दुनिया के इतिहास में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। दुनिया के लगभग सभी देशों में ज्यादातर पुरुष ही नेतृत्व की भूमिका में रहे हैं। यही वजह है कि शुरू से ही कानून और समाज के नियमों यानी रिति रिवाजों का निर्माण पुरुषों के हाथों में रहा। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसने समाज में महिलाओं की स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। प्राचीन सभ्यताओं में, जैसे कि मिस्र, ग्रीस, रोम और भारत में महिलाओं की स्थिति सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से सीमित थी। हालाँकि मिस्र में कुछ महिलाओं ने उच्च पद प्राप्त किए, लेकिन ज्यादातर महिलाओं को कानूनी अधिकारों से वंचित रखा गया। ग्रीस और रोम में महिलाओं की स्थिति और भी बदतर थी। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने, संपत्ति रखने और न्यायालय में गवाही देने तक के अधिकार नहीं थे। इस तरह विभिन्न सभ्यताओं और युगों में पुरुषों द्वारा बनाए गए कानूनों ने महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया। महिलाओं से मृदुभाषी, शांत और चुप रहने की अपेक्षा की जाती है। उनसे निश्चित तरीके से चलने, बात करने, बैठने और व्यवहार करने की अपेक्षा होती है। इसकी तुलना में पुरुष अपनी इच्छानुसार कैसा भी व्यवहार प्रदर्शित कर सकता है। इसके चलते वर्षों से महिलाओं ने समाज के अन्याय और पूर्वाग्रह को झेला है। आज भी हमारे समाज में पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाओं पर सदियों से चली आ रही धारणाएँ और परंपराएँ मौजूद हैं। हालाँकि, आधुनिक दौर में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। अब उन्हें पुरुषों के समान ही अधिकारों मिल रहे हैं। लेकिन, इसके बावजूद भी सत्ता और नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की संख्या अभी भी बहुत कम है।
ऐसे में कल्पना करें कि अगर दुनिया पर महिलाएँ राज करतीं, तो क्या होता? आज जो इतिहास हो वह कितना अलग दिखता? इसी में एक और कल्पना कीजिए कि एक सुबह आप जागते हैं और दुनिया का हर कोने में महिलाओं के हाथ में बागडोर है। हमारे चारों ओर जब महिलाएँ नेतृत्व की कमान संभालेंगी, तो दुनिया का चेहरा कितना अलग दिखेगा? यह विचार न केवल बेहद महत्त्वपूर्ण और रोमांचक है, बल्कि बेहद प्रेरणादायक भी है। तो चलिये, इस कल्पना के सफर पर चलते हैं और समझते हैं कि अगर महिलाएँ दुनिया पर राज करतीं, तो क्या-क्या बदलाव होते?
तो इसके उत्तर में हमें समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा। असल में, महिलाओं का शासन, समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। पारंपरिक दृष्टिकोण के अनुसार, महिलाएँ पुरुषओं की तुलना में अधिक सहानुभूतिपूर्ण, संवेदनशील और देखभाल करने वाली होती हैं। यह संवेदनशीलता समाज में कमजोर और वंचित वर्गों की समस्याओं को अधिक गहराई से समझने और समाधान प्रदान करने में सहायक हो सकती है। इसके अलावा, महिलाओं के नेतृत्व में सामाजिक सुधार, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और बाल विकास को प्राथमिकता मिल सकती है। इसलिए दोस्तों यह कहना गलत नहीं होगा कि एक महिला-प्रभुत्व वाली दुनिया में शायद अधिक समावेशी और सहयोगात्मक समाज की स्थापना हो सकती है।
इसके बाद अब जरा राजनीति की बात करते हैं। तो महिलाओं के शासन का राजनीतिक प्रभाव भी व्यापक हो सकता है। इतिहास में कई सफल महिला नेताओं के उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया है। ऐसे में आज के दौर में भी महिलाओं के नेतृत्व में राजनीति और शासन के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं का शासन स्वाभाविक रूप से शांति और कूटनीति की ओर अधिक झुका होता। महिलाएँ आमतौर पर अधिक समझदारी और संयमित दृष्टिकोण अपनाती हैं। इसलिये उनके नेतृत्व में युद्ध और संघर्ष की संभावनाएँ कम हो सकती हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय संबंध और शांति वार्ता और भी प्रभावी हो सकती हैं। आज, शांति समझौते के लगभग आधे समझौते पाँच साल के भीतर ही विफल हो जाते हैं, ऐसा इसलिये क्योंकि आधे हितधारकों को इससे बाहर रखा जाता है। जब महिलाएँ बातचीत में शामिल होती हैं, तो वे विभिन्न समूहों के बीच की खाई को पाटने में मदद करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि खाद्य सुरक्षा से लेकर यौन हिंसा तक के व्यापक मुद्दों का समाधान किया जाए। नतीजतन, शांति की जड़ें मज़बूत होने की संभावना ज़्यादा होती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि महिलाएँ अक्सर गाँव, परिवार की संरक्षक होती हैं। और इसलिए संघर्ष क्षेत्रों यानी लड़ाई, दंगे और युद्ध आदि में सबसे ज़्यादा पीड़ित महिलाएँ होती हैं। वे अक्सर लूटपाट करने वाली ताकतों, बलात्कार करने वालों आदि के निशाने पर होती हैं। ऐसे में अगर आप महिलाएँ शांति प्रक्रिया में शामिल होती हैं, तो वे समाज को ठीक करने में भी मदद कर सकती हैं।
दरअसल, cognitive यानी संज्ञानात्मक वैज्ञानिक मानते हैं कि महिला मस्तिष्क पुरुष मस्तिष्क से अलग होता है। सामाजिक वैज्ञानिकों ने पाया है कि बलात्कार और हत्या सहित हिंसक अपराध के लिए पुरुष सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते हैं। कुल मिलाकर, महिलाओं में सामूहिक हत्या करने की संभावना कम होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं की युद्ध शुरू करने की कम इच्छा होती है। हालाँकि, यह भी सच है कि जैसे सभी पुरुष सैन्यवादी नहीं होते, वैसे ही सभी महिलाएँ शांतिवादी नहीं हो सकती हैं। महिलाओं की अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और उनसे जुड़ने की अधिक संभावना होती है। उनकी निर्णायकता के बजाय बारीकियों में अधिक रुचि होती है। समाचार एजेंसी बीबीसी में छपी एक खबर रिपोर्ट में आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति मैरी रॉबिन्सन कहती हैं कि “काम के दौरान कोई भी निर्णय लेने के समय महिलाएँ कई पीढ़ियों को ध्यान में रखती हैं”। वहीं होमलैंड सिक्योरिटी संस्था की अमरीकी सचिव जेनेट नेपोलिटानो कहती हैं कि “मेरे ख्याल से ये कहना सही है कि महिलाएँ न सिर्फ सबको साथ लेकर चलती हैं बल्कि वे समस्याओं को उलझाने के बजाए उन्हें सुलझाने में यकीन रखती हैं”। इसके अलावा ‘प्यू रिसर्च सेंटर सोशल एंड डेमोग्राफिक ट्रेंड्स सर्वे’ में अमेरिकी जनता ने यह माना था कि नीति के मोर्चे पर महिलाएँ स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसे सामाजिक मुद्दों से निपटने में पुरुषों की तुलना में बेहतर होती हैं। ऐसे में दोस्तों कहा जा सकता है कि महिलाओं के नेतृत्व में नीति निर्माण में अधिक समावेशिता और विविधता हो सकती है। उनके शासन में सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है। साथ ही महिलाओं के शासन में अधिक पारदर्शिता और सहभागिता को बढ़ावा मिल सकता है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को और मजबूत बना सकता है।
ऐसे ही महिलाओं का शासन अर्थव्यवस्था पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। समान वेतन के मुद्दे को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हो सकती है। महिला उद्यमियों को अधिक समर्थन मिल सकता है। इससे महिला उद्यमिता को बढ़ावा मिलने के साथ ही आर्थिक विकास में उनका योगदान बढ़ सकता है। महिलाओं की भागीदारी से कार्यस्थल में विविधता और समावेशिता बढ़ सकती है। इसके अलावा, महिलाएँ अपने व्यवसाय और उद्यमिता में भी नई संभावनाएँ और नवाचार ला सकती हैं। इससे आर्थिक विकास में तेजी आ सकती है और समाज में आर्थिक असमानता को कम किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि महिलाओं की प्राथमिकताएँ आमतौर पर सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की ओर होती हैं। इसलिए एक महिला-प्रधान दुनिया में सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। वैश्विक उपभोक्ता डेटा कंपनी रवाज़ी (Rwazi) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाएँ दुनिया भर में उपभोक्ता खर्च में 30 ट्रिलियन डॉलर से अधिक को नियंत्रित करती हैं। 2030 तक यह संख्या बढ़कर 40 ट्रिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है। दरअसल, जब महिलाओं के पास ज़्यादा नकदी होती है, तो वे इसे अलग तरीके से खर्च करती हैं। वे अपने परिवारों को स्वस्थ आहार खिलाती हैं और अपने बच्चों को स्कूल भेजती हैं। वे स्वच्छ पानी, बेहतर स्कूल, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में निवेश करती हैं। वे व्यवसाय शुरू करती हैं और दूसरी महिलाओं को काम पर रखती हैं। पूरा समुदाय समृद्ध होता है।
अब थोड़ी संस्कृति की बात कर लेते हैं। अगर दुनिया पर महिलाएँ राज करतीं तो इससे संस्कृति के क्षेत्र में क्या अलग होता। तो महिलाओं का शासन सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है। उनके नेतृत्व से सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं और मूल्यों में परिवर्तन हो सकते हैं। इससे लिंग भूमिकाओं और अपेक्षाओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव हो सकता है। महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करतीं, जिससे समाज में लिंग भूमिकाओं की परिभाषा बदल सकती है। दरअसल, विभेदवाद का पहला और अभी भी बहुत आम संस्करण प्रकृतिवादी रहा है। लिंगों के बीच जन्मजात अंतर को अलग-अलग व्यवहार और सामाजिक स्थितियों की व्याख्या करने के लिए माना जाता है। सार्वजनिक और बौद्धिक बहसों में ऐसा दृष्टिकोण अभी भी बहुत फैशनेबल है। सके रूढ़िवादी संस्करण में लिंगों के बीच कथित प्राकृतिक अंतर मौजूदा असमानताओं और शक्ति के संबंधों को सही ठहराते हैं। इस दृष्टिकोण को रखने वाले अधिकांश लोग शायद महिलाओं द्वारा संचालित दुनिया को कुछ अवास्तविक और अप्राकृतिक मानते हैं, क्योंकि राजनीति के विशिष्ट प्रतिस्पर्धी, आक्रामक और टकरावपूर्ण संबंधों में महिलाओं के संलग्न होने के बजाय परिवार और देखभाल गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने की कथित जन्मजात प्रवृत्ति है। इस प्रकार यह दृष्टिकोण मौजूदा असमानताओं और शक्ति के संबंधों को सही ठहराता है। ऐसे में अगर शुरू से शासन या नेतृत्व की बागडोर महिलाओं के हाथों में होती, तो शायद आज यह दृष्टिकोण इस तरह न होता। शायद आज महिलाओं को लेकर विचार बदले हुए होते। आज जो पर्दा प्रथा या बुर्का पहनने पहनने की बाध्यता है, वो शआयद न होती। यह प्रथा जिसल उद्देश्य से आई थी, उस उद्देश्य के खत्म होते ही शायद यह प्रथा भी खत्म हो जाती, अगर नेतृत्व महिलाएँ करतीं। इसके अलावा भी कई रीति-रिवाज भी शायद मौजूदा स्थिति की तरह न होते। उनके नेतृत्व में महिलाओं की स्थिति शायद उस तरह न होती, जैसी कि रही है। वे कमज़ोर होना बंद कर देतीं, वे दूसरों पर निर्भर होना बंद कर देतीं, वे शायद कभी पीड़ित नहीं होतीं और उनके साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं होता। इस तरह महिलाओं के नेतृत्व में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के प्रति अधिक संवेदनशीलता हो सकती है। समाज में हाशिये पर रहने वाले समूहों को अधिक समर्थन मिल सकता है। महिलाओं के दृष्टिकोण से समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने और प्रस्तुत करने के अवसर बढ़ सकते हैं। वहीं दूसरी ओर महिलाओं की शासन व्यवस्था में कला, साहित्य और संस्कृति को अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है। इससे कला, साहित्य और संस्कृति को नई ऊँचाइयाँ मिलतीं।
कुल मिलाकर कहें तो अगर महिलाएँ दुनिया पर राज करतीं, तो यह समाज के हर क्षेत्र में व्यापक सुधार और परिवर्तन का कारण बन सकता है। महिलाओं के नेतृत्व में समाज अधिक संवेदनशील, न्यायसंगत और समावेशी हो सकता है। यह न केवल समाज की वर्तमान समस्याओं का समाधान प्रदान कर सकता है, बल्कि भविष्य के लिए एक मजबूत और स्थिर आधार भी तैयार कर सकता है। इसलिए, समाज को महिलाओं के नेतृत्व को प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें सत्ता और नेतृत्व के पदों पर अधिक अवसर प्रदान करना चाहिए।
Discover more from UPSC Web
Subscribe to get the latest posts sent to your email.