अमेरिका अब रूस के साथ? वैश्विक राजनीति में बड़ा मोड़!

America is now with Russia in UN

अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन पर रूस का समर्थन किया

इस लेख में हम एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम पर चर्चा करेंगे, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। अमेरिका, जो अब तक यूक्रेन का सबसे बड़ा समर्थक था, अब रूस के पक्ष में खड़ा दिख रहा है। यह बदलाव हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में देखने को मिला, जहाँ अमेरिका ने एक महत्वपूर्ण मतदान में रूस के समर्थन में वोट किया। यह सिर्फ एक साधारण कूटनीतिक फैसला नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी रणनीति और वैश्विक राजनीति में एक बड़ा बदलाव छिपा है। तो आखिर अमेरिका की विदेश नीति में यह अचानक बदलाव क्यों आया? क्या यह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई रणनीति का हिस्सा है, या इसके पीछे कोई और बड़ा कारण है? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल – इसका वैश्विक राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका ने रूस के पक्ष में वोट क्यों दिया?

24 फरवरी 2025 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव लाया गया, जिसका उद्देश्य रूस के 2022 में यूक्रेन पर हमले की निंदा करना और यूक्रेन की संप्रभुता को मान्यता देना था। यह प्रस्ताव पहले की तरह ही था, लेकिन इस बार जो बात सबसे ज्यादा चौंकाने वाली थी, वह थी अमेरिका का रुख। अमेरिका, जिसने पहले यूक्रेन का खुला समर्थन किया था, अब इस प्रस्ताव के खिलाफ रूस के पक्ष में खड़ा हो गया। अमेरिका ने न केवल इस प्रस्ताव का विरोध किया, बल्कि उसने रूस के समर्थन में मतदान भी किया।

इस मतदान में अमेरिका, रूस, उत्तर कोरिया, बेलारूस और इज़राइल सहित कुल 18 देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया, जबकि 93 देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया। 65 देशों ने मतदान से परहेज किया, जिनमें भारत, चीन और कुछ अफ्रीकी राष्ट्र शामिल थे। यह फैसला सिर्फ एक मतदान नहीं था, बल्कि यह अमेरिका की विदेश नीति में एक बड़े बदलाव का संकेत था, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।

अमेरिका की नीति में बदलाव क्यों आया?

अमेरिका की इस नीति में बदलाव का असली कारण जनवरी 2025 में डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेना है। जैसे ही ट्रंप सत्ता में आए, उन्होंने अमेरिका की विदेश नीति में बड़े बदलाव करने शुरू कर दिए। ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को हथियार और वित्तीय सहायता देने की बाइडेन प्रशासन की नीति को पूरी तरह पलट दिया। उनकी सरकार का मानना है कि अमेरिका को सीधे युद्ध में नहीं फंसना चाहिए, बल्कि रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने बयानों में स्पष्ट किया कि वे यूक्रेन को अब और सैन्य सहायता नहीं देंगे और रूस और यूक्रेन को आपसी बातचीत से समस्या सुलझानी चाहिए। इस बदलाव का असर तब हुआ खुलकर सामने आया जब ट्रंप ने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को “तानाशाह” कह दिया। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की पर अमेरिकी सहायता के दुरुपयोग का भी आरोप लगाया। उनका दावा है कि ज़ेलेंस्की एक “अंतहीन संघर्ष” को बनाए रखना चाहते हैं और अमेरिका की मदद को अपनी निजी सत्ता बचाने का साधन बना रहे हैं। ट्रंप का यह भी मानना है कि युद्ध को टाला जा सकता था, लेकिन फिर भी यूक्रेन ने युद्ध की शुरुआत की और ज़ेलेंस्की ने इस संघर्ष को जानबूझकर लंबा खींचने का काम किया है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि अगर ज़ेलेंस्की ने कुर्सी नहीं छोड़ी तो उनके साथ कोई देश खड़ा नहीं रहेगा। ज़ेलेंस्की ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्रंप पर रूस के दुष्प्रचार से प्रभावित होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ट्रंप के बयान यूक्रेन की संप्रभुता को ख़तरे में डाल सकते हैं। यह पूरी स्थिति दिखाती है कि अमेरिका अब पहले की तरह यूक्रेन के साथ खड़ा नहीं है।

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क्या इज़राइल भी अमेरिका के साथ खड़ा हो गया?

अमेरिका के इस रुख का असर केवल रूस-यूक्रेन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका असर इज़राइल के रुख पर भी पड़ा। पहले इज़राइल यूक्रेन का समर्थन करता था, लेकिन इस बार उसने अमेरिका के साथ मिलकर प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया। इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि इज़राइल और अमेरिका अब कूटनीतिक रूप से एक नई धुरी बना रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इज़राइल अमेरिका से अपने संबंध और मजबूत करना चाहता है और इसलिए उसने अमेरिका की रणनीति को अपनाया।

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अमेरिका के फैसले से यूरोपीय देशों में नाराजगी क्यों?

अमेरिका के इस फैसले ने यूरोपीय देशों को गहरी चिंता में डाल दिया है। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अब भी यूक्रेन के समर्थन में हैं। यूरोप लंबे समय से अमेरिकी नेतृत्व में रूस के खिलाफ एकजुट था, लेकिन अब अमेरिका की इस नई नीति से यूरोप और अमेरिका के बीच दूरियां बढ़ती दिख रही हैं। यूरोपीय देशों को लग रहा है कि अगर अमेरिका यूक्रेन का समर्थन कम कर देगा, तो रूस के खिलाफ पश्चिमी मोर्चा कमजोर पड़ जाएगा, जिससे रूस और अधिक आक्रामक हो सकता है।

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में क्या हुआ?

संयुक्त राष्ट्र महासभा के मतदान के बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी अमेरिका ने एक नया प्रस्ताव पेश किया, जिसमें युद्ध समाप्ति की अपील की गई थी, लेकिन इसमें रूस की आक्रामकता का कोई उल्लेख नहीं था। इस प्रस्ताव को 10 देशों का समर्थन मिला, लेकिन फ्रांस और ब्रिटेन समेत 5 देशों ने इससे दूरी बना ली। इससे यह साफ हो गया कि अमेरिका अब सीधे तौर पर रूस के खिलाफ कोई आक्रामक रुख नहीं अपनाना चाहता।

इस नीति परिवर्तन का वैश्विक प्रभाव क्या होगा?

अमेरिका की इस नई नीति के वैश्विक प्रभाव दूरगामी होंगे। एक ओर जहाँ कुछ देश इसे रूस के साथ संबंध सुधारने की दिशा में एक कदम मान रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर कई देश इसे यूक्रेन की संप्रभुता के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता में कमी के रूप में देख रहे हैं।

इस बदलाव के तीन प्रमुख प्रभाव हो सकते हैं:

  1. रूस को कूटनीतिक फायदा- अगर अमेरिका यूक्रेन का समर्थन कम करता है, तो इससे रूस को वैश्विक मंच पर मजबूती मिलेगी।
  2. यूरोप और अमेरिका में दरार– इससे पश्चिमी देशों की एकता कमजोर हो सकती है, जो कि रूस के लिए एक बड़ी जीत होगी।
  3. नया शक्ति संतुलन– अमेरिका और इज़राइल की यह नई रणनीति वैश्विक राजनीति में नए गठजोड़ (alliances) की शुरुआत कर सकती है।

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संक्षेप में, अमेरिका का यह कदम अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत देता है। जहाँ पहले अमेरिका खुलकर यूक्रेन का समर्थन कर रहा था, अब वह रूस के साथ बातचीत और शांति वार्ता की बात कर रहा है। यह सिर्फ अमेरिका की नीति में बदलाव नहीं है, बल्कि दुनिया की भू-राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो सकता है। यह देखना बाकी है कि इस बदलाव के दीर्घकालिक परिणाम क्या होंगे। सवाल है कि क्या अमेरिका का यह फैसला सही है? क्या इससे युद्ध खत्म होगा या फिर रूस और ज्यादा मजबूत होगा?


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