अफ्रीकी संघ आयोग चुनाव: जिबूती के विदेश मंत्री की जीत भारत के लिए अच्छी खबर?
हाल ही में इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में अफ्रीकी संघ आयोग (AUC) के चुनाव संपन्न हुए, जो वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दे सकते हैं। ऐसे समय में जब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अनिश्चितता बनी हुई है, अफ्रीकी संघ (AU) के नेतृत्व में यह परिवर्तन विभिन्न देशों के लिए नई संभावनाएँ लेकर आया है। इस चुनाव में सबसे प्रतिष्ठित पद AUC के अध्यक्ष का था, जो संघ की नीतियों और दिशा को निर्धारित करने में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
अफ्रीकी संघ आयोग चुनाव का परिणाम और प्रभाव
चाड के विदेश मंत्री फकी महामत का कार्यकाल समाप्त होने के बाद इस पद के लिए कई उम्मीदवार मैदान में थे। प्रारंभिक चरण में केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री रईला ओडिंगा को मजबूत समर्थन मिल रहा था, लेकिन अंततः जिबूती के विदेश मंत्री महमूद अली यूसुफ़ ने निर्णायक बढ़त हासिल कर यह चुनाव जीत लिया।
इसके अलावा, अल्जीरियाई राजदूत सलमा हदीद को उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया, जबकि नाइजीरियाई बैंकोले अडेओये ने शांति और सुरक्षा आयुक्त के रूप में अपने पद को बरकरार रखा।
2002 में AU की स्थापना के बाद से, इस पद पर कई प्रमुख हस्तियां रह चुकी हैं, जिनमें माली के राष्ट्रपति अल्फा ओउमर कोनारे, गैबोन के विदेश मंत्री जीन पिंग, दक्षिण अफ्रीका की नकोसाज़ाना डलामिनी-ज़ुमा और चाड के फकी महामत शामिल हैं। चुनाव की जटिलताओं को देखते हुए, अक्सर यह प्रक्रिया विवादों से घिरी रहती है।
जिबूती के विदेश मंत्री की जीत के भारत के लिए निहितार्थ
महमूद अली यूसुफ़ की यह जीत भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। फकी महामत के कार्यकाल में भारत-अफ्रीका संबंधों में सीमित प्रगति देखने को मिली थी, जबकि भारत ने AU की G20 सदस्यता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। महामत के नेतृत्व में, भारत के साथ सहयोग अपेक्षाकृत कम रहा और उन्होंने IAFS (इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट) जैसे मंचों में भारत की भागीदारी को सीमित करने की ओर झुकाव दिखाया। इसके विपरीत, महमूद अली यूसुफ़ भारत के प्रति अधिक सकारात्मक रुख रखते हैं। उन्होंने 2015 भारत-अफ्रीका फोरम समिट (IAFS-IV) सहित कई भारतीय कूटनीतिक कार्यक्रमों में भाग लिया है। इसके अलावा, वे जिबूती के राष्ट्रपति के साथ भारत की यात्राओं में भी शामिल रहे हैं। उन्होंने ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया था, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे भारत के वैश्विक योगदान को महत्व देते हैं।
रणनीतिक दृष्टिकोण और आगे की राह
हिंद महासागर में जिबूती की रणनीतिक स्थिति भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ चीन, अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों के सैन्य अड्डे पहले से ही मौजूद हैं, और ऐसे में जिबूती के नेतृत्व का भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना क्षेत्रीय संतुलन के लिए फायदेमंद हो सकता है। यूसुफ़ के नेतृत्व में, भारत के पास AU के साथ फिर से जुड़ने और दोनों क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ाने का सुनहरा अवसर है।
2025 का यह चुनाव न केवल अफ्रीकी राजनीति के लिए बल्कि भारत-अफ्रीका संबंधों के भविष्य के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यूसुफ़ की जीत से भारत को अफ्रीकी संघ आयोग के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने और बहुपक्षीय कूटनीति में अपनी स्थिति को और प्रभावी बनाने का अवसर मिलेगा।
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