दुनिया एक बार फिर उथल-पुथल के मुहाने पर खड़ी है। इतिहास गवाह रहा है कि युद्ध केवल बंदूकों और बारूद से नहीं लड़े जाते। कभी-कभी, हथियार होते हैं आर्थिक नीतियाँ, और जंग छिड़ती है व्यापार की। यह कोई पारंपरिक युद्ध नहीं, जिसमें तोपें गरजेंगी या टैंक दौड़ेंगे… यह युद्ध है व्यापार का! इस लड़ाई के हथियार हैं टैरिफ, प्रतिबंध और आर्थिक दबाव। लेकिन, बड़ा सवाल यह है—क्या हम एक नए व्यापार युद्ध (Trade War) की शुरुआत देख रहे हैं? क्या हम एक नए व्यापार युद्ध (Trade War) की दहलीज़ पर खड़े हैं या फिर यह जंग पहले ही अपने घातक रूप में दस्तक दे चुकी है? अगर ऐसा है तो भारत पर इसका क्या असर होगा? आइए इस जटिल मुद्दे की परत-दर-परत पड़ताल करते हैं।
अमेरिका ने व्यापारिक साझेदारों पर लगाया टैरिफ
अमेरिका ने व्यापार टैरिफ के रूप में अपना पहला बम छोड़ दिया है। मंगलवार, 4 फरवरी- यह तारीख इतिहास में दर्ज हो सकती है। अमेरिका ने अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों कनाडा, मेक्सिको और चीन पर भारी टैरिफ लगा दिए हैं। कनाडा और मेक्सिको पर 25%, चीन पर 10% टैक्स लगाया गया है। और ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि यूरोप भी इस चक्रव्यूह से बच नहीं सकता। ट्रंप ने चेतावनी दी है कि यूरोप पर भी निश्चित रूप से टैरिफ लागू होंगे। हालाँकि, इस मामले में उन्होंने अपनी योजनाओं के बारे में अभी तक कोई स्पष्टता नहीं दी है। इस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी संरक्षणवादी व्यापार नीति का बिगुल बजा दिया है।
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अमेरिकी टैरिफ नीति का वैश्विक बाजार पर असर
लेकिन, यह फैसला केवल एक कागज़ पर स्याही भर नहीं, बल्कि एक ऐसी सुनामी का संकेत है, जो वैश्विक व्यापार को हिला सकती है। इसका असर भी साफ तौर दिखना शुरू हो गया है। सोमवार यानी आज यूरोपीय शेयर बाजार लाल निशान में डूब गए। इनमें वैश्विक स्तर पर बिकवाली हुई। इससे निवेशकों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं। उनको डर था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए टैरिफ व्यापक व्यापार युद्ध (Trade War) में बदल सकते हैं। इसके साथ ही भारतीय शेयर बाजार भी लड़खड़ा गया। और भारतीय रुपया… इतिहास में पहली बार 87 रुपये प्रति डॉलर के पार चला गया। इस तरह ट्रंप के फैसले से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता की आग भड़क चुकी है।
लेकिन, सवाल है कि इससे निपटने के लिये भारत क्या कदम उठा रहा है? भारत इस मामले में क्या चाल चल रहा है? क्या वह ट्रंप के टैरिफ वॉर से बच पाएगा?
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भारत की रणनीति
भारत, ने अभी हाल ही में अपने टैरिफ ढाँचे को संशोधित किया है। बजट 2025-26 में अमेरिका से निर्यात होने वाली वस्तुओं पर शुल्क घटा दिया गया है। मोटरसाइकिल, उपग्रहों के लिए ग्राउंड इंस्टॉलेशन, सिंथेटिक फ्लेवरिंग, जलीय फ़ीड, ईथरनेट स्विच जैसी चीजों पर टैरिफ में कटौती की गई है। 1,600 सीसी से कम इंजन क्षमता वाली मोटरसाइकिलों के लिए टैरिफ 50 प्रतिशत से घटाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया है, जबकि 1,600 सीसी से अधिक की मोटरसाइकिलों के लिए टैरिफ 50 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है। गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2024 में भारत को अमेरिकी मोटरसाइकिल निर्यात 3 मिलियन डॉलर रहा। ऐसे में इस टैरिफ कटौती से अमेरिकी निर्माताओं के लिए भारतीय बाजार में अपनी पहुँच बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा भारत ने जलीय फ़ीड के निर्माण के लिए मछली हाइड्रोलाइज़ेट पर शुल्क 15 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया। जलीय फ़ीड, जलीय कृषि में मछलियों को खिलाया जाने वाला भोजन होता है। जबकि मछली हाइड्रोलाइज़ेट, मछली को पीसकर तरल अवस्था में बनाया जाने वाला एक उत्पाद है, जिसमें मछली से मिलने वाले प्रोटीन, अमीनो एसिड, और खनिज तत्व होते हैं। इसका इस्तेमाल खेती और पशुओं के लिए किया जाता है। टैरिफ घटाने का यह एक ऐसा कदम है जो सीधे तौर पर 35 मिलियन डॉलर के अमेरिकी निर्यात को प्रभावित करता है। भारत की एक और उल्लेखनीय टैरिफ कटौती ईथरनेट स्विच के संदर्भ में है, जहाँ शुल्क 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया है। इस तरह भारत अब नई परिस्थितियों के अनुरूप ढलने की कोशिश कर रहा है। यही वजह है कि भारत के टैरिफ ढाँचे की बार-बार आलोचना करने के बावजूद, ट्रंप के व्यापार टैरिफ लगाने वाले कार्यकारी आदेश में भारत का उल्लेख नहीं किया गया। इससे संकेत मिलता है कि भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वार्ता हो सकती है। खासकर, इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान ऐसा हो सकता है। लेकिन सवाल है कि क्या यह भारत को अमेरिकी टैरिफ से बचाने के लिए एक ‘मास्टरस्ट्रोक’ है? या फिर यह केवल तूफान से पहले की एक अस्थायी शांति?
क्या अमेरिकी टैरिफ से भारत को फायदा होगा?
अमेरिका के बढ़ते टैरिफ से चीन को झटका लगने वाला है। अगर ऐसा होता है तो भारत को इससे व्यापार बढ़ाने का अवसर मिल सकता है। अमेरिकी बाजार में भारतीय वस्तुओं के लिये अवसर पैदा सकते हैं। ऐसा पहले भी हो चुका है। ट्रम्प ने जब अपने पहले कार्यकाल में चीन के साथ टैरिफ युद्ध शुरू किया था तो उसके बाद 2017-2023 के बीच हुए व्यापार विचलन का भारत चौथा सबसे बड़ा लाभार्थी था। लेकिन सवाल आता है कि क्या यह अस्थायी राहत होगी या किसी बड़ी मुसीबत की आहट?
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अमेरिकी टैरिफ पर कनाडा, मेक्सिको और चीन की प्रतिक्रिया
ट्रंप के फैसले से चीन भड़का हुआ है। वो पहले ही अमेरिकी नीतियों से परेशान था, अब खुलकर विरोध में उतर चुका है। उसकी सरकार का साफ संदेश है कि यह टैरिफ नियमों का उल्लंघन है। उसने विश्व व्यापार संगठन (WTO) का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन साथ ही, अपने जवाबी हमलों की योजना भी बना रहा है।
लेकिन, अकेला चीन ही नहीं, कनाडा और मेक्सिको ने भी अमेरिका के फैसले का कड़ा जवाब दिया है। उन्होंने भी अमेरिकी सामानों पर 25% टैरिफ लगा दिया है। मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि उनकी सरकार टकराव के बजाय बातचीत चाहती है, लेकिन मेक्सिको को अमेरिका को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा। सनद रहे कि यह वही रणनीति है जो अतीत में कई व्यापार युद्धों का कारण बनी।
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अब सवाल आता है कि अमेरिका के इस कदम से सबसे ज्यादा नुकसान किसका होगा? क्या चीन घुटने टेक देगा? क्या यूरोप घबरा जाएगा? क्या भारत को फायदा मिलेगा?
ट्रंप की टैरिफ नीतियों का दुनिया पर प्रभाव
ट्रंप की नीतियों से शुरु होने वाले ट्रेड वॉर से दुनिया में अभी डर का माहौल है। मेक्सिको में एवोकाडो उत्पादकों को डर है कि अमेरिकी बाज़ार में उनकी पहुँच सीमित हो जाएगी। अमेरिका के 80% से अधिक एवोकाडो मेक्सिको से ही आते हैं। जबकि, कनाडा के ऑटोमोबाइल सेक्टर को डर है कि उनकी फैक्ट्रियाँ इससे बड़े स्तर पर नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती हैं। इस बीच भारत को चिंता है कि अमेरिकी महंगाई से उसका निर्यात प्रभावित होगा। लेकिन, भारत के लिए यह अवसर भी हो सकता है। 2017 से 2023 के पिछले ट्रेड वॉर में भारत को चौथा सबसे बड़ा लाभ मिला था। तो क्या इस बार भी हम व्यापारिक ‘खिलाड़ी’ बन सकते हैं? और चीन का क्या होगा? तो वह अपनी चाल सोच रहा है… चीन ने कहा है कि हम अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए जरूरी जवाबी कदम उठाएंगे। चीन के मुताबिक अमेरिका का यह कदम वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है।
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अमेरिका पर प्रभाव
ऐसा भी नहीं है कि ट्रेड वॉर असर केवल बाकी दुनिया को ही प्रभावित करेगा, बल्कि इसका सबसे बड़ा असर अमेरिका की खुद की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इन टैरिफों से अमेरिकी कंपनियों की उत्पादन लागत बढ़ेगी, महंगाई दर चढ़ेगी और नौकरियों पर इसका खासा असर पड़ेगा। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि उद्योगों के लिए यह एक आपदा साबित हो सकता है। जानकारों का मानना है कि भारी अमेरिकी टैरिफ और जवाबी उपाय, कनाडा और मेक्सिको की अर्थव्यवस्थाओं को मंदी में धकेल सकते हैं। अमेरिका को भी इससे मंदी के जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। जानकारों ने चिंता जताई है कि यह स्थिति एक लंबे और व्यापक संघर्ष में बदल सकती है।
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आगे की राह
तो सवाल यह है– क्या यह व्यापार युद्ध (Trade War) अब भी शुरू हो रहा है, या फिर यह जंग पहले ही छिड़ चुकी है? अमेरिका, कनाडा, मेक्सिको, चीन – ये सभी एक-दूसरे पर टैरिफ के मिसाइल दाग रहे हैं। इतिहास हमें बताता है कि हर ट्रेड वॉर का अंत आर्थिक मंदी में होता है। सवाल सिर्फ यह है कि इस बार सबसे पहले कौन गिरेगा? क्या इतिहास खुद को दोहराने वाला है? आने वाले दिन इस सवाल का जवाब देंगे।
लेकिन अभी के लिए, विश्व मंच पर एक नई लड़ाई की आहट है। दुनिया एक आर्थिक महासंग्राम की ओर बढ़ रही है, जहाँ हथियारों की जगह टैरिफ हैं और सेनाओं की जगह अर्थव्यवस्थाएँ। यह युद्ध किसे फायदा पहुँचाएगा और किसे बर्बाद करेगा- यह तो आने वाला समय ही बताएगा…
इस पूरे मामले पर आपकी क्या राय है? क्या यह युद्ध किसी बड़े संकट का कारण बनेगा, या फिर यह सिर्फ एक रणनीतिक खेल है? अपने विचार हमें कमेंट में बताइए।
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