भारत में करियर चयन: 90 के दशक के बाद क्या परिवर्तन आए?

Changes in career selection in India after the 90s

90 के दशक के बाद भारत में करियर चयन को लेकर बदलाव-

भारत में करियर चयन का परिदृश्य पिछले कुछ दशकों में बेहद बदल गया है। 90 के दशक से पहले, भारतीय समाज में सरकारी नौकरी, विशेष रूप से कलेक्टर, सरकारी बाबू और क्लर्क जैसे पदों पर काम करने का सपना देखा जाता था। तब नौकरी की स्थिरता, सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन भर की सुरक्षा जैसे पहलू करियर चयन के प्राथमिक कारण होते थे। लेकिन 90 के दशक के बाद भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में कई महत्त्वपूर्ण बदलाव आए, जिन्होंने करियर चयन के तरीके और प्राथमिकताओं को पूरी तरह बदल दिया। इन परिवर्तनों का असर न सिर्फ पारंपरिक क्षेत्रों पर पड़ा, बल्कि कई नए और उभरते हुए क्षेत्रों में भी देखने को मिला। आइए इन बदलावों को विस्तार से समझते हैं।

1990 के दशक से पहले का दौर: सरकारी नौकरी का आकर्षण

The allure of government jobs in India

1990 के दशक से पहले, भारतीय समाज में सरकारी नौकरियों का अत्यधिक महत्व था। सरकारी नौकरी एक सुरक्षित और सम्मानजनक करियर मानी जाती थी। माता-पिता अपने बच्चों से यह अपेक्षा रखते थे कि वे एक स्थिर और सुरक्षित नौकरी प्राप्त करें, चाहे वह कलेक्टर हो, सरकारी बाबू हो, या किसी अन्य सरकारी विभाग में हो। इसका मुख्य कारण यह था कि उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का विकास धीमा था और लोगों के पास सीमित करियर विकल्प थे। सरकारी नौकरी के साथ मिलने वाली पेंशन, स्वास्थ्य लाभ और स्थिर आय जैसे तत्व इसे समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान प्रदान करते थे। यहाँ तक कि रेलवे, डाक सेवा, और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियाँ भी अत्यधिक सम्मानजनक मानी जाती थीं। इसके अलावा, सरकारी नौकरी में काम के घण्टे तय होते थे और प्रमोशन तथा वेतनवृद्धि के अवसर भी सुनिश्चित रहते थे। सरकारी नौकरी की परीक्षा जैसे कि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (State PSCs) का क्रेज भी उस समय चरम पर था। इनमे सलेक्शन पाने वाले व्यक्ति के परिवार की प्रतिष्ठा समाज में खूब बढ़ जाती थी।

1990 के दशक का आर्थिक उदारीकरण और इसके प्रभाव

economic liberalisation in india

1990 के दशक में भारत में आर्थिक उदारीकरण (liberalization) की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को निजी क्षेत्र और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) की नीतियों ने देश में विकास की गति तेज कर दी। इसके बाद आईटी, बैंकिंग, इंश्योरेंस, और निजी उद्योगों में कई नए अवसर उत्पन्न हुए। इन नीतियों ने न केवल व्यापार और उद्योग को प्रोत्साहित किया, बल्कि एक नई पीढ़ी को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने का अवसर दिया। टाटा, रिलायंस, इंफोसिस, विप्रो जैसी कंपनियों का विस्तार हुआ और युवाओं के लिए रोजगार के कई नए द्वार खुल गए। इसका सीधा असर शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ा, जहाँ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा। इस दौर में डॉक्टर और इंजीनियर बनने का आकर्षण तेजी से बढ़ने लगा। इंजीनियरिंग और मेडिकल कोर्सों में प्रवेश पाना एक प्रमुख उपलब्धि माना जाने लगा और यह धारणा बनी कि ये क्षेत्र लोगों को आर्थिक स्थिरता और उच्च सामाजिक सम्मान प्रदान कर सकते हैं।यही कारण है कि आईआईटी (IIT) और एनआईटी (NIT) जैसी प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थाओं के साथ-साथ एम्स (AIIMS) जैसे मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाने का सपना अधिक से अधिक विद्यार्थियों और उनके परिवारों का बन गया। इस समय, मध्य वर्ग के उदय के साथ, माता-पिता ने भी अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनने के लिए प्रोत्साहित किया।

1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में भारत में आईटी उद्योग ने जबरदस्त उछाल देखी। आईटी क्रांति ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान दी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) ने भारतीय युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार देना शुरू किया। टेक्नोलॉजी में बढ़ती नौकरियों ने युवाओं के लिए नए करियर विकल्प खोले और इस समय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई और सॉफ्टवेयर डेवलपर, डेटा एनालिस्ट जैसे प्रोफेशन लोकप्रिय हो गए। बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे जैसे शहर आईटी हब बन गए। इसने न केवल भारत के महानगरों में बल्कि छोटे शहरों और कस्बों में भी आईटी सेक्टर में करियर बनाने का रास्ता खोला। हालाँकि, एक बड़े वर्ग में सरकारी नौकरी प्राप्त करने की परंपरा भी जारी रही। इसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में जैसे पदों की अपनी अलग लोकप्रियता थी।

2000 के दशक के बाद भारत में इंजीनियरिंग के कॉलेजों की संख्या में भी वृद्धि हुई। 2001 में, भारत में लगभग 1500 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, जबकि 2020 में यह संख्या 3500 के पार हो गई। इसने लाखों युवाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और बेहतर करियर अवसर पाने में मदद की। सॉफ्टवेयर डेवलपर, डेटा एनालिस्ट, साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट जैसे नए प्रोफेशन लोकप्रिय हो गए।

21वीं सदी का पहला दशक: नई पीढ़ी के विकल्प

The first decade of the 21st century

21वीं सदी के पहले दशक में, करियर चयन के क्षेत्र में और भी अधिक बदलाव देखने को मिले। जहाँ पहले डॉक्टर, इंजीनियर और आईएएस के करियर को ही मुख्य विकल्प माना जाता था, वहीं अब विभिन्न नए क्षेत्रों में अवसर बढ़ने लगे। बिजनेस मैनेजमेंट, चार्टर्ड अकाउंटेंसी, मास मीडिया, पत्रकारिता, फैशन डिजाइनिंग और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्रों में भी करियर के विकल्प खुल गए। युवाओं ने परंपरागत करियर से हटकर नए क्षेत्रों में जाने का साहस दिखाना शुरू किया।

MBA और कॉर्पोरेट करियर: आईआईएम (IIM) और अन्य प्रबंधन संस्थानों से एमबीए की पढ़ाई करना इस दौर में भी बेहद लोकप्रिय हो गया। बिजनेस मैनेजमेंट के क्षेत्र में बड़ी कंपनियों में ऊँचे पदों पर काम करने का आकर्षण बढ़ा, जिससे लोग बैंकिंग, कॉर्पोरेट जगत और एंटरप्रेन्योरशिप की ओर भी रुख करने लगे।

सोशल मीडिया और इंटरनेट क्रांति का प्रभाव: कॉन्टेंट क्रिएशन और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग

social media career

2010 के दशक की शुरुआत के साथ ही, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने दुनिया को पूरी तरह बदल दिया। इसने न केवल लोगों के जीवन जीने के तरीके को बदला, बल्कि करियर चयन के क्षेत्र में भी बड़े बदलाव लाए। अब युवाओं के पास करियर के लिए पारंपरिक विकल्पों के अलावा अनगिनत नए रास्ते खुल गए। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स, जैसे कि यूट्यूब, इंस्टाग्राम, और फेसबुक, ने युवाओं को अपने आप को एक नए तरीके से प्रस्तुत करने का अवसर दिया।

कॉन्टेंट क्रिएशन और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग: अब युवा यूट्यूबर, ब्लॉगर और इन्फ्लुएंसर बनकर न केवल मनोरंजन की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं, बल्कि एक सफल करियर भी बना रहे हैं। कॉन्टेंट क्रिएटर, गेमिंग स्ट्रीमर और डिजिटल मार्केटर जैसे करियर अब तेजी से उभरते हुए करियर विकल्प बन चुके हैं। इन क्षेत्रों में अब युवाओं को ज्यादा क्रिएटिव और स्वतंत्र करियर के अवसर मिल रहे हैं। लोग अब डिजिटल मीडिया के जरिए अपनी पहचान बना रहे हैं और अपने व्यक्तित्व को ब्रांड में बदल सकते हैं। भुवन बाम, जिन्होंने यूट्यूब पर अपने चैनल BB Ki Vines की शुरुआत की, आज देश के सबसे बड़े यूट्यूब सितारों में से एक हैं। उनकी कहानी ने यह साबित कर दिया कि अब सिर्फ डॉक्टर या इंजीनियर ही नहीं, बल्कि कॉन्टेंट क्रिएटर भी सफल करियर बना सकते हैं।

उभरते हुए नए करियर विकल्प

New emerging career options

अब हम ऐसे दौर में पहुँच चुके हैं, जहाँ करियर चयन सिर्फ पारंपरिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। कई नए और अनोखे करियर विकल्प सामने आ चुके हैं। इसमें शामिल हैं:

फिटनेस और वेलनेस: फिटनेस ट्रेनर, योग प्रशिक्षक और आहार विशेषज्ञ जैसे प्रोफेशन अब बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। स्वस्थ जीवनशैली की ओर लोगों का रुझान बढ़ने से इन करियरों में रोजगार के कई अवसर पैदा हो रहे हैं।

डिजिटल आर्ट और डिज़ाइन: ग्राफिक डिजाइनर, वेब डिजाइनर, एनिमेटर, और वीडियो एडिटर जैसे प्रोफेशन भी तेजी से उभर रहे हैं। क्रिएटिविटी और तकनीक के संगम से यह क्षेत्र युवाओं को आकर्षित कर रहा है। सोशल मीडिया के दौर में तो इस क्षेत्र ने काफी लोकप्रियता हासिल की है।

गेमिंग और ई-स्पोर्ट्स: आज के युवा गेमिंग को सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि करियर के रूप में देख रहे हैं। ई-स्पोर्ट्स और गेमिंग के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा और ऊँची कमाई के अवसर उपलब्ध हैं।

संगीत, डांस और कला: अब लोग अपने शौक, जैसे संगीत, डांस या कला, को भी करियर में बदलने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। इस क्षेत्र में भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स ने अवसरों को नई ऊँचाई दी है।

आत्मनिर्भरता और एंटरप्रेन्योरशिप की ओर रुझान

Atmanirbhar Bharat and Entrepreneurship

अब युवा अपने करियर चयन में आत्मनिर्भरता की ओर अधिक ध्यान दे रहे हैं। उद्यमिता, उद्यमशीलता, और छोटे व्यवसाय भी अब एक मुख्य व्यवसाय विकल्प बन गए हैं। सरकार की अधिसूचना, जैसे ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’, ने इस क्षेत्र में युवाओं को प्रेरित किया है। सरकार के लक्ष्य तो 10 वर्षों में देश में फिल्मों की संख्या 2014 के 350 से 1.48 करोड़ हो गई है। इस प्रकार पिछले 10 वर्षों में भारत में 300 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। सरकार के अनुसार 2014 के बाद से 1 करोड़ से अधिक प्लाट दिए गए हैं। एंटरप्राइज पोर्टल पर 4.91 करोड़ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) पंजीकृत हैं, जिनमें 1.85 करोड़ महिला स्वामित्व वाली इकाइयां हैं।

ओला, फ्लिपकार्ट, भारत-पे, जोमैटो, बायजूस जैसी कंपनियों ने इस दौर में न केवल भारत के भीतर रोजगार के अवसर बढ़ाए, बल्कि वैश्विक निवेशकों का ध्यान भी आकर्षित किया। एंटरप्रेन्योरशिप के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ने का एक बड़ा कारण आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता की भावना है।

निष्कर्ष

अंत में कहा जाए तो 90 के दशक के बाद भारत में करियर चयन में बदलाव केवल व्यक्तिगत इच्छाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समाज, अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। सरकारी नौकरी से लेकर इंजीनियरिंग और मेडिकल और फिर डिजिटल करियर तक, युवाओं के पास आज कई विकल्प हैं। डिजिटल युग और ग्लोबलाइजेशन ने इस बदलाव को और तेज कर दिया है, जिससे युवा अपने शौक और रुचियों को भी करियर में बदल सकते हैं। इस प्रकार इन बदलावों ने यह दिखाया कि करियर चयन अब केवल समाज की अपेक्षाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि अब युवा अपने सपनों को भी करियर में बदल सकते हैं।

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