे देश का नागरिक ना हो, जहाँ देशीयकरण या प्राकृतिक रूप से नागरिक बनने से रोक दिया जाता हो।
- उसने अपने देश की नागरिकता का परित्याग कर दिया हो और केंद्र सरकार को इस बात की सूचना दे दी हो।
- वह देशीयकरण के लिए आवेदन करने की तिथि से पहले 12 माह तक या तो भारत में रहा हो या भारत की सेवा में रहा हो। इस संबंध में केंद्र सरकार, यदि उचित समझें तो उस अवधि को घटा सकती है।
- यदि 12 माह की इस अवधि से 14 वर्ष पूर्व से वह भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में हो या इनमें से थोड़ा एक में और थोड़ा अन्य में हो, इनकी कुल अवधि 11 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
- उसका चरित्र अच्छा होना चाहिए।
- वह संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं का अच्छा ज्ञाता हो।
- उसे प्राकृतिक रूप से नागरिकता का प्रमाण पत्र प्रदान किए जाने की स्थिति में हो वह भारत में रहने का इच्छुक हो या भारत सरकार की सेवा या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन में जिसका भारत सदस्य हो या भारत में स्थापित किसी सोसाइटी, कंपनी या व्यक्तियों का निकाय हो मैं प्रवेश या उसे जारी रखें
हालाँकि, भारत सरकार उपरोक्त प्राकृतिक शर्तों के मामलों पर एक या सभी दावा हटा सकती है, यदि व्यक्ति की विशेष सेवा विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य विश्व शांति या मानव उन्नति से संबंध हो। इस प्रकार से नागरिक बने हर व्यक्ति को भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होगी।
4. वंश या अवजनन के आधार पर भारतीय नागरिकता (Indian citizenship by descent)
कोई व्यक्ति, जिसका जन्म 26 जनवरी, 1950 को या उसके बाद, परन्तु 10 दिसंबर, 1992 से पूर्व भारत के बाहर हुआ हो, वंश के आधार पर भारत का नागरिक बन सकता है, यदि उसके जन्म के समय उसका पिता भारतीय नागरिक हो।
3 दिसंबर 2004 के बाद भारत से बाहर जन्मा कोई व्यक्ति वंश के आधार पर भारत का नागरिक नहीं हो सकता, यदि उसके जन्म के एक वर्ष के भीतर भारतीय कॉन्सुलेट में उसके जन्म का पंजीकरण न करा दिया गया हो या केंद्र सरकार की सहमति से उक्त अवधि के बाद पंजीकरण न हुआ हो। (बच्चे के पास किसी अन्य देश का पासपोर्ट नहीं होना चाहिए)
एक नाबालिग, जो वंश के आधार पर भारत का नागरिक है, साथ ही वह किसी अन्य देश का भी नागरिक है, तब उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाएगी, जब तक कि वह अन्य देश की नागरिकता या राष्ट्रीयता का परित्याग वयस्क होने के 6 माह के अंदर नहीं कर देता।
5. क्षेत्र समाविष्ट या किसी भू-भाग पर नियंत्रण के द्वारा भारतीय नागरिकता (Indian citizenship by occupation of or control over any territory)
किसी विदेशी क्षेत्र द्वारा भारत का हिस्सा बनने पर भारत सरकार उस क्षेत्र से संबंधित विशेष व्यक्तियों को भारत का नागरिक घोषित करती है। ऐसे व्यक्ति उल्लिखित तिथि से भारत के नागरिक होते हैं।
असम के संबंध में नागरिकता से संबंधित विशेष प्रावधान (Special provisions relating to citizenship in respect of Assam)
असम एकमात्र राज्य है जिसके लिए नागरिकता अधिनियम 1955 में एक प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार-
- भारतीय मूल के सभी व्यक्ति, जो 1 जनवरी, 1966 से पहले बांग्लादेश से असम आए और जो अपने प्रवेश के बाद से ही साधारणतः असम के निवासी हैं, को 1 जनवरी, 1966 से भारत का नागरिक मान लिया जाएगा।
- भारतीय मूल का प्रत्येक व्यक्ति, जो 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद, लेकिन 25 मार्च, 1971 के पूर्व बांग्लादेश से असम आया और अपने प्रवेश के समय से ही साधारणतः असम का निवासी है और जिसे विदेशी के रूप में पहचाना गया, को स्वयं को निबंधित (रजिस्ट्रीकृत) कराना होगा। ऐसा निबंधित व्यक्ति भारत का नागरिक मान लिया जाएगा, सभी उद्देश्यों के लिये विदेशी के रूप में पहचाने जाने के बाद से 10 वर्षों की अवधि की समाप्ति की तिथि के बीच। इन 10 वर्षों की अवधि में उसे भारत के नागरिक के समान ही अधिकार होंगे, लेकिन मत देने का अधिकार नहीं होगा।
- वर्ष 1985 में संघ सरकार और असम सरकार के बीच बोडोलैण्ड समझौता हुआ, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि वर्ष 1977 के बाद आने वाले पाकिस्तान (बांग्लादेश) के व्यक्तियों को वापस भेजा जाएगा।
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नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (Citizenship Amendment Act: CAA)-
CAA अर्थात् नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को भारतीय संसद द्वारा 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया था। इसके द्वारा नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया था। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए एक विशेष प्रावधान किया गया। इसमें 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को नागरिकता के संदर्भ में प्रावधान किये गए हैं। इस अधिनियम में इन लोगों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट दी गई है। साथ ही इनके लिये निवास की आवश्यकता को 11 वर्ष से घटाकर 6 वर्ष कर दिया है। हालाँकि, अन्य लोगों के लिये भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिये 11 साल भारत में रहना आवश्यक है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि इस अधिनियम के तहत, इन देशों के मुसलमानों को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है। इस प्रकार यह मुसलमानों सहित किसी भी अन्य विदेशी पर लागू नहीं होता है जो इन तीन देशों सहित किसी भी देश से भारत में पलायन कर रहे हैं।
हालाँकि, इस अधिनियम को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। आलोचकों का तर्क है कि यह कानून भेदभावपूर्ण है और प्रस्तावना में दिए गए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के साथ टकराव करता है। उनके अनुसार, नागरिकता आस्था पर निर्भर नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह संविधान में समानता और गैर-भेदभाव के मूल सिद्धांतों का विरोध करता है। ये सिद्धांत धार्मिक विश्वासों की परवाह किए बिना कानून के तहत समान व्यवहार सुनिश्चित करते हैं। यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित ‘समानता के अधिकार’ के कथित तौर पर उल्लंघन करता है। नतीजतन, CAA, 2019 को कई मोर्चों पर आलोचना का सामना करना पड़ा है।
इक प्रकार CAA, 2019 में प्रावधान है कि चार शर्तों को पूरा करने वाले प्रवासी भारतीयों के साथ अधिनियम के अंतर्गत अवैध प्रवासियों के तौर पर व्यवहार नहीं किया जाएगा। ये शर्तें निम्नलिखित हैं:
- वे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई हैं,
- अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हैं,
- उन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है,
- वे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के कुछ आदिवासी क्षेत्रों, या ‘इनर लाइन’ परमिट के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों यानी अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में नहीं आते।
क्या CAA में धर्म के आधार पर अंतर करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है? (Is discrimination on the basis of religion in CAA a violation of Article 14?)
अनुच्छेद 14 व्यक्तियों, नागरिकों और विदेशियों को समानता की गारंटी देता है। हालाँकि यह राज्य को व्यक्ति समूहों के बीच अंतर करने की अनुमति देता है, जब किसी उपयुक्त उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसा करना तार्किक हो। वहीं, CAA, 2019 मूल देश, धर्म, भारत में प्रवेश की तिथि एवं भारत में निवास स्थान के आधार पर भेदभाव करता है, लेकिन केवल सताए गए धार्मिक अल्पसंख्यकों को समायोजित करने के उद्देश्य से, जो अनुच्छेद 14 के तहत एक उचित प्रतिबंध है।
विदेशी भारतीय नागरिकता (Overseas Citizenship of India: OCI)
भारत की विदेशी नागरिकता को ओवरसीज़ सिटिज़नशिप ऑफ़ इंडिया (OCI) कहते हैं। यह भारतीय मूल के लोगों और उनके जीवनसाथी के लिए एक स्थायी निवास का विकल्प है। OCI पाने वाले लोग अनिश्चित समय तक भारत में रह और काम कर सकते हैं।
गौरतलब है कि भारत का संविधान भारतीय नागरिकता और किसी विदेशी देश की नागरिकता एक साथ रखने की अनुमति नहीं देता है। इसीलिये, सितंबर, 2000 में भारत सरकार द्वारा एल.एम. सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति गठित
की गई। इस समिति ने जनवरी, 2002 में वैश्विक भारतीय डायस्पोरा पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1955 में संशोधन की सिफारिश की, ताकि भारतीय मूल के व्यक्तियों (Persons of Indian Origin: POI’s) को दोहरी नागरिकता प्रदान की जा सके, लेकिन कुछ विशेष देशों के रहने वालों को ही।
इसके बाद भारतीय प्रवासियों पर इस उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश के आधार पर, भारत सरकार ने भारत की विदेशी नागरिकता (OCI) प्रदान करने का निर्णय लिया, जिसे आमतौर पर ‘दोहरी नागरिकता’ के रूप में जाना जाता है। इसके लिये नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 में विदेशी नागरिकता का प्रावधान किया गया। इसके बाद विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका और अन्य विकसित देशों में प्रवासी भारतीयों की ओर से दोहरी नागरिकता की लगातार माँग की गई। इसलिये, अगस्त 2005 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करके भारत की प्रवासी नागरिकता (OCI) योजना शुरू की गई। इसमें सभी देशों के (पूर्व में 16 निर्दिष्ट देशों के) भारतीय मूल के व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान किये गए (अपवाद पाकिस्तान और बांग्लादेश)। यह योजना हैदराबाद में प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन 2006 के दौरान शुरू की गई थी।
इस प्रकार भारतीय मूल के व्यक्ति (POI’s), जो भारत से चले गए और पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा किसी अन्य विदेशी देश की नागरिकता प्राप्त की, वे OCI के अनुदान के लिए पात्र हैं, जब तक कि उनके गृह देश अपने स्थानीय कानूनों के तहत किसी न किसी रूप में दोहरी नागरिकता की अनुमति देते हैं।
OCI के रूप में पंजीकृत व्यक्ति नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1) (जी) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए पात्र है, यदि वह पाँच वर्षों से OCI के रूप में पंजीकृत है और आवेदन करने से पहले पांच वर्षों में से एक वर्ष भारत में रह रहा है।
गौरतलब है कि OCI के रूप में पंजीकृत व्यक्तियों को कोई मतदान अधिकार, लोकसभा/राज्यसभा/विधानसभा/परिषद के लिए चुनाव, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आदि जैसे संवैधानिक पदों पर रहने का अधिकार नहीं दिया गया है। इस प्रकार OCI राजनीतिक अधिकार प्रदान नहीं करता है। भारत के पंजीकृत विदेशी नागरिक संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता के संबंध में भारत के नागरिक को दिए गए अधिकारों के हकदार नहीं होते हैं।
भारतीय नागरिकता समाप्त करने के प्रावधान (Provisions for termination of Indian citizenship)-
1. स्वैच्छिक परित्याग–
कोई भारतीय नागरिक जो पूर्ण आयु और क्षमता का हो स्वैच्छिक रूप से अपनी भारतीय नागरिकता क परित्याग कर सकता है। यदि, इस तरह की घोषणा तब हो जब भारत युद्ध में व्यस्त हो, तो केंद्र सरकार इसके पंजीकरण को एक तरफ रख सकती है।
2. बर्खास्तगी के द्वारा–
यदि भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ले, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं बर्खास्त हो जाएगी। हालाँकि यह व्यवस्था तब लागू नहीं होगी जब भारत युद्ध में व्यस्त हो।
3. वंचित करने के द्वारा–
केंद्र सरकार द्वारा भारतीय नागरिक को आवश्यक रूप से बर्खास्त करना होगा, यदि-
- नागरिकता फर्जी या झूठे तथ्यों के आधार पर प्राप्त की गई हो।
- यदि नागरिक ने भारतीय संविधान के प्रति अनादर जताया हो।
- यदि नागरिक ने युद्ध के दौरान शत्रु के साथ गैर कानूनी रूप से संबंध स्थापित किया हो या उसे कोई राष्ट्रविरोधी सूचना दी हो।
- पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के 5 वर्षों के दौरान नागरिक को किसी देश में 2 वर्ष की कैद हुई हो।
- नागरिक सामान्य रूप से भारत के बाहर 7 वर्षों से रह रहा हो।
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