Question Hour: The Heartbeat of Indian Parliament
प्रश्न! एक ऐसा शब्द है, जिसे आप अक्सर सुनते होंगे और उसका इस्तेमाल भी करते होंगे। आपने अब तक न जाने कितने ही प्रश्नों का उत्तर दिया होगा और न जाने आपने कितने अनगिनत प्रश्न लोगों से पूछे होंगे। लेकिन शायद ही आपने कभी इस शब्द की गंभीरता पर ध्यान दिया हो। आपने शायद ही कभी सोचा हो कि ये एक सामान्य शब्द से कुछ बढ़कर है या बस ऐसे ही है। कहने को तो ये शब्द मात्र ढाई अक्षर का है, लेकिन जब ये किसी पर दागा जाता है, तो उसकी हालत खराब करने में भी नहीं चूकता है। दरअसल ये एक व्यक्ति के मन में उठ रही शंकाओं की अभिव्यक्ति है। ये किसी सूचना या जानकारी की प्राप्ति के लिये उपयोग की गयी भाषाई अभिव्यक्ति है। यह किसी के द्वारा किये गए काम के बारे में जानने का एक साधन है। असल में यह किसी की जवाबदेही तय करने का हथियार है। और ये तो आप जानते ही होंगे कि एक लोकतांत्रिक देश में चुनी हुई सरकार की जवाबदेही होना बहुत ही जरूरी है। इसी जवाबदेही को तय करने के लिए जनता के प्रतिनिधि सरकार से पूछते हैं प्रश्न। और प्रश्न पूछने के लिए होता संसद में एक समय यानी काल, जिसका नाम है प्रश्नकाल।
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अगर संसदीय कार्यवाही को देखने में रुची रखने वाले किसी व्यक्ति से पूछा जाए कि उसे संसदीय कार्यवाही के किस हिस्से में सबसे ज्यादा मजा आता है, तो उसका जवाब प्रश्नकाल ही होगा। दरअसल प्रश्नकाल संसदीय कार्यवाही का एक रोचक भाग है। इसमें संसद सदस्यों द्वारा प्रश्न करके आमतौर पर कोई जानकारी माँगी जाती है। सदस्यों द्वारा प्रश्न दागते हुए सरकार से किसी विषय विशेष पर तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन, कई बार प्रश्न पूछने वाले सदस्यों और उत्तर देने वाले मंत्रियों के बीच ऐसी हाजिर-जवाबी देखने को मिलती है कि मानो अगर कोई जरा सा भी चूका तो उसे फिर कभी ऐसा मौका नहीं मिलेगा। कई बार यह हाजिर-जवाबी व्यंग्य और हँसी-मजाक से भी भरपूर होती है। इसलिए प्रश्नकाल के दौरान दर्शक दीर्घा यानी Public Gallery में न्यूज़ चैनल्स और लोगों की भीड़ खचा-खच होती है।
अगर इसके इतिहास पर नजर डालें तो प्रश्नकाल की शुरुआत ‘वेस्टमिंस्टर प्रणाली’ से मानी जाती है। यह प्रणाली यूनाइटेड किंगडम की संसदीय प्रणाली की तर्ज पर विकसित हुई है। मोटे तौर पर कहा जाए, तो यह शासन की एक लोकतांत्रिक प्रणाली है। लंदन के पैलेस ऑफ वेस्टमिंस्टर की वजह से इसका नाम वेस्टमिंस्टर प्रणाली पड़ा है। पैलेस ऑफ वेस्टमिंस्टर, ब्रिटिश संसद का एक मीटिंग हॉल है। दुनिया के कई देशों में इस प्रणाली के आधार पर ही शासन प्रणाली चलती है। हालाँकि, इस प्रणाली को अपनाने वाले ज्यादातर देश पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश या Commonwealth Countries हैं। इस फेहरिस्त में ऑस्ट्रेलिया, भारत, आयरलैंड, जमैका, मलेशिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और माल्टा जैसे देश शामिल हैं।
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खैर, भारतीय संसद के लोकसभा सदन में प्रश्नकाल की शुरुआत पहली बैठक से ही हो गई थी, लेकिन राज्यसभा में 26 मई 1952 तक कोई प्रश्न काल नहीं था। हालाँकि, राज्यसभा की पहली बैठक 13 मई 1952 को हुई थी। इसमें पहली बार 27 मई 1952 को सवाल-जवाब के लिए आधे घंटे का प्रावधान किया गया। आगे चलकर 14 जुलाई 1952 को राज्यसभा के नियमों में संशोधन करने की घोषणा की गई। इस संशोधन के बाद प्रत्येक सत्र के दौरान हर सोमवार से गुरुवार को राज्यसभा की बैठक का पहला घण्टा प्रश्नों के लिए निर्धारित किया गया। राज्यसभा में प्रश्न पूछने की यह प्रक्रिया 21 जुलाई 1952 से जुलाई 1964 तक चलती रही। लेकिन, जब इसमें शुक्रवार के दिन को भी शामिल करने की जरूरत महसूस की गई, तो प्रश्न काल के लिए शुक्रवार को भी आरक्षित कर लिया गया। इस तरह प्रश्नकाल के लिए सोमवार से लेकर शुक्रवार तक का दिन निर्धारित किया गया। सदन में प्रश्नकाल के लिए 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक का समय रखा गया। लेकिन प्रश्नकाल का ये समय केवल 232वें सत्र तक ही जारी रह सका। ऐसा इसलिये, क्योंकि नवंबर 2014 में इसके नियमों में फिर से बदलाव ने दस्तक दे दी। अब फिर से एक बार राज्यसभा में प्रक्रिया और कार्य-संचालन विषयक नियमों में संशोधन किया गया। अब राज्यसभा में प्रश्न पूछने के लिए दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक का समय कर दिया गया। दरअसल, मंत्रियों को कुछ समस्याओं का सामना करना पढ़ रहा था। चूँकि लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में प्रश्न काल का समय दोपहर 11 बजे से 12 बजे तक ही था, इसलिए एक ही समय पर मंत्रियों का दोनों सदनों में मौजूद रहना मुश्किल हो रहा था। इस स्थिति को देखते हुए ही राज्यसभा में प्रश्न पूछने के समय को 12 बजे से 1 बजे तक करने का फैसला लिया गया। इस तरह भारत सरकार और प्रशासन के लगभग सभी पहलुओं की छानबीन करने के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल के लिए अलग-अलग समय निर्धारित किया गया। कुल मिलाकर, सरकार का परीक्षण करने वाले इस प्रश्नकाल रूपी यंत्र के समय को सुविधाजनक बनाया गया।
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अब आपके मन में जो सवाल कौंध रहा है उसी का जवाब देते हैं। आपके मन में यही चल रहा होगा कि साहब संसद में ये जो प्रश्न या सवाल पूछे जाते हैं वो होते कैसे हैं या किस तरह के होते हैं। तो इसका जवाब है कि भारतीय संसद में प्रश्नकाल के अंतर्गत तीन तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं। इनमें पहले नंबर पर आता है Starred यानी तारांकित प्रश्न। यह ऐसा प्रश्न होता है जिसका जवाब या उत्तर मौखिक तौर पर यानी सदन में बोलकर दिया जाता है। अगर कोई संसद सदस्य तारांकित श्रेणी का प्रश्न पूछता है, तो वह ऐसे प्रश्न पर अनुपूरक प्रश्न पूछने का भी अधिकारी होता है। ऐसे प्रश्नों की पहचान के लिए उस पर Star या तारांक बना दिया जाता है। इसके बाद दूसरी श्रेणी होती है अतारांकित प्रश्नों की। ये ऐसे प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर मौखिक रूप में देने की बजाय लिखित रूप में दिया जाता है। इसीलिए ऐसे प्रश्नों पर संबंधित सदस्य को अनुपूरक प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं होता। इन्हें अतारांकित प्रश्न इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि इन पर तारांक नहीं लगा होता है। चूँकि तारांकित और अतारांकित प्रश्नों को कम से कम 10 दिन पहले सूचना देकर ही पूछा जा सकता है, लेकिन कभी-कभी कोई लोक महत्त्व का मुद्दा इतना जरूरी हो जाता है कि उसे बहुत ज्यादा देर तक टाला नहीं जा सकता, तो ऐसे मुद्दे से संबंधित प्रश्न को अल्प-सूचना प्रश्न के द्वारा पूछा जा सकता है। ऐसे प्रश्नों को साधारण प्रश्नों के लिए निर्धारित 10 दिन की अवधि से कम समय की सूचना देकर पूछा जा सकता है। राज्य सभा में इस तरह के प्रश्नों को 15 दिन से कम समय की अवधि में सूचना देकर पूछा जा सकता है।
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वैसे तो आमतौर पर प्रश्न सरकारी सदस्यों यानी मंत्रियों से ही पूछे जाते हैं, लेकिन जरूरी होने पर गैर-सरकारी सदस्यों से भी पूछे जा सकते हैं। हालाँकि ऐसा तभी किया जा सकता है जब प्रश्न का विषय ऐसे किसी विधेयक या संकल्प से या सभा के किसी अन्य कार्य से संबंधित हो, जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी हो। यहाँ गौर करने वाली बात है कि सदस्य द्वारा अगर किसी श्रेणी में कोई प्रश्न पूछा जाता है, तो वह क्या वाकई उस श्रेणी यानी तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना का है या नहीं, इस बात के लिए उस प्रश्न को अध्यक्ष या सभापति की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है।
ऐसा भी नहीं है कि सदस्य जब चाहें, बिना सूचना दिये किसी मंत्री से प्रश्न पूछ सकते हैं। अगर ऐसा होगा तो मंत्री प्रश्नों के स्पष्ट तरीके से उत्तर देने की हालत में नहीं होंगे। क्योंकि विभिन्न स्तरों से जानकारी इकट्ठा करने और सदन में मंत्री द्वारा दिए जाने के लिए एक सटीक उत्तर तैयार करने में संबंधित विभाग को समय की जरूरत होती है। इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए दोनों सदनों में कार्य-संचालन और प्रक्रिया नियमों में कहा गया है कि कोई सदस्य प्रश्न पूछे जाने की सूचना संबंधित सदन के महासचिव को दे सकता है। सदस्य को प्रश्न की सूचना में विषय वस्तु के अलावा संबंधित मंत्री का नाम लिखना होता है। इसके साथ ही यह भी लिखना होता है कि वह अपने प्रश्न को सदन में किस तारीख को रखवाना चाहता है।
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संसद के दोनों सदनों में कितने प्रश्न पूछे जा सकते हैं या कितने प्रश्न सदन के पटल पर रखे जा सकते हैं, इसका भी उल्लेख किया गया है। लोकसभा में किसी भी सदस्य द्वारा किसी दिन के लिए तारांकित और अतारांकित दोनों तरह के प्रश्नों के लिए कुल मिलाकर 10 से अधिक सूचनाएँ नहीं दे सकता। इसके अलावा लोकसभा में किसी सदस्य के नाम से किसी भी एक दिन के लिए मौखिक और लिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए प्रश्न सूचनाओं में पाँच से ज्यादा सूचनाएँ शामिल नहीं की जा सकतीं। लोकसभा में किसी एक दिन के लिए तारांकित प्रश्नों की सूची में कुल 20 प्रश्नों को ही शामिल किया जा सकता है, जबकि अतारांकित प्रश्नों की कुल संख्या 230 हो सकती है। वहीं राज्यसभा में हर दिन 15 तारांकित प्रश्नों को सूचीबद्ध किया जा सकता है, जबकि अतारांकित प्रश्न सूची में 200 से कम प्रश्न होते हैं।
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प्रश्नकाल किस तरह संसदीय लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है ये आपको करीब-करीब समझ में आ गया होगा। क्योंकि सदन में मंत्रियों द्वारा दी जाने वाली जानकारी बेहद प्रामाणिक मानी जाती हैं, इसीलिए इनसे उम्मीद की जाती है कि वे किसी भी प्रश्न के उत्तर में संक्षिप्त और सटीक जानकारी दें। यही वजह है कि मंत्री द्वारा कोई उत्तर गलत या अधूरा दिया जाता है, तो उसे सदन को गुमराह करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है। अगर बाद में ये पाया गया कि दी गई जानकारी गलत या सच नहीं है, तो ऐसी स्थिति में संबंधित मंत्री की जवाबदेही तय की जाती है। तारांकित प्रश्न के मामले में मंत्री को सदन के पटल पर पहले दिये गए उत्तर में सुधार करने वाला एक वक्तव्य देना होता है। जबकि अतारांकित प्रश्न के मामले में एक विवरण सदन के पटल पर रखना होता है। प्रश्नकाल के अलावा भी संसद सदस्य सरकार से प्रश्न कर सकते हैं, जैसे कि शून्य काल, आधे घंटे की चर्चा आदि।
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सार (Synopsis)
प्रश्नकाल न केवल संसदीय कार्यवाही का महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने का एक प्रभावी माध्यम भी है। प्रश्नकाल के माध्यम से सरकार की कार्यशैली और उसकी नीतियों का परीक्षण किया जाता है, जिससे जनहित के मुद्दों को सामने लाने का मौका मिलता है।
प्रश्नकाल की मुख्य विशेषताएँ (Salient features of Question Hour):
- जवाबदेही सुनिश्चित करना:
मंत्रियों को उत्तर देने के लिए बाध्य करना, जिससे यह तय हो सके कि सरकार अपनी नीतियों और कार्यों के लिए जवाबदेह है। - तीन प्रकार के प्रश्न:
- तारांकित प्रश्न: मौखिक उत्तर, जिसके बाद पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार।
- अतारांकित प्रश्न: लिखित उत्तर, जिसमें पूरक प्रश्न की अनुमति नहीं।
- अल्प सूचना प्रश्न: कम समय में दिए गए प्रश्न जिनका उत्तर तत्काल आवश्यक हो।
- लोकतांत्रिक महत्त्व:
यह जनता और उनके प्रतिनिधियों को सरकार की नीतियों, योजनाओं और क्रियान्वयन के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अवसर देता है। - संसदीय व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा:
वेस्टमिंस्टर प्रणाली से प्रेरित इस प्रक्रिया ने लोकतंत्र को अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बनाने में मदद की है। - समय निर्धारण और प्रक्रिया:
प्रश्नकाल का समय और उसके नियम इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि यह प्रभावी और व्यवस्थित हो।
रोचक पहलू:
- प्रश्नकाल में हाजिरजवाबी और व्यंग्यपूर्ण चर्चाएँ इसे दर्शकों और मीडिया के लिए रोचक बनाती हैं।
- यह न केवल गंभीर विषयों पर चर्चा का माध्यम है, बल्कि कई बार इसमें नेताओं की चतुराई और हाजिर जवाबी भी देखने को मिलती है।
चुनौतियाँ:
- कुछ प्रश्न समय पर उठाए नहीं जा पाते, जिससे जनहित के मुद्दे पीछे रह जाते हैं।
- कभी-कभी राजनीतिक मकसद से सवाल पूछे जाते हैं, जो इसकी गंभीरता को कम कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
प्रश्नकाल संसदीय लोकतंत्र की आत्मा है, जो न केवल सरकार की जवाबदेही तय करता है बल्कि नागरिकों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को भी प्रदर्शित करता है। यह प्रणाली सरकार और जनता के बीच एक सेतु का काम करती है, जहाँ जनता के प्रतिनिधि सरकार से सवाल पूछकर यह सुनिश्चित करते हैं कि लोकतंत्र जीवंत और पारदर्शी बना रहे।
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