IMF & Pakistan: एक जटिल आर्थिक और भू-राजनीतिक संबंध

Why does the IMF repeatedly give financial aid to Pakistan?

IMF द्वारा बार-बार पाकिस्तान को वित्तीय सहायता क्यों दी जाती है?

पाकिस्तान का आर्थिक परिदृश्य लंबे समय से संकटग्रस्त रहा है, और इसकी अर्थव्यवस्था बार-बार डिफॉल्ट के कगार पर खड़ी दिखाई देती है। राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, और कमजोर शासन व्यवस्था ने इसके आर्थिक ढांचे को और कमजोर किया है। विदेशी मुद्रा भंडार घटते जा रहे हैं, महंगाई चरम पर है और राजनीतिक अस्थिरता ने हालात और भी गंभीर बना दिए हैं। इस संदर्भ में, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ पाकिस्तान का संबंध एक महत्वपूर्ण विषय बनकर उभरता है। पाकिस्तान बार-बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से वित्तीय सहायता की मांग करता रहा है — और आश्चर्यजनक रूप से, उसे हर बार कुछ न कुछ राहत मिलती भी रही है।

ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, IMF ने पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर की सहायता राशि स्वीकृत की है। वो भी तब जब यह पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की सेना और आतंकवादी भारत के नागरिकों पर हमले कर रहे हैं। पाकिस्तान की सीमा में पलने वाले आतंकी संगठन भारत समेत अन्य पड़ोसी देशों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। इसके अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात भी बने हुए हैं। पाकिस्तान लगातार भारत के ऊपर ड्रोन और मिसाइल आदि के जरिये हमला कर रह रहा है। यह लेख पाकिस्तान और IMF के बीच के इस जटिल संबंध को विश्लेषित करता है, जिसमें आर्थिक सहायता के साथ-साथ भू-राजनीतिक गतिशीलता और वैश्विक शक्ति संतुलन की भूमिका भी शामिल है।

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IMF का परिचय और इसकी भूमिका

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक वैश्विक वित्तीय संस्था है, जिसकी स्थापना 930 की आर्थिक महामंदी के बाद 1944 में 44 देशों द्वारा वैश्विक आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इसका उद्देश्य 191 सदस्य देशों को वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास के लिए ऋण, नीतिगत सलाह, और तकनीकी सहायता प्रदान करना है। IMF लगभग 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण प्रदान करने में सक्षम है, लेकिन इसके साथ कठोर शर्तें भी जुड़ी होती हैं, जैसे करों में वृद्धि, सब्सिडी हटाना, और मुद्रा मूल्य को बाजार के अनुसार समायोजित करना।

IMF द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण विशेष आहरण अधिकार (SDR) है। यह IMF द्वारा बनाई गई एक प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति है। यह वास्तविक मुद्रा नहीं है लेकिन इसका बहुत मूल्य है क्योंकि धारक देश इसे ज़रूरत पड़ने पर अमेरिकी डॉलर, यूरो या येन जैसी प्रमुख मुद्राओं के लिए बदल सकते हैं। अर्थात् यह किसी देश की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रमुख मुद्राओं में परिवर्तनीय है। SDR का मूल्य पांच मुद्राओं की टोकरी पर आधारित है – अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी रेनमिनबी, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग। IMF हर कुछ वर्षों के बाद इस टोकरी की समीक्षा करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के अनुसार प्रासंगिक बनी रहे।

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IMF में अमेरिका का प्रभुत्व

IMF में जब कोई कर्ज़ अप्रूव होता है, तो उसमें मेंबर देशों द्वारा वोटिंग की जाती है। इसमें प्रत्येक देश की मतदान शक्ति (voting power) उसके आर्थिक योगदान के अनुपात में निर्धारित होती है, अर्थात् यह ‘एक देश, एक वोट’ की तर्ज़ पर नहीं होता है। अमेरिका इस संस्था का सबसे बड़ा अंशदाता है। यह तथ्य अपने-आप में यह संकेत देता है कि IMF द्वारा पाकिस्तान को लगातार दी जा रही सहायता में अमेरिका की भूमिका महत्वपूर्ण है।

पाकिस्तान और IMF: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

पाकिस्तान ने 1958 में पहली बार IMF से ऋण लिया था, जो केवल 25 मिलियन एसडीआर का स्टैंडबाय व्यवस्था था। तब से लेकर 31 मार्च, 2025 तक, पाकिस्तान ने 24 बार IMF से सहायता प्राप्त की है, जिसका कुल मूल्य 20.6 बिलियन एसडीआर (लगभग 28 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक) तक पहुँच चुका है। ये ऋण सामान्य संसाधन खाता (GRA) और गरीबी न्यूनीकरण एवं विकास ट्रस्ट (PRGT) के अंतर्गत प्रदान किए गए हैं। GRA ऋण ज्यादातर अल्पकालिक या मध्यम अवधि के लिए होते हैं, जबकि PRGT ऋण कम आय वाले देशों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं ताकि गरीबी को कम करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद मिल सके। हाल के उदाहरणों में, 2023 में 9 महीने की स्टैंडबाय व्यवस्था (SBA) के तहत 3 बिलियन डॉलर और 2024 में 37 महीने की विस्तारित निधि सुविधा (EFF) के तहत 7 बिलियन डॉलर का ऋण शामिल है। हालाँकि, इन ऋणों के बावजूद, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कोई स्थायी सुधार नहीं हुआ है। संरचनात्मक समस्याएँ, जैसे भ्रष्टाचार, कमजोर आर्थिक नियोजन, और शासन की कमी, जस की तस बनी हुई हैं।

पाकिस्तान के संदर्भ में बात सिर्फ पैसे की नहीं है, बल्कि उस मानसिकता और व्यवस्था की है जो निर्भरता को बनाए रखती है। पाकिस्तान ने अपनी आर्थिक यात्रा में कई बार IMF की शरण ली। लेकिन एक बात स्थिर रही- पैसा आया, आर्थिक सुधार नहीं। हर बार IMF का लोन एक temporary solution बनकर रह गया, structured issues खड़े होते गए। और जब हम ऐतिहासिक आंकड़ों को देखते हैं, तो पैटर्न सामने आते हैं। हर 1-2 साल में लोन दिए गए।

कुछ प्रमुख ऋण कार्यक्रमों का विवरण:

वर्षसहायता राशि (USD में)IMF प्रोग्राम का प्रकार
1988$194 मिलियनStand-By Arrangement (SBA)
1989$194.48 मिलियनStand-By Arrangement (SBA)
1991$122.40 मिलियनलोन (संभवत: SBA या EFF)
1992$189.55 मिलियनलोन (संभवत: SBA)
1993$88 मिलियनStand-By Arrangement (SBA)
1999$409.58 मिलियनIMF Arrangement (संभवत: SBA)
2001$465 मिलियनIMF Program (Post-9/11 Support)
2008$7.6 बिलियनStand-By Arrangement (SBA)
2013$4.3 बिलियनExtended Fund Facility (EFF)
2023$3 बिलियनStand-By Arrangement (SBA)
2024$7 बिलियनExtended Fund Facility (EFF)

इन सभी कार्यक्रमों का उद्देश्य पाकिस्तान को डिफ़ॉल्ट से बचाना और आर्थिक सुधार सुनिश्चित करना रहा है, किंतु व्यावहारिक परिणाम अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहे। हर बार पाकिस्तान को लोन दिया गया, लेकिन उसके आर्थिक हालात कभी नहीं सुधरे। 2023 में जो $3 बिलियन का SBA (Stand-By Arrangement) दिया गया, उसका उद्देश्य था पाकिस्तान को डिफ़ॉल्ट से बचाना।

अमेरिका, चीन, भारत और पाकिस्तान: IMF की डोर में बंधा भू-राजनीतिक त्रिकोण

पाकिस्तान और IMF के संबंध केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं हैं। यह एक गहरे भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा प्रतीत होता है। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति, जो दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के चौराहे पर है, और इसकी परमाणु शक्ति होने की स्थिति इसे “विफल होने के लिए बहुत खतरनाक” बनाती है। शायद इसीलिये संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देश इसे एक अस्थिर क्षेत्रीय स्थिति से बचाने के लिए बार-बार सहायता प्रदान करते हैं।IMF द्वारा पाकिस्तान को बार-बार दी जाने वाली वित्तीय सहायता का एक और महत्वपूर्ण पहलू है— विशेष रूप से भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच बना यह त्रिकोण, जो आज की वैश्विक राजनीति के सबसे बड़े पावर गेम्स में से एक बन चुका है। पाकिस्तान दो शक्तिशाली शक्तियों — भारत और चीन — के बीच एक रणनीतिक बफर की भूमिका निभाता है। यह वही पाकिस्तान है जो एक ओर भारत से लड़ता है, तो दूसरी ओर चीन और अमेरिका दोनों से समर्थन लेता है। अमेरिका, जो वैश्विक मंच पर चीन को अपनी प्रमुख चुनौती मानता है, पाकिस्तान को पूरी तरह से खोना नहीं चाहता — खासकर तब, जब भारत चीन के खिलाफ अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार बन रहा है।

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चीन की आर्थिक और तकनीकी प्रगति ने अमेरिका को दबाव में ला खड़ा किया है। “सेफगार्ड ग्लोबल” की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, चीन का वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट में हिस्सा 31.6% है, जबकि अमेरिका का केवल 15.9%। इसके अलावा, चीन 5G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में अमेरिका को पीछे छोड़ने की होड़ में लगा है। यही वजह है कि अमेरिका, भारत के साथ मिलकर QUAD और I2U2 जैसे संगठनों में काम कर रहा है — ताकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित किया जा सके। परंतु, अमेरिका नहीं चाहता कि भारत इतना मज़बूत हो जाए कि उसकी सामरिक निर्भरता समाप्त हो जाए। इसलिए, वह पाकिस्तान को नष्ट नहीं होने देता — कभी प्रत्यक्ष सहायता से, तो कभी IMF और वर्ल्ड बैंक जैसे वैश्विक संस्थानों के ज़रिए दबे स्वर में।

यह कोई संयोग नहीं है कि अमेरिका WHO और WTO जैसे संगठनों से पीछे हट गया, लेकिन IMF और वर्ल्ड बैंक से कभी नहीं। क्योंकि यही वो संस्थान हैं जहां अमेरिका की पकड़ सबसे मज़बूत है। IMF में अमेरिका का सबसे बड़ा योगदानकर्ता होने के कारण उसका वोटिंग शेयर 16.52% है, जबकि चीन का केवल 6.09% और भारत का 2.64%। इसका अर्थ है कि अमेरिका के पास IMF में प्रभावी वीटो शक्ति है। 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिका ने IMF में अपनी शक्ति को और बढ़ाया — 2009 में NAB (New Arrangements to Borrow) के तहत उसने 100 बिलियन डॉलर देने का वादा किया, और 2015 में IMF कोटे में 60 बिलियन डॉलर की और वृद्धि की। यह आर्थिक निवेश महज़ सहायता नहीं, बल्कि नियंत्रण का हथियार था। जब भी अमेरिका बोलता है, IMF सुनता है। यह प्रभाव पाकिस्तान को बार-बार बेलआउट पैकेज प्रदान करने में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसके पीछे भारत को क्षेत्रीय शक्ति के रूप में संतुलित करने और चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने की रणनीति भी हो सकती है। असल में IMF अमेरिका की रणनीति को आगे बढ़ाता हुआ प्रतीत होता है।

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दूसरी ओर, चीन भी पाकिस्तान को अपनी “आयरन ब्रदर” नीति के तहत एक रणनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल करता है। CPEC (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) जैसे प्रोजेक्ट्स से लेकर सैन्य सहयोग तक, पाकिस्तान चीन के लिए भारत के खिलाफ एक ‘प्रॉक्सी दबाव’ का काम करता है। भारत और चीन के बीच बढ़ते सीमा विवाद, अरुणाचल प्रदेश के नक्शा विवाद, और समुद्री प्रभाव की लड़ाई के बीच पाकिस्तान चीन का एक ऐसा साझेदार बन गया है जो भारत को सीमाओं पर उलझाए रख सकता है। यही कारण है कि जब पाकिस्तान IMF से बेलआउट की माँग करता है, चीन हमेशा उसका समर्थन करता है — और कभी विरोध में वोट नहीं करता।

इस पूरी बिसात में IMF एक कठपुतली की तरह काम करता है, जिसकी डोर अमेरिका के हाथ में है, और सहयोगी खंभा चीन का है। भारत इस त्रिकोण में संतुलन का प्रयास करता है, लेकिन उसके पास IMF में केवल 2.64% वोटिंग पावर है, जिससे वह नीतिगत रूप से ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाता। अमेरिका एक ओर भारत को तकनीकी, सैन्य और आर्थिक रूप से सशक्त करता है — पर दूसरी ओर पाकिस्तान को आर्थिक रूप से बचाकर ‘नियंत्रित अस्थिरता’ बनाए रखता है। यह एक ‘कैलकुलेटेड कांफ्लिक्ट ज़ोन’ है, जहां युद्ध भी न हो और पूर्ण शांति भी न हो — ताकि अमेरिका अपनी दोनों जरूरतों को साध सके: भारत से चीन को संतुलित करवाना, और पाकिस्तान को भारत के सामने नियंत्रित रखते हुए उसकी निर्भरता बनाए रखना।

क्या IMF पाकिस्तान को पैसा देकर आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है?

पाकिस्तान में आतंकवाद का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न केवल सुरक्षा के लिहाज़ से, बल्कि आर्थिक सहायता के संदर्भ में भी गंभीर चिंता का विषय रहा है। अमेरिका, जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का सबसे बड़ा और प्रभावशाली सदस्य है, खुद पाकिस्तान के आतंकवाद से जुड़े रिकॉर्ड को सार्वजनिक रूप से चिन्हित कर चुका है। अमेरिकी विदेश विभाग की 2022 की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि पाकिस्तान में 40 से अधिक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं, जिनमें लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) प्रमुख हैं। वर्ष 2011 में अमेरिका के तत्कालीन ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष ने हक्कानी नेटवर्क को “आईएसआई की आभासी शाखा” (Virtual Arm of ISI) करार दिया था, जो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी द्वारा इस आतंकी संगठन को प्रत्यक्ष सैन्य समर्थन दिए जाने की ओर इशारा करता है।

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Brookings Institution की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तान ने अफ़गानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए हक्कानी नेटवर्क का उपयोग किया। इसके जवाब में अमेरिका ने उसी वर्ष पाकिस्तान को दी जाने वाली 1.1 बिलियन डॉलर की सैन्य सहायता रोक दी, यह कहते हुए कि पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान के कई पूर्व नेता खुद इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि उनके देश ने दशकों तक आतंकवादी संगठनों को समर्थन और संरक्षण दिया है। पाकिस्तान के नेताओं ने भी आतंकवाद को समर्थन देने की बात स्वीकारी है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि 1990 के दशक में कश्मीर में उग्रवाद को बढ़ावा देने के लिए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को समर्थन दिया गया। मई 2025 में, पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी ने स्काई न्यूज को दिए गए एक इंटरव्यू में रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ की स्वीकारोक्ति का हवाला देते हुए यह स्वीकार किया कि पाकिस्तान ने अतीत में चरमपंथी संगठनों को वित्तपोषित किया है। भुट्टो ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि यह कोई रहस्य है कि पाकिस्तान का चरमपंथी संगठनों के साथ अतीत एक रहस्य है।”

इन आतंकी संगठनों की फंडिंग के मुख्य स्रोत सार्वजनिक धन संग्रह, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का दुरुपयोग, और अवैध गतिविधियाँ जैसे हवाला, ड्रग्स तस्करी और आपराधिक नेटवर्क हैं। यह भी कई मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आ चुका है कि पाकिस्तान ने न केवल ओसामा बिन लादेन को सालों तक शरण दी, बल्कि आज भी लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद को संरक्षण दे रखा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा नामित आतंकवादी हाफिज सईद खुलेआम पाकिस्तान में घूमता है और वहां की सरकार उसे सुरक्षा देती है, जबकि उसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी प्रतिबंध लगा रखे हैं। पाकिस्तान की सरकार इन संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बजाय उन्हें अक्सर राजनीतिक संरक्षण देती आई है।

आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए गठित संस्था FATF (Financial Action Task Force) ने पाकिस्तान को जून 2018 में अपनी “ग्रे लिस्ट” में डाल दिया था, क्योंकि पाकिस्तान आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ अपेक्षित मानकों को पूरा करने में विफल रहा था। हालांकि 2022 में FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया यह कहते हुए कि पाकिस्तान ने कई कानूनी और संरचनात्मक सुधार किए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। इन तथाकथित सुधारों के बावजूद, आतंकवादियों के खिलाफ गंभीर मुकदमे या सज़ा नहीं हुई। हाफिज सईद जैसे आतंकी अब भी न केवल स्वतंत्र हैं बल्कि धार्मिक और राजनीतिक गतिविधियाँ भी संचालित करते हैं।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का आतंकी नेटवर्क से रिश्ता कोई नया नहीं है। यूरोपीय दक्षिण एशियाई अध्ययन फाउंडेशन (EFSAS) की रिपोर्ट “Pakistan Army and Terrorism: An Unholy Alliance” के अनुसार, ISI हर वर्ष आतंकवादी संगठनों को $125–250 मिलियन USD की राशि प्रदान करती है, जिसमें वेतन, जोखिम भत्ते और अन्य प्रोत्साहन शामिल हैं। यह वित्तीय सहायता इन संगठनों को सक्रिय बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 1979 में सोवियत हमले से पहले ही ISI ने अफगानिस्तान में गुप्त गतिविधियाँ शुरू कर दी थीं। 1980 के दशक में अमेरिका के CIA द्वारा चलाए गए ऑपरेशन ‘साइकलोन’ के तहत पाकिस्तान ने अफ़गान मुजाहिदीनों — जैसे गुलबुद्दीन हिकमतयार की Hezb-e Islami — को हथियार और वित्तीय सहायता दी। ISI ने तालिबान का गठन किया और 1996 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जे में निर्णायक भूमिका निभाई। आज भी पाकिस्तान विशेष रूप से हक्कानी नेटवर्क को सहायता और शरण देता है, जिसे अफगान तालिबान की सबसे हिंसक शाखा माना जाता है।

भारत के संदर्भ में भी ISI की भूमिका अत्यंत चिंताजनक रही है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए ISI ने हिज्बुल मुजाहिदीन (HM), लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे संगठनों को न केवल प्रशिक्षित किया, बल्कि वित्तीय और हथियार सहायता भी दी। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में ISI के लगभग 100 से अधिक आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलने की बात सामने आ चुकी है। इतना ही नहीं, भारत के अन्य हिस्सों जैसे पंजाब, उत्तर-पूर्व और महानगरों में भी ISI प्रायोजित आतंकी घटनाओं — जैसे नकली मुद्रा प्रसार, ड्रग्स सप्लाई और 26/11 जैसे भीषण हमले — अंजाम दिए जा चुके हैं।

9/11 के आतंकी हमले के बाद जब अमेरिका ने वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ ‘वॉर ऑन टेरर’ शुरू की, तब पाकिस्तान को एक ‘फ्रंटलाइन स्टेट’ घोषित किया गया। इस भूमिका के बदले पाकिस्तान को कई लाभ मिले — जैसे अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का हटना, कर्ज माफी, 1.2 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति। लेकिन पाकिस्तान ने आतंक के खिलाफ सिर्फ दिखावटी कदम उठाए। तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने अमेरिका को संतुष्ट करने के लिए ISI प्रमुख जनरल महमूद को हटाया, लेकिन एक ही समय में तालिबान को बचाने के लिए वॉशिंगटन से गुप्त तौर पर अनुरोध भी किए। पाकिस्तान ने सिर्फ उन्हीं गुटों के खिलाफ कार्रवाई की जो उसके हितों के विरुद्ध थे, बाकी आतंकी संगठनों को पनाह दी और उन्हें संरक्षण प्रदान किया। अल-कायदा और तालिबान के अनेक आतंकवादी उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के FATA (Federally Administered Tribal Area) क्षेत्र में छिपे रहे और ISI ने उन्हें ढाल बनाकर अमेरिकी दबाव से स्वयं को सुरक्षित रखा।

EFSAS की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि पाकिस्तान की सेना और ISI ने आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर एक “अशुद्ध गठबंधन” बनाया है, जो देश के भीतर और बाहर दोनों जगह अस्थिरता फैलाने का कारण बना है। इस गठबंधन के परिणामस्वरूप, पाकिस्तान खुद भी आतंकवाद का शिकार बन गया है, और देश में कट्टरपंथी इस्लाम का उदय हुआ है। इन तथ्यों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान की सरकार और सेना ने आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर एक रणनीतिक संबंध स्थापित किया है, जो न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी खतरा है। लेकिन इसके बावजूद IMF और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ पाकिस्तान को आर्थिक राहत देती रही हैं — कभी भूख और गरीबी मिटाने के नाम पर, तो कभी राजनीतिक अस्थिरता को थामने के लिए। लेकिन सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहायता उस देश को दी जानी चाहिए, जो उसी धन का प्रयोग आतंकवाद को खाद-पानी देने में करता रहा हो? इस संबंध को समाप्त करने और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि क्षेत्र में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

प्रमुख आतंकवादी संगठनों, उनके नेताओं, अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों और पाकिस्तान से प्राप्त समर्थन का विवरण:

संगठन का नामप्रमुख नेताप्रमुख अंतरराष्ट्रीय कृत्यपाकिस्तान से समर्थन
लश्कर-ए-तैयबा (LeT)हाफ़िज़ सईद2008 मुंबई हमले, कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँISI से प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता, 2,200 कार्यालयों और प्रशिक्षण शिविरों का संचालन, हर साल $50-100 मिलियन जुटाता है
जैश-ए-मोहम्मद (JeM)मौलाना मसूद अज़हर2001 संसद हमला, 2001 कश्मीर विधानसभा हमला, 2003 में परवेज़ मुशर्रफ़ पर हमला, 2019 पुलवामा हमले का मास्टरमाइंडISI से समर्थन, प्रशिक्षण शिविर, वित्तीय सहायता
हिज़्बुल मुजाहिदीन (HM)सैयद सलाहुद्दीनकश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ, भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की हत्याISI से समर्थन, स्थानीय भर्तियाँ, प्रशिक्षण और हथियार सहायता
हरकत-उल-मुजाहिदीन (HuM)मौलाना फज़लुर रहमान खलीलकश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ, अफगानिस्तान में भी सक्रियताISI से समर्थन, प्रशिक्षण शिविर, वित्तीय सहायता
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP)हकीमुल्ला महसूद (पूर्व)पाकिस्तान में आतंकी हमले, बेनज़ीर भुट्टो की हत्या में संलिप्तताISI से समर्थन, प्रशिक्षण, हथियार और वित्तीय सहायता
हक्कानी नेटवर्कसिराजुद्दीन हक्कानीअफगानिस्तान में आतंकी हमले, अमेरिकी और अफगान बलों पर हमलेISI से समर्थन, सुरक्षित पनाहगाह, प्रशिक्षण और हथियार सहायता, सालाना $30-50 मिलियन की फंडिंग मिलती है
यूनाइटेड जिहाद काउंसिल (UJC)सैयद सलाहुद्दीनकश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ, विभिन्न आतंकी संगठनों का समन्वयISI से वित्तीय, प्रशिक्षण और हथियार सहायता

इन तथ्यों के बावजूद IMF द्वारा पाकिस्तान को निरंतर वित्तीय सहायता देना गंभीर चिंतन का विषय है।

हालाँकि, IMF का धन सीधे आतंकवाद के लिए उपयोग नहीं होता, यह अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के बजट घाटे को कवर करता है, जिससे सरकार अपने सामान्य खर्च, विशेष रूप से सैन्य व्यय, को चला सकती है। आधिकारिक तौर पर, IMF का पैसा पाकिस्तान के वित्तीय घाटे, विदेशी मुद्रा भंडार और सामाजिक कार्यक्रमों में जाता है। लेकिन, जब हम पाकिस्तान के सैन्य बजट और आतंकवादी गतिविधियों को देखते हैं, तो शक और गहराता है। वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान अपने रक्षा खर्च में लगातार वृद्धि करता रहा है।

2023-24 में पाकिस्तान का डिफेंस बजट था PKR 1.8 ट्रिलियन, यानी लगभग $6.5 बिलियन, जो कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा है। यही पैसा भारतीय हितों के ख़िलाफ़ “स्ट्रैटेजिक एसेट्स” (मिलिटेंट्स) को पोषित करने में लगाया जाता है। कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियां आतंकवादी समूहों को समर्थन प्रदान करती हैं, जो भारत और अफगानिस्तान में हमलों के लिए जिम्मेदार हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह राशि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन आतंकी गतिविधियों में जाती है, जिनसे क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा है।

भारत का दृष्टिकोण

भारत ने बार-बार IMF से आग्रह किया है कि वह पाकिस्तान को दिए जाने वाले ऋणों की समीक्षा करे, क्योंकि इसका दुरुपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण में हो सकता है। भारत का दावा है कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन पाकिस्तानी राज्य के संरक्षण में कार्य करते हैं। 2020 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष एक दस्तावेज प्रस्तुत किया, जिसमें पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी समूहों (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और जमात-उल-अहरार जैसे समूह) को वित्तीय सहायता देने का आरोप लगाया गया था। लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव सीमित था।

निष्कर्ष

पाकिस्तान और IMF के बीच का संबंध केवल आर्थिक सहायता का मामला नहीं है। यह एक जटिल भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात है, जिसमें वैश्विक शक्तियाँ, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन, अपनी रणनीतिक चालें चल रही हैं। पाकिस्तान की आर्थिक निर्भरता, आतंकवाद के साथ इसके कथित संबंध, और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए इसकी स्थिति इसे इस खेल का एक महत्वपूर्ण प्यादा बनाती है।

यह स्थिति न केवल पाकिस्तान की संप्रभुता पर सवाल उठाती है, बल्कि वैश्विक वित्तीय संस्थानों की निष्पक्षता और उनके निर्णयों के पीछे छिपे इरादों पर भी प्रकाश डालती है। क्या यह केवल आर्थिक सहायता है, या एक सुनियोजित रणनीति जो क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए डिज़ाइन की गई है? यह प्रश्न विचारणीय है और इसे गहराई से समझने की आवश्यकता है।


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