उर्सुला वॉन डेर लेयेन की भारत यात्रा 2025
आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसी घटना की, जो न सिर्फ भारत और यूरोप के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नया अध्याय लिख सकती है। 27 फरवरी को यूरोपीय संघ की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन भारत पहुँचीं। उनकी ये दो दिवसीय यात्रा कोई साधारण दौरा नहीं थी, बल्कि ये एक ऐसा कूटनीतिक कदम है, जो वैश्विक सियासत की दिशा बदल सकता है। ये यात्रा महज औपचारिक हाथ मिलाने की रस्म नहीं, बल्कि दो महाद्वीपों के बीच एक ऐतिहासिक गठजोड़ की नींव रख सकती है। ये एक ऐसा खेल है, जो दुनिया की सियासत को पलट सकता है। इसी से सवाल उठता है—क्या यूरोप को भारत की असली ताकत का एहसास हो गया है? क्या डोनाल्ड ट्रम्प का खौफ यूरोप को भारत की गोद में धकेल रहा है? क्या भारत से रिश्ते मजबूत करना यूरोपीय संघ की मजबूरी है? आखिर ये यात्रा इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? इससे भारत को क्या फायदा होगा? क्या ये दुनिया की बदलती राजनीति का संकेत हैं? और सबसे बड़ा सवाल—क्या इसके पीछे कोई गुप्त रणनीति चल रही है? क्या यूरोप भारत को चीन के खिलाफ ढाल बनाना चाहता है?
यात्रा का पहला दिन
27 फरवरी को उर्सुला वॉन डेर लेयेन नई दिल्ली पहुँचीं, जहाँ हवाई अड्डे पर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके बाद उन्होंने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी और इस यात्रा को उनके विचारों से जोड़ते हुए इसे गर्व का क्षण बताया। फिर वे हैदराबाद हाउस पहुँचीं, जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता हुई। इस वार्ता में व्यापार, तकनीक और रक्षा सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। इसके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर से उनकी मुलाकात हुई, जिसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र और वैश्विक चुनौतियों पर गहराई से बातचीत हुई।
उर्सुला वॉन डेर लेयेन कौन हैं?
आगे बढ़ने से पहले ये समझते हैं कि उर्सुला वॉन डेर लेयेन हैं कौन और उनकी ये यात्रा इतनी बड़ी डील क्यों है? उर्सुला वॉन डेर लेयेन यूरोपीय संघ की अध्यक्ष हैं। यूरोपीय संघ यानी 27 यूरोपीय देशों का एक ऐसा गठबंधन, जो उनके हितों को एक साथ जोड़ता है और नीतियाँ बनाता है। कल जब वो भारत आईं, तो उनके साथ यूरोपीय संघ के आयुक्तों का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल था। खबरों के मुताबिक, 27 में से 22 आयुक्त उनके साथ आए हैं। यानी यूरोप का पूरा टॉप लीडरशिप यहाँ मौजूद है। ये कोई छोटी बात नहीं है, इससे साफ पता चलता है कि यूरोपीय संघ भारत को कितना गंभीरता से ले रहा है। लेकिन सवाल ये है—क्या ये सिर्फ एक दोस्ताना मुलाकात है, या इसके पीछे कुछ बड़ा खेल चल रहा है?
व्यापार और सहयोग की नई उम्मीद
दरअसल, भारत और यूरोपीय संघ पहले से ही विदेश नीति, रक्षा, और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में हाथ मिला चुके हैं। लेकिन इस बार खेल कुछ और बड़ा है। यूरोपीय संघ की नजर एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर टिकी है। भारत और यूरोपीय संघ सालों से इस पर बात कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई फाइनल डील नहीं हुई। लेकिन, इस बार दोनों इसे फाइनल करने के लिए कमर कस चुके हैं। यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने एक बड़ा बयान देते हुए शुक्रवार कहा कि “हम 2025 में भारत के साथ FTA पर मुहर लगाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच होने जा रहा यह समझौता अपनी तरह का खास और दुनिया में सबसे बड़ा सौदा होगा। भारतीय विदेश मंत्रालय भी कह रहा है कि ये यात्रा हमारे रिश्तों को नई ऊँचाई देगी।
चुनौतियाँ और मतभेद
लेकिन यह रास्ता आसान नहीं है, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हैं। मिसाल के तौर पर, यूरोपीय संघ अपनी कारों और अल्कोहलिक ड्रिंक्स के लिए भारतीय बाजार में ज्यादा पहुँच चाहता है। वहीं भारत बौद्धिक संपदा सुरक्षा को लेकर सख्त है। भारत चाहता है कि विदेशी निवेशक पहले यहाँ के भारतीय कानूनों का पालन करें, न कि सीधे अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का सहारा लें। ये मतभेद अभी भी बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं।
भविष्य की योजनाएँ
अगली वार्ता मार्च में होगी। अगर सब ठीक रहा, तो शायद हमें जल्द ही कोई अच्छी खबर सुनने को मिल सकती है। लेकिन भले ही FTA अभी पूरा न हो, लेकिन फिर भी दोनों पक्षों के बीच सहयोग का सिलसिला रुकने वाला नहीं है। खास तौर पर स्वच्छ तकनीक, डिजिटल इनोवेशन, और कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में।
आंकड़ों में यूरोपीय संघ और भारत के रिश्तों की ताकत
अब जरा इन आंकड़ों पर गौर करिए, जो इस रिश्ते की ताकत को बयान करते हैं। भारत में 6,000 से अधिक यूरोपीय कंपनियाँ काम कर रही हैं और पिछले दशक में दोनों के बीच व्यापार में 90% की वृद्धि हुई है। 2023 में यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया, जिसने अमेरिका और चीन को भी पीछे छोड़ दिया। यूरोपीय संघ और भारत के बीच सेवाओं का व्यापार 2023 में 59.7 बिलियन यूरो तक पहुँच गया, जिसमें 30 बिलियन अमरीकी डॉलर का भारतीय निर्यात और 23 बिलियन अमरीकी डॉलर का आयात शामिल है, जो सेवाओं में अब तक का सबसे अधिक व्यापार है। 2020 में यह व्यापार 30.4 बिलियन यूरो था। वित्त वर्ष 2023-24 में, यूरोपीय संघ के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 135 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जिसमें यूरोपीय संघ को निर्यात 76 बिलियन अमरीकी डॉलर और यूरोपीय संघ से आयात 59 बिलियन अमरीकी डॉलर दर्ज किया गया, जिससे यह ब्लॉक भारत सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। ये आंकड़े बताते हैं कि ये रिश्ता कितना गहरा और मजबूत हो चुका है।
तकनीक और रणनीति का योगदान
ये सिर्फ पैसों की बात नहीं है। इस यात्रा में तकनीक और रणनीति का भी बड़ा हाथ है। तकनीक की बात करें, तो भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद की बैठक में कई बड़े मुद्दे उठे। मिसाल के तौर पर—इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग ढाँचा, बैटरी टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। भारत अपनी डिजिटल क्रांति को अगले स्तर पर ले जाना चाहता है और यूरोप इसमें उसका साथ दे सकता है।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)
एक और बड़ी पहल है—भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, यानी IMEC। ये एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, जिसका मकसद यूरोप और एशिया के बीच व्यापार और संचार को बढ़ाना है। इसे अक्सर चीन की “बेल्ट एंड रोड” पहल के जवाब के तौर पर देखा जाता है। IMEC अगर सफल हुआ, तो ये भारत और यूरोप के लिए गेम-चेंजर हो सकता है। कहा जा रहा है कि भारत अब नॉर्डिक, मध्य और पूर्वी यूरोप, और यहाँ तक कि भूमध्यसागरीय क्षेत्र के साथ भी नए रिश्ते बना रहा है। ये एक बड़ा बदलाव है।
वैश्विक परिदृश्य और रणनीति
ये सिर्फ व्यापार की बात नहीं है—ये एक रणनीतिक चाल है। यूरोपीय संघ अब भारत को सिर्फ एक बाजार नहीं, बल्कि एक मजबूत साझेदार के तौर पर देख रहा है। ये एक रणनीतिक मास्टरप्लान है, और इसके पीछे की वजह समझने के लिए हमें दुनिया की सियासत पर नजर डालनी होगी। दरअसल, किसी भी बड़े कूटनीतिक घटनाक्रम को समझने के लिए हमें वैश्विक हालात को देखना पड़ता है। आज का ग्लोबल सीन किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है।
ट्रम्प का प्रभाव और यूरोप की मजबूरी
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है। ट्रम्प के कारनामे ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन—यानी अमेरिका और यूरोप के बीच के पुराने रिश्ते—को कमजोर कर रहे हैं। उनका “अमेरिका फर्स्ट” वाला रवैया यूरोप के लिए सिरदर्द बन गया है। अगर ट्रम्प ने टैरिफ बढ़ाए या कोई सख्त नीति अपनाई, तो यूरोप की अर्थव्यवस्था डगमगा सकती है। दूसरी तरफ, रूस की आक्रामकता और यूक्रेन युद्ध ने यूरोप को सुरक्षा की चिंता में डाल दिया है। और ऊपर से चीन की बढ़ती ताकत और उसकी बेल्ट एंड रोड पहल ने यूरोप को घेर लिया है। तो ऐसे में यूरोप नए दोस्त ढूँढ रहा है, और भारत उसके लिए सबसे सही ऑप्शन बनकर उभरा है।
भारत की कूटनीतिक चाल
उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि “संघर्ष और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में आपको भरोसेमंद दोस्त चाहिए। भारत यूरोप के लिए ऐसा ही दोस्त है।” ये बयान सब कुछ साफ कर देता है—यूरोप को भारत की जरूरत है, और शायद ये उसकी मजबूरी भी है। लेकिन दोस्तों, भारत भी कोई कम खिलाड़ी नहीं है। हम इस मौके को चूकने वाले नहीं हैं। विदेश मंत्री जयशंकर पिछले साल कह चुके हैं, “हम एक बहु-संरेखण (Multi-Alignment) वाली नीति पर चल रहे हैं।” यानी हम किसी एक देश या गठबंधन के भरोसे नहीं रहना चाहते।
चीन और रूस का कोण
अब बात करते हैं दो बड़े हाथियों की—चीन और रूस। इसमें एक बड़ा सवाल है कि क्या ये सब चीन को घेरने की साजिश है? यूरोपीय संघ चीन से “जोखिम कम करना” चाहता है। यानी वो अपनी सप्लाई चेन को चीन पर निर्भर नहीं रखना चाहता। भारत इसमें मदद कर सकता है। लेकिन रूस को लेकर थोड़ा पेंच है। भारत के रूस के साथ पुराने और गहरे रिश्ते हैं। यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख यूरोप को पसंद नहीं आया है। ये मतभेद आगे चलकर परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
निष्कर्ष
उर्सुला वॉन डेर लेयेन की ये यात्रा सिर्फ एक साधारण कूटनीतिक दौरा नहीं, बल्कि एक नए वैश्विक समीकरण की शुरुआत है। अगर ये साझेदारी परवान चढ़ी, तो भारत न सिर्फ आर्थिक महाशक्ति बनेगा, बल्कि दुनिया की सियासत में भी नया सूरज बनकर उभरेगा। लेकिन इसके लिए हमें चीन, रूस और अमेरिका के साथ भी संतुलन बनाना होगा। ऐसे में क्या ये रिश्ता हमें सुपरपावर की राह पर ले जाएगा? क्या भारत और यूरोप मिलकर दुनिया का खेल बदल देंगे? इसका जवाब वक्त बताएगा।
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