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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों के नियमन के लिए जिम्मेदार प्रमुख संस्था, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) के विशेषज्ञ चयन नियमों में बदलाव किया है। नए नियमों के अनुसार, किसी भी “विशेषज्ञ सदस्य” को अपने उन “हितों” का खुलासा करना होगा जो उसके कर्तव्यों के साथ टकराव पैदा कर सकते हैं। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी हितों के टकराव से जीईएसी के निर्णय प्रभावित न हों।
विशेषज्ञों को समिति की बैठक में चर्चा किए जा रहे किसी भी मामले से अपने संबंध का खुलासा पहले से करना होगा। यदि समिति विशेष रूप से अनुमति न दे, तो ऐसे मामलों में विशेषज्ञों को बैठक से अलग रहने की अपेक्षा की जाती है। इसके अलावा, जीईएसी के लिए चयनित सभी सदस्यों को समिति में शामिल होने से पहले पिछले 10 वर्षों के पेशेवर जुड़ाव का विवरण भरना अनिवार्य होगा।
दरअसल, ये संशोधन सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2023 के उस आदेश के बाद किए गए हैं, जिसमें केंद्र को जीएम फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने की आवश्यकता बताई गई थी। 23 जुलाई को दिए गए इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा 2022 में जीएम सरसों की फसलों को पर्यावरण में जारी करने की सशर्त मंजूरी पर विभाजित फैसला सुनाया था। दो न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र द्वारा जीएम सरसों की मंजूरी की वैधता पर अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए। हालाँकि, वे इस बात पर सहमत हुए कि हितों के टकराव से जुड़े मामलों को हल करने के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया आवश्यक है। अदालत ने इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय भविष्य की पीठ के लिए छोड़ दिया। गौरतलब है कि जीएम फसलों पर हितों के टकराव का सवाल पहली बार 2013 में उठाया गया था, जब जीएम-मुक्त भारत के लिए गठबंधन नामक कार्यकर्ता समूह ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति के एक सदस्य का संबंध ऐसे संगठन से था, जिसे बहुराष्ट्रीय बायोटेक कंपनी मोनसेंटो और उसके सहयोगी भारतीय संगठनों द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) क्या है?
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, भारत में जैव प्रौद्योगिकी आधारित शोध और विकास से संबंधित परियोजनाओं को मंजूरी देने वाला शीर्ष तकनीकी निकाय है। इसे “पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986” के तहत ‘खतरनाक सूक्ष्मजीवों/आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण के नियम, 1989’ के अंतर्गत पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया था। इसका प्राथमिक उद्देश्य आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) और उत्पादों की पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है। समिति वैज्ञानिक विशेषज्ञों और प्रशासकों का एक समूह है, जो इस बात की जाँच करता है कि जीएम फसलों और प्रौद्योगिकियों का विकास और उपयोग मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और जैव विविधता पर किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव न डाले। इस प्रकार, जीईएसी का उद्देश्य जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े शोध और विकास कार्यों के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना और उन्हें नियंत्रित करना है। जीईएसी की अध्यक्षता पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव करते हैं और सह-अध्यक्षता जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के प्रतिनिधि करते हैं। वर्तमान में, इसके 24 सदस्य हैं।
1989 के नियम विभिन्न जैव सुरक्षा पहलुओं को संभालने के लिए पाँच प्रमुख सक्षम प्राधिकारियों को परिभाषित करते हैं। इनमें शामिल हैं:
- संस्थागत जैव सुरक्षा समिति (IBSC)
- आनुवंशिक हेरफेर की समीक्षा समिति (RCGM)
- आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC)
- राज्य जैव प्रौद्योगिकी समन्वय समिति (SBCC)
- जिला स्तरीय समिति (DLC)
आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (GM Crops) के बारें में-
GM Crops उन फसलों को कहा जाता है, जिनके डीएनए (DNA) को जैव प्रौद्योगिकी तकनीकों के माध्यम से संशोधित किया गया है। यह संशोधन पारंपरिक कृषि विधियों के बजाय प्रयोगशाला में किया जाता है, ताकि फसलों में वांछित गुण विकसित किए जा सकें।
जीएम फसलों के उद्देश्य
- उपज वृद्धि: फसलों की उत्पादकता बढ़ाना।
- कीट प्रतिरोध: फसलों में कीड़ों और अन्य हानिकारक जीवों से लड़ने की क्षमता विकसित करना।
- जलवायु सहिष्णुता: सूखा, अत्यधिक तापमान और खारे पानी जैसी कठोर परिस्थितियों को सहने योग्य फसलें बनाना।
- पोषण संवर्धन: विटामिन, खनिज या अन्य पोषक तत्वों से भरपूर फसलों का विकास।
- रसायनों की आवश्यकता कम करना: कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग घटाना।
जीएम फसलों के उदाहरण
- बीटी कपास (Bt Cotton): यह भारत में पहली व्यावसायिक जीएम फसल है, जो कीट प्रतिरोधी है। बीटी कपास में बैसिलस थ्युरिनजिएन्सिस नामक बैक्टीरिया से प्राप्त क्राई (Cry) जीन डाला जाता है, जिससे पौधा स्वयं कीटनाशक प्रभाव उत्पन्न करता है। इसके कारण कीटनाशक दवाओं की आवश्यकता नहीं होती। बैसिलस थूरिनजिएनसिस एक भूमिगत बैक्टीरिया है, जो डेल्टा एंडोटॉक्सिन नामक क्रिस्टल प्रोटीन का निर्माण करता है। क्रिस्टल प्रोटीन कीटाणुओं को नष्ट कर देता है।
भारत सरकार ने 2002 में बीटी कपास की तीन किस्मों (मेक-12, मेक-162 और मेक-184) के उपयोग की अनुमति दी थी। इन किस्मों को महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी प्राइवेट लिमिटेड (महिको) ने विकसित किया, जो बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसेंटो की अनुषंगी है। भारत में वर्तमान में 90% कपास की खेती बीटी कपास के माध्यम से होती है। गौरतलब है कि बीटी कपास की फसल को व्यावसायिक उत्पादन के लिये सर्वप्रथम संयुक्त राज्य अमेरिका में 1995 में मंजूरी दी गई थी। - जीएम सरसों (DMH-11): जीएम सरसों को पार-परागण को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया। सरसों स्वपरागित (Self-Pollinating) फसल है, जिससे इसे संकरित करना कठिन होता है। इस समस्या को हल करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दीपक पेंटल और उनकी टीम ने भारतीय सरसों (वरुणा) और पूर्वी यूरोप की सरसों (Early Heera-2) के जीन संशोधन से DMH-11 (Dhara Mustard Hybrid-11) विकसित किया। इस प्रक्रिया में बैसिलस अमाइलोलिक्विफेसिएंस बैक्टीरिया का उपयोग किया गया।
- गोल्डन राइस (Golden Rice): यह एक लाभप्रद धान की किस्म है, जो विटामिन ए की कमी को दूर करने के लिए विकसित की गई। इसमें बीटा कैरोटीन होता है, जो मानव शरीर में विटामिन ए में परिवर्तित हो जाता है। साधारण चावल में बीटा कैरोटीन नहीं होता, लेकिन गोल्डन राइस में यह अधिक मात्रा में होता है, जिससे इसका रंग सुनहरा हो जाता है। इसलिये इसे गोल्डन राइस कहा जाता है।
इसे विकसित करने के लिए PSY (डैफोडील पौधे से), CRT1 (बैक्टीरिया से), और LCY (धान में स्वाभाविक रूप से मौजूद) जीनों का उपयोग किया गया। ये तीनों जीन मिलकर ही चावल के दाने के एडोस्पर्म में चार चरणों में बीटा कैरोटीन विकसित कर सकते हैं। इसका पहला संस्करण स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने तैयार किया, जबकि गोल्डन राइस-2 को CRT1 जीन जोड़कर 2005 में Syngenta कंपनी ने विकसित किया।
उल्लेखनीय है कि विटामिन ए की कमी के कारण आंखों की रोशनी कम हो सकती है, जिससे गंभीर मामलों में अंधापन तक हो सकता है। विटामिन ए की कमी से जेरोफ्थैलमिया नामक रोग भी हो सकता है, जिसमें आंखें आंसू बनाना बंद कर देती हैं, जिससे आंखों की सुरक्षा और कार्यक्षमता प्रभावित होती है। विकासशील देशों में विटामिन ए की कमी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। गौरतलब है कि भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. गुरुदेव सिंह खुश गोल्डन राइस के अनुसंधान से जुड़े हुए हैं, जो इस समस्या का समाधान प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। - बीटी बैंगन (Bt Brinjal): बीटी बैंगन एक पराजीनी (जैव संवर्धित) फसल है, जिसे बैंगन के जीनोम में बैसिलस थ्युरिनजिएन्सिस बैक्टीरिया से प्राप्त Cry1Ac जीन प्रविष्ट कर तैयार किया गया है। इस जीन के कारण बैंगन में प्ररोह और फल छिद्रक कीटों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। भारत में आलू के बाद बैंगन सबसे अधिक उत्पादित सब्जी है और यह देश के कुल सब्जी उत्पादन का लगभग 9% हिस्सा है।
बीटी बैंगन को महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी (महिको) ने विकसित किया है। हालाँकि, इसके व्यावसायिक उपयोग को लेकर काफी विवाद हुआ है। जीएम फसल होने के कारण इसके विरोध के वही कारण हैं जो अन्य जीएम फसलों के लिए व्यक्त किए जाते हैं। पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों का तर्क है कि जीएम फसलों से क्षेत्रानुकूल पारंपरिक कृषि प्रभावित हो सकती है, जिससे फसल चक्र का पालन न होने पर मिट्टी की उर्वरता घट सकती है। इसके अलावा, कृषि के लिए लाभकारी छोटे जीवों और जैव विविधता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है।
बीटी बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित अर्जुला रेड्डी की अध्यक्षता वाली समिति ने अक्टूबर 2009 में दी थी। हालाँकि, इस निर्णय पर आरोप लगाए गए कि यह अंतर्राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग के दबाव में लिया गया था। इसके कारण बीटी बैंगन का मुद्दा विवादों का केंद्र बन गया। - जीएम सोयाबीन और मक्का: ये दुनिया की व्यापक रूप से उगाई जाने वाली जीएम फसलें हैं। जीएम सोयाबीन और मक्का की मुख्य विशेषताएँ हैं—कीट प्रतिरोध और शाकनाशी सहिष्णुता।
जीएम फसलों के लाभ
- कृषि उत्पादकता में सुधार: किसान कम संसाधनों के साथ अधिक उत्पादन कर सकते हैं।
- पर्यावरण संरक्षण: कम कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है।
- खाद्य सुरक्षा: बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा करने में मदद।
- पोषण में सुधार: बेहतर पोषण मूल्य वाली फसलें।
जीएम फसलों की चुनौतियाँ
- पर्यावरणीय प्रभाव: पारिस्थितिकी पर लंबे समय तक होने वाले प्रभावों को लेकर चिंता।
- मानव स्वास्थ्य: जीएम फसलों के संभावित स्वास्थ्य जोखिमों पर शोध अभी भी जारी है।
- जैव विविधता पर प्रभाव: अन्य पारंपरिक फसलों और जीवों पर प्रभाव।
- बायोटेक कंपनियों का वर्चस्व: बीज पर निर्भरता बढ़ सकती है।
- सामाजिक और नैतिक विवाद: कई समूह इसे अप्राकृतिक मानते हैं।
भारत में स्थिति-
भारत में जीएम फसलों को अपनाने की प्रक्रिया विवादित रही है। वर्तमान में, बीटी कपास एकमात्र स्वीकृत जीएम फसल है। जीएम सरसों और अन्य फसलों पर अभी भी परीक्षण और अनुमोदन की प्रक्रिया चल रही है।
निष्कर्ष-
जीएम फसलों के विकास ने कृषि उत्पादन में क्रांति लाई है, लेकिन इन्हें लेकर पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ भी बनी हुई हैं। जीएम फसलों का भविष्य वैज्ञानिक शोध, पर्यावरणीय प्रभावों के आकलन और समाज की स्वीकृति पर निर्भर करेगा।
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