आज की दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की बिसात पर नए समीकरण बनते और बिगड़ते रहते हैं। वैश्विक भू-राजनीति में तेजी से हो रहे बदलावों के बीच, देशों के बीच संबंधों में भी उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास संघर्ष, बांग्लादेश और सीरिया में तख्तापलट, और अमेरिका-चीन के बीच बढ़ती तनातनी जैसे मुद्दे इस बदलाव को और भी तेज कर रहे हैं। लेकिन, इन घटनाओं के बीच एक नई भू-राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है। इसे बिछाने का काम ईरान और रूस कर रहे हैं। दरअसल,ईरान और रूस ने अपनी साझेदारी को मजबूत किया है, जो आने वाले वर्षों में उनके सहयोग के बढ़ते महत्त्व का संकेत देती है। दोनों के बीच एक शक्तिशाली गठबंधन उभर रहा है, जो पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ एक मजबूत प्रतिक्रिया की ओर इशारा कर रहा है। आने वाली 17 जनवरी को दोनों देशों के बीच एक अहम समझौता होने जा रहा है, जो दोनों देशों के संबंधों को एक नई दिशा देगा। परिवहन, ऊर्जा, रक्षा और क्षेत्रीय सुरक्षा सहित सहयोग के प्रमुख मुद्दे इस ऐतिहासिक समझौते के केंद्र में होंगे। इससे दोनों के बीच संबंध केवल आर्थिक आदान-प्रदान से आगे बढ़कर एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी में बदल जाएगा। ऐसे में हमारे लिये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर इस समझौते में कौन-कौन सी बातें शामिल की जा रही हैं? इसका असर क्या होगा? क्या इस समझौते से दो देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा? क्या इससे वैश्विक भू-राजनीति में कोई बड़ा बदलाव आएगा? ऐसे तमाम सवालों का जवाब हम इस लेख के माध्यम से तलाशेंगे, मगर सबसे पहले ईरान-रूस संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर डाल लेते हैं।
ईरान-रूस संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
दरअसल, ईरान और रूस के बीच संबंधों का इतिहास काफी पुराना है। 19वीं सदी में, दोनों देशों के बीच कई युद्ध हुए, लेकिन समय के साथ ये संबंध धीरे-धीरे बेहतर होते गए। 20वीं सदी में, विशेषकर सोवियत संघ के दौर में, ईरान और रूस ने कई क्षेत्रों में सहयोग किया। हालाँकि, शीत युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच तनाव भी देखा गया। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, ईरान ने रूस के साथ अपने संबंधों को फिर से स्थापित करने की कोशिश की। दोनों देशों ने आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर सहयोग करने का निर्णय लिया। इसके अलावा, ऊर्जा क्षेत्र में भी दोनों देशों का सहयोग बढ़ा।
वर्तमान स्थिति
2025 में ईरान और रूस की साझेदारी ने एक नई दिशा पकड़ी है। दोनों देश अपने रणनीतिक हितों को मजबूत बनाने के लिए एक हो गए हैं। 17 जनवरी को ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान की रूस की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर मुहर लगने वाली है। इसके तहत, ईरान और रूस क्षेत्रीय सुरक्षा, ऊर्जा, और रक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में साथ मिलकर काम करेंगे। यह समझौता केवल व्यापार से आगे बढ़कर एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी को परिभाषित करेगा। इसमें दोनों देशों के बीच क्षेत्र की स्थिरता और पश्चिमी प्रभाव का मुकाबला करने का भी एक लक्ष्य है।
इस समझौते का एक खास पहलू नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर का है, जो ईरान, रूस और किसी भी क्षेत्र के बीच व्यापार को बढ़ावा देगा। दरअसल, यह कॉरिडोर एक महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजना है, जो ईरान, रूस और अन्य क्षेत्रीय भागीदारों के बीच व्यापार को सुगम बनाएगा। इससे न केवल व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को भी मजबूती मिलेगी। इस परियोजना के माध्यम से, ईरान एक महत्त्वपूर्ण पारगमन मार्ग बन सकता है, जो यूरोप और मध्य एशिया को जोड़ता है। इससे न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि यह राजनीतिक स्थिरता को भी बढ़ावा देगा। यह रूस और ईरान को पश्चिम के प्रतिबंधों के बीच एक दूसरे के साथ मिल कर आर्थिक विकास की दिशा में आगे बढ़ने में भी मदद करेगा।
परिवहन के अलावा, ऊर्जा ईरान-रूस भागीदारी के मूल में बनी हुई है। ऊर्जा क्षेत्र में ईरान और रूस का सहयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। दोनों देश ऊर्जा निर्यात पर निर्भर हैं और पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण नए बाजारों की तलाश कर रहे हैं। रूस ने अपने विशाल तेल और प्राकृतिक गैस भंडार के साथ-साथ ईरान के ऊर्जा उद्योग में निवेश करने की योजना बनाई है। रूस ने ईरान में अन्वेषण, ड्रिलिंग और बुनियादी ढाँचे का सपोर्ट किया है। नए समझौते के हिस्से के रूप में, कई रूसी कंपनियों से ईरान के ऊर्जा क्षेत्र में भारी निवेश करने की उम्मीद है, जो इसकी क्षमताओं को आधुनिक बनाने और विस्तार करने में मदद करेगा। तेल और गैस के अलावा, दोनों देश एशिया में नए बाज़ारों को सुरक्षित करके अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए सहयोग कर रहे हैं। खासकर भारत में, ताकि यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) के भीतर अधिक एकीकरण को बढ़ावा देकर पश्चिमी बाज़ारों पर अपनी निर्भरता कम की जा सके। ईरान की रणनीतिक स्थिति इसे यूरोप और मध्य एशिया तथा भारत और चीन के बीच माल की आवाजाही के लिए एक पारगमन मार्ग बनाती है।
इसके अलावा ईरान और रूस का सैन्य सहयोग भी गहरा हो रहा है। ईरान और रूस एक-दूसरे के लिए महत्त्वपूर्ण हथियार आपूर्तिकर्ता बन गए हैं। उन्नत हथियारों का व्यापार दोनों देशों के बीच बढ़ रहा है। विशेषकर ड्रोन तकनीक में दोनों देशों का सहयोग तेजी से बढ़ा है। ईरान ने रूस को उन्नत शाहेद-136 ड्रोन की आपूर्ति की है, जो यूक्रेन में इस्तेमाल हो रहे हैं। इस सैन्य सहयोग से न केवल दोनों देशों की सुरक्षा क्षमताओं में वृद्धि होगी, बल्कि यह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को भी प्रभावित करेगा। ईरान ने खुद को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया है, जो पश्चिमी सैन्य हस्तक्षेपों से उत्पन्न खतरों का सामना करने में सक्षम है। इससे क्षेत्र में भू-राजनीतिक प्रभाव हासिल करने की ईरान की क्षमता को सीमित करने के अमेरिकी प्रयासों को कम कर दिया है।
चुनौतियाँ
हालाँकि ईरान-रूस संबंध मजबूत हो रहे हैं, लेकिन यह साझेदारी उतनी आसान नहीं है। दोनों पक्षों के आंतरिक राजनीतिक मतभेद, प्रतिबंधों और युद्ध के कारण होने वाली आर्थिक कठिनाइयाँ, और दीर्घकालिक भू-राजनीतिक एजेंडों में मतभेदों ने इस साझेदारी की पूरी क्षमता के लिए चुनौतियाँ खड़ी की हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रूस के संतुलन की कार्रवाई ने ऐतिहासिक रूप से ईरान के साथ तनाव पैदा किया है, खासकर रूस और अमेरिका के बीच मेल-मिलाप के दिनों के दौरान। अतीत में, दोनों देशों के बीच संबंध राजनीतिक बदलाव के क्षणों के दौरान ठंडे पड़ गए थे। खासकर, रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के शासन में। इस दौरान रूस ने ईरान के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों का समर्थन किया था। इसके अलावा, ईरान को S-300 मिसाइल रक्षा प्रणाली देने में रूस की विफलता ने ईरान के साथ संबंधों को तब तक तनावपूर्ण बनाए रखा जब तक कि पुतिन ने 2015 में सौदा पूरा नहीं कर लिया था। ये ऐतिहासिक तनाव इस बात के पर्याप्त उदाहरण प्रदान करते हैं कि दोनों इस बात से चिंतित हैं कि ऐसी साझेदारी कितनी सफल होगी।
इसके अलावा, दोनों देशों को आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है जो उनकी साझेदारी की दीर्घकालिक स्थिरता को बाधित कर सकती हैं। आर्थिक प्रतिबंधों ने रूस की अपने ऊर्जा भंडार का पूरा लाभ उठाने की क्षमता को प्रभावित किया है, जबकि ईरान की ऊर्जा निर्यात पर निर्भरता ने उसकी अर्थव्यवस्था को वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बना दिया है। ईरान लगातार 35% मुद्रास्फीति दर के साथ हाइपरइन्फ्लेशन यानी उच्च मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है। इससे उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है।
अब अगर भू-राजनीतिक प्रभाव की बात करें, तो ईरान-रूस साझेदारी का भू-राजनीतिक प्रभाव केवल दो देशों तक सीमित नहीं है। इसका असर पूरे मध्य पूर्व और उससे आगे भी पड़ेगा। अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने इन दोनों देशों को एक-दूसरे के करीब लाने में मदद की है। इस साझेदारी से पश्चिमी शक्तियों विशेषकर अमेरिका पर दबाव बढ़ेगा। यदि ईरान और रूस अपने सामरिक हितों को साझा करते हैं, तो यह पश्चिमी प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
भविष्य की संभावना
ईरान और रूस के बीच सैन्य साझेदारी मजबूत होने की संभावना है। दोनों देश आतंकवाद विरोधी प्रयासों पर जोर देंगे और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करेंगे। हालाँकि, रिश्ते का भविष्य व्यापक अंतर्राष्ट्रीय रुझानों पर निर्भर करेगा। अमेरिका, रूस और चीन के बीच विकसित हो रही शक्ति गतिशीलता इस साझेदारी की सफलता की कुंजी होगी। इस प्रकार, ईरान और रूस के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी न केवल उनके द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर रही है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी नए समीकरण स्थापित कर रही है। यह समझौता भविष्य में विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है। ईरान और रूस दोनों ही अपनी साझा चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यदि वे अपनी आंतरिक राजनीतिक मतभेदों पर काबू पाने में सफल होते हैं तो यह साझेदारी न केवल उनके लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण साबित होगी। इस प्रकार, वैश्विक भू-राजनीति में ईरान-रूस गठबंधन एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है जो आने वाले वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नया आकार देगा।
आप अपनी राय कमेंट में जरूर बताएँ कि क्या इस साझेदारी से पश्चिमी शक्तियों को चुनौती मिलेगी? क्या ईरान और रूस के रिश्ते और गहरे होंगे? या ये सवाल हमें आने वाले वक्त में खुद ही जवाब देंगे।
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