वन नेशन, वन इलेक्शन पर रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट को मिली मंजूरी!

One Nation, One Election UPSC

हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में पूरे राष्ट्र में एक साथ चुनाव कराने यानी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संबंधी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।

क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन? (What is One Nation, One Election in Hindi?)

वन नेशन, वन इलेक्शन(One Nation, One Election in Hindi) की अवधारणा एक ऐसी प्रणाली की कल्पना करती है जिसमें सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव भी हो।

इसका अर्थ यह है कि मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के लिए एक ही दिन और एक ही समय पर (या चरणबद्ध तरीके से, जैसा भी मामला हो) मतदान करेंगे।

बता दें कि इसके लिए भारतीय चुनाव चक्र को पुनर्गठित करना होगा तो वहीं संविधान में भी संशोधन करने होंगे ताकि राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ करा सकना संभव हो सके। ऐसे में इसकी व्यवहारिकता की जाँच के लिये ही पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने वन नेशन, वन इलेक्शन (One Nation, One Election in Hindi) को व्यावहारिक मानते हुए कुछ संशोधनों के सुझाव दिये हैं।

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रामनाथ कोविंद समिति के बारे में-

इस समिति में रामनाथ कोविंद के साथ गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी शामिल थे। समिति ने 191 दिनों तक सभी हितधारकों से विचार विमर्श किया। इसके लिये समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया तो वहीं कई न्यायविदों से भी परामर्श किया। वहीं पैनल ने भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश करने से पहले दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपींस और बेल्जियम सहित कई देशों में चुनाव प्रक्रियाओं का अध्ययन किया था। समिति ने जनता से भी प्रतिक्रिया मांगी और उसके बाद ही 14 मार्च, 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,000 से ज़्यादा पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंपी। हालाँकि, जो रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है, वह 321 पन्नों की है।

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रामनाथ कोविंद समिति के सुझाव-

समिति ने माना कि वर्ष 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए हैं। वहीं विधि आयोग के 170वीं रिपोर्ट (1999) में भी यह कहा गया था कि पांच वर्षों में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ कराए जाएं। साथ ही संसदीय समिति की 79वीं रिपोर्ट (2015) में भी दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के समाधान तलाशे गए थे। इतना ही नहीं दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, जर्मनी, थाईलैण्ड जैसे कई देशों में यह प्रक्रिया अभी भी प्रभावी है। ऐसे में कोविन्द समिति ने एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए, इसे अमलीजामा पहनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये हैं:

  • समिति ने माना कि सरकार को एक साथ चुनाव कराने के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से स्वीकार्य तंत्र विकसित करना होगा। एक साथ चुनाव कराने के लिए समिति ने जो तंत्र प्रस्तावित किया है, वह यह है-
    • चरण 1: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाए
    • चरण 2: नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के साथ इस प्रकार समन्वयित किए जाएं कि नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव चरण 1 के चुनाव के 100 दिनों के भीतर आयोजित करना संभव हो
  • लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के बीच समन्वय लाने के लिए नियत तिथि
    • राष्ट्रपति, आम चुनाव के पश्चात लोक सभा (लोक सभा) की प्रथम बैठक की तिथि को इस संबंध में एक अधिसूचना जारी करें, इस अधिसूचना की तिथि को ‘नियत तिथि’ कहा जाएगा
    • नियत तिथि के पश्चात् तथा लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व राज्य विधान सभाओं के चुनावों द्वारा गठित सभी राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल केवल लोक सभा के आगामी आम चुनावों तक लंबित अवधि के लिए होगा। (अर्थात् राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल तक ही होगा)।
    • इसके बाद, लोक सभा और सभी राज्य विधान सभाओं के सभी आम चुनाव एक साथ आयोजित करना संभव हो सकेगा।
    • इसी के साथ 100 दिनों के भीतर पंचायत और नगर पालिका के चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन किए जाएं
  • सदन में अनिश्चितता, अविश्वास प्रस्ताव या दलबदल के स्थिति में क्या हो समाधान?
    • त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी भी घटना की स्थिति में, नए सदन के गठन के लिए नए चुनाव (लोकसभा व राज्य विधानसभा दोनों की स्थिति में) केवल लोकसभा की शेष अवधि के लिए कराए जाएँगे। इस शेष अवधि की समाप्ति के बाद, सदन का विघटन हो जाएगा। इससे फिर एक साथ चुनाव कराना संभव हो सकेगा।
  • राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय चुनाव सभी के लिए  एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र बनाए जाए।
  • लॉजिस्टिक्स जरूरतकी पूर्ति  के लिए भारत निर्वाचन आयोग ईवीएम और वीवीपैट जैसे उपकरणों की खरीद, मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती और अन्य व्यवस्थाओं के लिए पहले से अनुमान लगा सकता है।
  • वहीं नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए, राज्य चुनाव आयोग भारत के चुनाव आयोग के परामर्श से ईवीएम और वीवीपैट जैसे उपकरणों की खरीद, मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती के लिए अग्रिम अनुमान लगा सकता है।

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रामनाथ कोविंद समिति के अनुसार कैसे होंगे वन नेशन, वन इलेक्शन के लिये संविधान में संशोधन?

 एक साथ चुनाव कराने पर कोविंद समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए संविधान और अन्य क़ानूनों में अठारह अलग-अलग संशोधनों की आवश्यकता होगी। सुझाए गए बदलावों में शामिल हैं-

अनुच्छेद 325 में संशोधन: इसमें संशोधन एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) को सक्षम करने के लिए आवश्यक है, जिसे राज्य चुनाव आयोग के परामर्श से ईसीआई द्वारा तैयार किया जाएगा। यह एकल मतदाता सूची भारतीय संविधान के अनुच्छेद 325 के तहत ईसीआई या अनुच्छेद 243K और 243ZA के तहत राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) द्वारा तैयार किसी भी अन्य मतदाता सूची का स्थान लेगी। संविधान में इस संशोधन के लिए 50% से अधिक राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।

संवैधानिक स्थानीय निकायों (लोकसभा और राज्य विधानसभा के साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं) में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव: (अनुच्छेद 324 ए का परिचय) यह संविधान संशोधन लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के आम चुनावों के साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं में एक साथ चुनाव कराने के लिए पेश किया जाना चाहिए। इन परिवर्तनों के लिए अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन की आवश्यकता होगी। इस संविधान संशोधन को राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी।

अनुच्छेद 327 में संशोधन – यह अनुच्छेद संसद को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों से सम्बंधित कानून बनाने की शक्ति देता है। अतः समिति के अनुसार इसमें भी संशोधन की आवश्यकता होगी।

जिन कानूनों में होगा संशोधन : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1993, केंद्र प्रशासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 आदि में भी संशोधन करने होंगे।


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