बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैक्ट चेक यूनिट को कहा असंवैधानिक! क्या है फैक्ट चेक यूनिट (Fact check unit), इसके विवाद और कोर्ट के तर्क जानें!

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हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने केंद्र को झटका देते हुए आईटी नियमों (IT Rules) में संशोधन के उपरांत गठित फैक्ट चेक यूनिट (Fact check unit) को असंवैधानिक करार दे दिया। यह फैक्ट चेक यूनिट (FCU) सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर “फर्जी खबरों” की पहचान करने का अधिकार देता है।

मामले पर क्या रहा कोर्ट का तर्क-

  • मामले पर कोर्ट ने कहा कि नियम 3(1)(बी)(वी) के माध्यम से आईटी नियम, 2023 में संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 (1) (ए) और 19 (1) (जी) का उल्लंघन है। नियम में लिखे नकली, झूठे या भ्रामक शब्द “अस्पष्ट और अतिव्यापक” हैं, और “आनुपातिकता के परीक्षण” पर खड़े नहीं उतरते।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत, ‘सत्य का अधिकार’ नहीं आता है।
  • यह राज्य की जिम्मेदारी नहीं है कि वह सुनिश्चित करे कि नागरिक केवल उस ‘सूचना’ के हकदार हैं जो उसके एफसीयू द्वारा पहचानी गई नकली, झूठी या भ्रामक नहीं है।
  • विवादित संशोधन को आईटी अधिनियम, 2000 के अनुसार लागू नहीं किया गया है और केंद्र द्वारा यह नहीं दिखाया गया है कि प्रस्तावित संशोधन को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष 2000 के कानून की धारा 87 के अनुसार निर्धारित तरीके से रखा गया था।
  • सरकार प्रिंट मीडिया के लिये ऐसे किसी नियम का पालन नहीं करती केवल डिजिटल मीडिया पर केंद्र सरकार के व्यवसाय से संबंधित जानकारी का फैक्ट चेक किया जाता है।

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क्या है फैक्ट चेक यूनिट?/What is Fact Check Unit?

भारत सरकार (कार्य आवंटन) नियम, 1961 के अंतर्गत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) को विभिन्न संचार माध्यमों के माध्यम से सरकारी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में सूचना प्रसारित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ऐसे में इसकी पूर्ती के लिये मंत्रालय के पास प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) सहित कई संबद्ध और अधीनस्थ कार्यालय हैं। वहीं डिजिटल मीडिया के युग में सरकार से सम्बंधित फर्जी ख़बरों से निपटने के लिये सक्रिय कदम उठाते हुए नवंबर 2019 में, पीआईबी ने फैक्ट चेक यूनिट (FCU) की स्थापना की।

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वर्ष 2023 में आईटी नियम, 2021 में संशोधन करते हुए भारत सरकार ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत पीआईबी की एफसीयू को केंद्र सरकार की तथ्य-जांच इकाई के रूप में अधिसूचित किया। साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत इस फैक्ट चेक यूनिट को केंद्र सरकार की तथ्य-जांच इकाई के रूप में अधिसूचित किया।

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क्या है संशोधित नियम?

वर्ष 2023 में आईटी नियम 2021 (सूचना प्रौद्योगिकी मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता नियम, 2021) में हुए संशोधन के ‘फर्जी समाचार’ की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए ‘सरकारी कामकाज’ को भी इसमें शामिल कर दिया गया। साथ ही फैक्ट चेक यूनिट द्वारा “नकली या भ्रामक” के रूप में चिह्नित सामग्री को ऑनलाइन मध्यस्थों द्वारा हटाया जाना एक तरह से बाध्यकारी बना दिया गया। यानी अगर ये डिजिटल मध्यस्थ जैसे ट्विटर, फेसबुक अपनी ‘सेफ हार्बर’ स्थिति को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो एफसीयू द्वारा नकली भ्रामक बताए गए खबरों को उन्हें हटाना होगा। बता दें कि यहाँ सेफ हार्बर का अर्थ है तीसरे पक्ष की सामग्री के खिलाफ कानूनी प्रतिरक्षा बनाए रखना।

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फैक्ट चेक यूनिट को लेकर विवाद के क्या हैं कारण?

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ – इससे लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगेगा क्योंकि सरकार के विरुद्ध डिजिटल मीडिया में कुछ लिखने पर सरकार इसे भ्रामक बताते हुए ख़ारिज कर सकती है। यही कारण है कि डिजिटल राइट्स ग्रुप इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया आदि ने इसका विरोध किया था।
  • सरकार कर सकती है इसका दुरूपयोग- सरकार किसी भी ख़बर को भ्रामक बताते हुए डिजिटल पत्रकारों या व्हिस्टल ब्लॉवर के विरुद्ध कार्रवाई कर सकती है।
  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत चूंकि यह सरकार को पीड़ित, न्यायाधीश और जल्लाद सबकी भूमिका देता है। यानी सरकार ही अपने विरुद्ध हो रहे दुष्प्रचार के लिये सजा सुनती भी है और सजा देती भी है।

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  • संशोधित नियम में लिखा गया भ्रामक शब्द स्पष्ट नहीं है, सरकार इसकी किसी भी तरह व्याख्या कर सकती है।
  • फैक्ट चेक यूनिट की अधिसूचना श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ और आईटी अधिनियम की धारा 69 ए में निर्धारित प्रक्रियाओं, सुरक्षा उपायों और शर्तों के अनुरूप नहीं है।
  • बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले से पहले सर्वोच्च न्यायालय ने कुणाल कामरा बनाम भारत संघ (2023) मामले पर सुनवाई के दौरान संशोधित आईटी नियमों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी। हालांकि अभी मामले पर पूर्ण फैसला आना बाकि है।

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आगे की राह-

  • फैक्ट चेक यूनिट के गठन के पीछे सरकार का तर्क है कि इससे सरकार फेक न्यूज़ के विरुद्ध लड़ना चाहती है, जिससे समाज को कई बार नुकसान हुआ है। साथ ही नागरिक तक सही सूचना पहुंचेगी और वे जागरूक बनेंगे। इससे हेट स्पीच पर भी विराम लगेगा। सरकार के ये तर्क सही नजर आते हैं लेकिन जैसा कि उच्च न्यायालय ने माना लोगों तक सही सूचना पहुँचाने का अधिकार सरकार का नहीं है और ना ही इसके लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा सकता है।
  • फैक्ट चेक यूनिट के मामले में सरकार को पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। साथ ही नागरिक समाज, मीडिया समूह और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर काम करने या उनकी सलाह-सुझाव के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए।
  • सरकार फैक्ट चेक यूनिट को एक स्वतंत्र संस्था के रूप में अधिसूचित करते हुए भी विश्वास बहाली का प्रयास कर सकती है। साथ ही फेक न्यूज़ पर विराम भी लगा सकती है।
  • मामले पर बढ़ते विवाद को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई को तीव्र करना चाहिए और कोर्ट के फैसले के अनुसार सरकार को आगे बढ़ना चाहिए।


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