हाल ही में Fiscal Empowerment of City Governments report (शहरी सरकारों का राजकोषीय सशक्तिकरण रिपोर्ट) जारी किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में नगर निगम मुख्य रूप से केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले अनुदान पर निर्भर हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि शहरी निकायों यानी नगर निगमों को अपने स्रोत से मिलने वाले राजस्व का कुल आय में औसत प्रतिशत हिस्सा मात्र 34.72 % है। 43 शहरों के सर्वेक्षण पर जारी की गई यह रिपोर्ट आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान (NIUA) के सहयोग से मुंबई स्थित गैर-लाभकारी संगठन प्रजा फाउंडेशन द्वारा तैयार की गई थी।
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Fiscal Empowerment of City Governments report और मुख्य बिन्दु
Fiscal Empowerment of City Governments report के अनुसार संपत्ति कर नगर निगमों के राजस्व का मुख्य स्रोत है। नगर निगमों की कुल आय में संपत्ति कर का औसत हिस्सा, उनके कुल बजट का लगभग 13.85% है, जो गैर कर राजस्व प्रतिशत 16.93% से कम है।
वहीं 30 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में, हैदराबाद में कुल आय में संपत्ति कर का हिस्सा सर्वाधिक (36.06%) है जबकि दिल्ली में संपत्ति कर कुल आय में लगभग 26.7 % का योगदान देता है। इसके अलावा 30 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में हैदराबाद में कुल आय में स्वयं के स्रोत से उत्पन्न राजस्व का हिस्सा भी सर्वाधिक 61.63 % है। वहीं दिल्ली में यह हिस्सा 55% का और मुंबई में 50.23% है। जयपुर में कुल आय में स्वयं के स्रोत से प्राप्त राजस्व का सबसे कम औसत प्रतिशत हिस्सा 22.9% है। रिपोर्ट के अनुसार-
- कुल नगरपालिका आय में कर राजस्व का हिस्सा 18.05% है।
- 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों के लिए प्रति व्यक्ति स्वयं स्रोत राजस्व 10-30 लाख आबादी वाले शहरों की तुलना में अधिक है।
- औसत प्रति व्यक्ति संपत्ति कर के संदर्भ में 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों का हिस्सा 10-30 लाख आबादी वाले शहरों की तुलना में अधिक है।
- 30 लाख से अधिक आय वाले शहरों के लिए स्वयं स्रोत राजस्व का औसत CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) 2.61% है। इस श्रेणी में दिल्ली में सबसे अधिक स्वयं स्रोत राजस्व CAGR 5.52% है।
- 10 से 30 लाख के बीच के शहरों के लिए औसत नाममात्र स्वयं स्रोत राजस्व CAGR 8.95% है, जबकि वास्तविक CAGR 5.04% है। इस श्रेणी में इंदौर में सबसे अधिक नाममात्र और वास्तविक स्वयं स्रोत राजस्व CAGR क्रमशः 19.13% और 14.85% है।
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Fiscal Empowerment of City Governments report के अनुसार अनुदान पर क्यों निर्भर हैं नगर निगम?
Fiscal Empowerment of City Governments report रिपोर्ट के अनुसार नागरिक एजेंसियों की खराब वित्तीय सेहत का मुख्य कारण राजकोषीय प्रबंधन में बदलाव लाने के लिए अधिकार का अभाव है। जैसे कि सर्वेक्षण किए गए 43 शहरों में से 23 के पास संबंधित राज्य नगरपालिका अधिनियमों के अनुसार ‘करों की निर्धारित सूची में दिए गए नए करों को लागू करने के लिए स्वतंत्र प्राधिकरण नहीं है’। वहीं सर्वेक्षण किए गए 43 शहरों में से केवल 12 शहरों (जैसे रायपुर, दिल्ली, मुंबई, भोपाल) में नागरिक निकायों के पास नए कर या शुल्क लागू करने का अधिकार है।
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इसके अलावा 74वें संविधान संशोधन के बावजूद, 10 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों जैसे अरुणाचल प्रदेश, बिहार, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मणिपुर, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान और सिक्किम ने तीन वित्तीय शक्तियों में से कोई भी शक्ति शहरी निकायों को हस्तांतरित नहीं की है। वहीं कई राज्यों ने शहरी नियोजन, जल आपूर्ति और अन्य सहित सभी 18 कार्य (74वें संविधान संशोधन के अनुसार) शहरों को नहीं सौंपा है।
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Fiscal Empowerment of City Governments report के बारे में
Fiscal Empowerment of City Governments report प्रकाशित करने के लिए देश में शहरी निकायों के वित्तीय ढांचे का आकलन करने के लिए 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 43 नगर-निगमों के सात वर्षों (2017-18 से 2023-24) के नगरपालिका बजट का अध्ययन किया गया था। इसके लिए सात वित्तीय वर्षों के 320 बजट दस्तावेजों और 12 लेखापरीक्षा लेखा दस्तावेजों का विश्लेषण करने के बाद Fiscal Empowerment of City Governments report का प्रकाशन हुआ है। अध्ययन में शहरों को उनकी जनसंख्या के आधार पर चार श्रेणियों – मुंबई, 30 लाख से ऊपर की आबादी (7 शहर), 10 लाख से 30 लाख के बीच की आबादी (14 शहर) और 10 लाख से नीचे की आबादी (21 शहर) में विभाजित किया गया था। नगर निगम बजट पर सर्वेक्षण द्वारा बताए गए मुख्य बिन्दु-
- सर्वेक्षण के अनुसार सात शहरों अर्थात ईटानगर, धर्मशाला, श्रीनगर, नागपुर, इम्फाल, कोहिमा और आसनसोल के पास सात वर्षों में से किसी भी वर्ष के लिए ऑनलाइन (निगम वेबसाइट) बजट दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।
- केवल 16 शहरों के पास सभी सात वर्षों के लिए ऑनलाइन (निगम वेबसाइट) बजट दस्तावेज उपलब्ध हैं।
- 43 शहरों में से 15 के पास सभी छह वर्षों के लिए ऑडिट खाता विवरण ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हैं। जैसे – ईटानगर, गुवाहाटी, पटना, गांधीनगर, धर्मशाला, श्रीनगर, रांची, इम्फाल, शिलांग, कोहिमा, अमृतसर, जयपुर, उदयपुर, देहरादून और आसनसोल।
- आठ शहरों लखनऊ, रायपुर, देहरादून, अहमदाबाद, गांधीनगर, अमृतसर, मैंगलोर और कोयंबटूर का बजट केवल क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होता है।
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राष्ट्रीय शहरी मामले संस्थान (NIUA) के बारे में
राष्ट्रीय शहरी मामले संस्थान (NIUA) शहरी नियोजन और विकास पर भारत का अग्रणी राष्ट्रीय थिंक टैंक है। NIUA की स्थापना 1976 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तत्वावधान में एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी। इसे 1860 के सोसायटी पंजीकरण अधिनियम XXI के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। शहरी क्षेत्र में अत्याधुनिक शोध के सृजन और प्रसार के केंद्र के रूप में, NIUA तेजी से शहरीकरण कर रहे भारत की चुनौतियों का समाधान करने के लिए अभिनव समाधान प्रदान करना चाहता है और भविष्य के अधिक समावेशी और टिकाऊ शहरों का मार्ग प्रशस्त करना चाहता है। देश के भीतर शहरी ज्ञान के आधार को समृद्ध और विस्तारित करने के अपने उद्देश्य में, इसका काम आज 6 प्रमुख विषयगत चिंताओं को संबोधित करता है:
- शहरीकरण और आर्थिक विकास
- शहरी शासन (डिजिटल) और नगर वित्त
- शहरी बुनियादी ढाँचा और निर्मित पर्यावरण
- पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और लचीलापन
- सामाजिक विकास (समावेशी और टिकाऊ शहर)
- कौशल, संसाधन और गहन ज्ञान
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राष्ट्रीय शहरी मामले संस्थान (NIUA) आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ-साथ अन्य सरकारी और नागरिक क्षेत्रों के साथ मिलकर काम करता है, ताकि शोध के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की जा सके और शहरी नीति और नियोजन में खामियों को दूर किया जा सके। योजनाकारों, इंजीनियरों, शोधकर्ताओं, वास्तुकारों और विश्लेषकों की एक टीम के साथ, संस्थान शहर और राज्य-स्तरीय परियोजनाओं के लिए क्रॉस डिसिप्लिनरी विशेषज्ञता और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, साथ ही स्थानीय और क्षेत्रीय और शासी एजेंसियों की क्षमता को मजबूत करने के लिए टूलकिट और अनुकूलित प्रशिक्षण कार्यक्रम भी विकसित करता है।
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