भारत और कतर के रिश्तों ने एक नया मोड़ ले लिया है? यह सिर्फ व्यापार या ऊर्जा तक सीमित नहीं, बल्कि दोनों देशों के बीच एक रणनीतिक साझेदारी का भी ऐतिहासिक दौर शुरू हो चुका है! कतर के अमीर, शेख तमीम बिन हमद अल-थानी, भारत की यात्रा पर हैं, और इस दौरान कई महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। इन समझौतों में सबसे खास है, भारत और कतर के बीच की रणनीतिक साझेदारी। मगर सवाल है कि कतर भारत के लिए इतना अहम क्यों है? और दूसरा सवाल यह है कि कतर भारत के साथ इतनी महत्वाकांक्षी साझेदारी क्यों बना रहा है? आखिर वो कौन से कारण हैं जो दोनों को इतने करीब ला रहे हैं?
कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी का भारत में गर्मजोशी से स्वागत
सोमवार (17 फरवरी 2025) की रात जब कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी भारत पहुंचे, तो उनके स्वागत में एक असाधारण दृश्य देखने को मिला। आमतौर पर ऐसे मेहमानों का स्वागत विदेश मंत्री या वरिष्ठ अधिकारी करते हैं, लेकिन इस बार खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शेख तमीम का स्वागत करने के लिये हवाई अड्डे पर मौजूद थे। यह दर्शाता है कि भारत कतर के साथ अपने संबंधों को कितनी गंभीरता से लेता है। मोदी जी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि वे अपने भाई, कतर के अमीर महामहिम शेख तमीम बिन हमद अल-थानी का स्वागत करने के लिए हवाई अड्डे पर गए और भारत में उनके सफल प्रवास की कामना की। उन्होंने अपनी आगामी मुलाकात को लेकर भी उत्साह व्यक्त किया।
महत्वपूर्ण समझौते और व्यापारिक वार्ताएँ
इस यात्रा के दौरान मंगलवार यानी 10 फरवरी 2025 को भारत और कतर ने अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक ले जाने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों में दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकेत है। इस समझौते के तहत व्यापार, ऊर्जा, निवेश, नवाचार, प्रौद्योगिकी, खाद्य सुरक्षा, संस्कृति और लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए कई समझौते किए गए। इसके अलावा, भारत और कतर के बीच दोहरे कराधान से बचाव और वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाने के लिए भी एक अहम समझौता हुआ। वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा हुई, जिससे यह साफ हो गया कि भारत और कतर की भागीदारी अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भी मजबूत हो रही है।
इससे पहले भारत और कतर ने दो महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापनों (MOU) पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं, जो आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देंगे। भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इस अवसर पर कहा कि भारत और कतर प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने यह भी बताया कि भारत अब ऊर्जा उत्पादों से आगे बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स, क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में कतर के साथ अपने व्यापार को विविधता देने की योजना बना रहा है।
भारत के लिए कतर क्यों अहम?
सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 , 2016 और 2024 में क़तर की यात्रा की थीं। उनकी क़तर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी से मुलाक़ात हुई। इसके अलावा, सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा और दिसंबर 2023 में दुबई में हुए जलवायु सम्मेलन के दौरान भी दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी। यह दर्शाता है कि भारत और कतर एक-दूसरे के संबंधों को कितनी प्राथमिकता देते हैं।
दरअसल, इसके कई प्रमुख कारण हैं। भारत अपने कुल लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) आयात का 50% और लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का 30% कतर से करता है। फरवरी, 2024 में दोनों देशों ने अगले 20 सालों के लिए एक अहम समझौता किया, जिसके तहत भारत 2048 तक कतर से एलएनजी खरीदेगा। भारत और कतर के बीच 2023-24 में 14.04 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। भारत ने 1.70 अरब डॉलर मूल्य का सामान कतर को निर्यात किया, जबकि कतर से 12.34 अरब डॉलर का आयात किया। साल 2019-20 में दोनों देशों के बीच व्यापार 10.95 अरब डॉलर, 2020-21 में 9.21 अरब डॉलर, 2021-22 में 15.03 अरब डॉलर रहा और 2022-23 में यह व्यापार 18.77 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। कतर से भारत एलएनजी, एलपीजी, एथिलीन, प्रोपलीन, अमोनिया, यूरिया, केमिकल्स, प्लास्टिक और एल्यूमिनियम खरीदता है। वहीं, भारत से कतर अनाज, तांबा, लोहा, स्टील, फल, सब्जियां, मसाले, प्रोसेस्ड फूड, इलेक्ट्रिक मशीनरी, कपड़े और रबर आयात करता है।
भारत के लिये कतर की कूटनीतिक स्थिति भी मायने रखती है। कतर एक न्यूट्रल देश है और अमेरिका, सऊदी अरब, ईरान, तुर्की और इसराइल जैसे देशों के साथ उसके अच्छे संबंध हैं। यह स्थिति भारत को अंतरराष्ट्रीय दबाव से मुक्त होकर व्यापार और निवेश के अवसर प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, जब भारत रूस के साथ कोई डील करता है, तो उसे अमेरिका और यूरोपीय देशों की प्रतिक्रिया का ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन कतर के साथ ऐसा कोई दबाव नहीं होता। वह ईरान और सऊदी अरब की फिक्र किए बिना अपने हितों को ध्यान में रखकर क़तर के साथ आगे बढ़ सकता है।
कतर एक सॉफ्ट पावर भी है। मध्यस्थ के तौर पर उसका नाम चर्चा में रहता है। जब हमास और इसराइल के बीच संघर्ष हुआ, तो मध्यस्थता के लिये कतर की मदद ली गई। ऐसा इसलिये क्योंकि उसकी सुनी जाती है। ऐसे में कतर की इस क्षमता का फायदा इसका फायदा भारत भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में उठा सकता है।
कतर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अनुसार, वहाँ 15,000 से अधिक भारतीय कंपनियां कार्यरत हैं। इनमें लार्सन एंड टुब्रो, वोल्टास, शापूरजी पालोनजी, विप्रो, टीसीएस और महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं। कतर फाइनेंशियल सेंटर के अनुसार, भारतीय कंपनियों ने कतर में 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
इसके अलावा, कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (QIA) ने भारतीय कंपनियों में हजारों करोड़ रुपये का निवेश किया है। 2022 में QIA ने निवेश फर्म बोधि वृक्ष को 13,000 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी थी। इसके बाद जुलाई 2022 में बोधि वृक्ष ने एलन कैरियर में 36 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए 5,200 करोड़ रुपये का निवेश प्रदान किया था।
इसके अलावा कतर में 8.35 लाख भारतीय रहते हैं, जो वहाँ की कुल जनसंख्या का 27% हैं। यह वहाँ का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। भारतीय प्रवासी कतर की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और वहाँ से आने वाला रेमिटेंस भी भारत के लिए आर्थिक रूप से अहम है। वित्त मंत्रालय के अनुसार, 2021-22 में विदेश में रहने वाले भारतीय प्रवासियों ने 89.1 अरब अमेरिकी डॉलर भारत भेजे थे, जिसमें क़तर से आने वाले पैसों की हिस्सेदारी 1.5 प्रतिशत थी। भारतीय रुपयों में यह राशि करीब 11,000 करोड़ रुपये होती है।
भारत और कतर के बीच व्यापार और निवेश को और बढ़ावा देने के लिए नए द्विपक्षीय निवेश संवर्धन और संरक्षण समझौते पर भी चर्चा हो रही है। इसके अलावा, भारत और गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (GCC) के बीच एक संभावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत जारी है। खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह सदस्य देश हैं – बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)।
कतर के लिये भारत का महत्व
यह संबंध सिर्फ भारत के लिए महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि कतर के लिए भी भारत एक अहम साझेदार है। यूरोप जैसे बड़े बाजार ग्रीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। कतर इस खतरे को समझता है और अपनी अर्थव्यवस्था को विविधतापूर्ण बनाने के लिए भारत जैसे देशों में निवेश कर रहा है। क़तर जैसे खाड़ी देश हजारों करोड़ रुपये टूरिज्म, स्पोर्ट्स और एजुकेशन सेक्टर में खर्च कर रहे हैं और इस स्थिति में भारत उनके लिए एक बहुत बड़ा बाजार है। इसलिए सिर्फ क़तर भारत की जरूरत नहीं है बल्कि क़तर को भी भारत चाहिए।
निष्कर्ष
इस तरह भारत और कतर के संबंध अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं। यह सहयोग सिर्फ व्यापार और ऊर्जा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक राजनीति और रणनीति में भी असर डालेगा। भारत की सक्रिय कूटनीति और कतर की भारत में बढ़ती रुचि इन संबंधों को और ऊंचाइयों तक ले जा सकती है।
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